Psychology Free Mock Test Paper – 02
Q1. शिक्षा मनोविज्ञान व्यावहारिक रूप है –
(a) बाल मनोविज्ञान का
(b) समाज मनोविज्ञान का
(c) सामान्य विज्ञान का
(d) मनोविज्ञान का
Ans: (d)
शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है।
शिक्षा मनोविज्ञान: एक अनुप्रयुक्त शाखा
शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक अनुप्रयुक्त (applied) शाखा है। इसका मुख्य उद्देश्य मनोविज्ञान के सिद्धांतों, विधियों और निष्कर्षों का शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग करना है। इसका ध्यान विशेष रूप से सीखने और सिखाने की प्रक्रिया पर केंद्रित होता है।
-
मनोविज्ञान (Psychology): यह एक विस्तृत विज्ञान है जो मानव और पशुओं के व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
-
शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology): यह मनोविज्ञान के सिद्धांतों (जैसे अधिगम के सिद्धांत, बुद्धि और व्यक्तित्व) को शिक्षण और अधिगम की समस्याओं को हल करने के लिए लागू करता है।
उदाहरण के लिए, एक मनोवैज्ञानिक यह अध्ययन कर सकता है कि स्मृति कैसे काम करती है, जबकि एक शिक्षा मनोवैज्ञानिक इस जानकारी का उपयोग प्रभावी शिक्षण विधियों को विकसित करने के लिए करेगा ताकि छात्रों को जानकारी को याद रखने में मदद मिल सके।
अन्य विकल्प शिक्षा मनोविज्ञान के दायरे को पूरी तरह से नहीं दर्शाते हैं:
-
बाल मनोविज्ञान: यह मनोविज्ञान की एक शाखा है जो केवल बच्चों के व्यवहार और विकास पर ध्यान केंद्रित करती है, जबकि शिक्षा मनोविज्ञान में वयस्क शिक्षार्थी भी शामिल होते हैं।
-
समाज मनोविज्ञान: यह इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति एक सामाजिक समूह में कैसे व्यवहार करते हैं, जो शिक्षा मनोविज्ञान का एक पहलू हो सकता है, लेकिन इसका पूरा दायरा नहीं है।
-
सामान्य विज्ञान: यह एक बहुत व्यापक शब्द है और शिक्षा मनोविज्ञान एक विशिष्ट विज्ञान है।
Q2. मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान मानने वाले मनोवैज्ञानिक हैं –
(a) पोम्पोनाजी
(b) वाटसन
(c) विलियम वुण्ट
(d) डेकार्टे
Ans: (b)
मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान मानने वाले मनोवैज्ञानिक वाटसन (Watson) हैं।
वाटसन और व्यवहारवाद
जॉन बी. वाटसन (John B. Watson) अमेरिकी मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (Behaviorism) के जनक माने जाते हैं। उन्होंने 1913 में एक लेख “Psychology as the Behaviorist Views It” प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने मनोविज्ञान की परिभाषा को पूरी तरह से बदल दिया।
-
इससे पहले, मनोविज्ञान को आत्मा, मन या चेतना का विज्ञान माना जाता था।
-
वाटसन ने तर्क दिया कि इन अवधारणाओं का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये दिखाई नहीं देतीं और इनका मापन नहीं किया जा सकता।
-
उन्होंने जोर दिया कि मनोविज्ञान को केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) का अध्ययन करना चाहिए, जिसे मापा, वर्णित और नियंत्रित किया जा सके।
वाटसन के अनुसार, मनोविज्ञान का लक्ष्य व्यवहार की भविष्यवाणी करना और उसे नियंत्रित करना होना चाहिए। उनका मानना था कि मानव व्यवहार पर्यावरण और सीखने की प्रक्रिया द्वारा निर्धारित होता है, न कि आंतरिक मानसिक अवस्थाओं द्वारा।
अन्य मनोवैज्ञानिकों का योगदान
-
विलियम वुण्ट (Wilhelm Wundt): इन्हें आधुनिक मनोविज्ञान का जनक माना जाता है। इन्होंने मनोविज्ञान को चेतना के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया था।
-
पोम्पोनाजी (Pomponazzi): ये एक इतालवी दार्शनिक थे जिन्होंने आत्मा के विज्ञान के रूप में मनोविज्ञान का अध्ययन किया।
-
डेकार्टे (Descartes): ये एक फ्रांसीसी दार्शनिक और गणितज्ञ थे जिन्होंने मनोविज्ञान के क्षेत्र में मन-शरीर द्वैतवाद (Mind-Body Dualism) का सिद्धांत दिया था, जिसमें उन्होंने मन और शरीर को दो अलग-अलग संस्थाएं माना।
Q3. प्रशिक्षण एवं अनुभव के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवतर्न को अधिगम कहते है। यह कथन है –
(a) गेट्स
(b) कॉलविन
(c) सी. ई. स्कीनर
(d) प्रेसी
Ans: (a)
यह कथन गेट्स का है।
अधिगम की परिभाषा
अधिगम (Learning) को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है। गेट्स (Gates) के अनुसार, अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में प्रशिक्षण (training) और अनुभव (experience) के कारण स्थायी परिवर्तन होता है। इस परिभाषा में, प्रशिक्षण का मतलब जानबूझकर की जाने वाली क्रियाओं और शिक्षा से है, जबकि अनुभव में वह सब कुछ शामिल है जो व्यक्ति अपने जीवन में सीखता है।
अन्य मनोवैज्ञानिकों के विचार
-
स्किनर (Skinner): इन्होंने अधिगम को “व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया” के रूप में परिभाषित किया है। उनका मानना था कि अधिगम क्रियाप्रसूत अनुबंधन (operant conditioning) के माध्यम से होता है।
-
कॉलविन (Colvin): कॉलविन ने अधिगम को एक ऐसी प्रक्रिया माना है जो व्यवहार में प्रगतिशील अनुकूलन लाती है।
-
प्रेसी (Pressey): प्रेसी ने अधिगम को एक क्रिया के रूप में परिभाषित किया है जिसमें व्यक्ति अपनी समस्याओं को हल करने के लिए नई प्रतिक्रियाएँ सीखता है।
Q4. निम्न में से कौनसी परविधि बालकों को अनुशासन सीखने के लिए उचित है –
(a) प्रभुत्वात्मक प्रविधि
(b) प्रजातांत्रिक प्रविधि
(c) अनुभूति प्रविधि
(d) निष्क्रिय प्रविधि
Ans: (b)
बालकों को अनुशासन सिखाने के लिए सबसे उचित विधि प्रजातांत्रिक प्रविधि है।
प्रजातांत्रिक प्रविधि (Democratic Method)
यह विधि बच्चों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करने और उन्हें अपनी सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने पर केंद्रित है। इसमें शिक्षक एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, जो बच्चों को नियमों और सीमाओं को समझने और उनका पालन करने में मदद करता है। इस विधि में, बच्चों को अपनी राय व्यक्त करने और निर्णय लेने में भाग लेने का अवसर दिया जाता है, जिससे वे नियमों को थोपा हुआ महसूस करने के बजाय उनके प्रति अधिक ज़िम्मेदारी महसूस करते हैं। यह आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देता है क्योंकि बच्चे समझते हैं कि नियमों का उद्देश्य उनके अपने हित में है।
अन्य विधियाँ
-
प्रभुत्वात्मक प्रविधि (Authoritative Method): इस विधि में शिक्षक सख्त नियमों को लागू करते हैं और छात्रों से बिना किसी सवाल के उनका पालन करने की उम्मीद करते हैं। यह विधि बच्चों में डर और प्रतिरोध पैदा कर सकती है, जिससे वे आज्ञाकारी तो हो सकते हैं, लेकिन उनमें आत्म-अनुशासन का विकास नहीं होता है।
-
अनुभूति प्रविधि (Permissive Method): इस विधि में शिक्षक बहुत कम या कोई नियम नहीं लगाते हैं, जिससे बच्चे अक्सर दिशाहीन और भ्रमित हो जाते हैं। यह विधि अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे सकती है क्योंकि बच्चों को सीमाओं का ज्ञान नहीं होता है।
-
निष्क्रिय प्रविधि (Passive Method): यह एक ऐसी विधि है जिसमें शिक्षक निष्क्रिय रहते हैं और छात्रों को स्वयं ही सब कुछ करने देते हैं। यह बच्चों में अनुशासन और जिम्मेदारी विकसित करने में विफल रहता है क्योंकि उन्हें कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता है।
Q5. मनोविज्ञान का कौन सा सम्प्रदाय, मनोविज्ञान को विशुद्ध विज्ञान के रूप में स्थापित करने पर बल देता है –
(a) संज्ञानवाद
(b) व्यवहारवाद
(c) रोस्टल्टवाद
(d) निर्मितिवाद
Ans: (b)
मनोविज्ञान को विशुद्ध विज्ञान (Pure Science) के रूप में स्थापित करने पर व्यवहारवाद (Behaviorism) सम्प्रदाय बल देता है।
व्यवहारवाद और विशुद्ध विज्ञान
व्यवहारवाद के जनक जे.बी. वाटसन और प्रमुख समर्थक बी.एफ. स्किनर का मानना था कि मनोविज्ञान को एक प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) के रूप में अध्ययन करना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि मन या चेतना जैसी आंतरिक मानसिक प्रक्रियाओं का सीधे तौर पर अध्ययन या मापन नहीं किया जा सकता। इसलिए, मनोविज्ञान को केवल उन चीजों का अध्ययन करना चाहिए जिन्हें देखा, मापा और सत्यापित किया जा सके, यानी अवलोकनीय व्यवहार।
इस दृष्टिकोण ने मनोविज्ञान को विज्ञान की श्रेणी में लाने का प्रयास किया, क्योंकि यह अनुभवजन्य (Empirical) और वस्तुनिष्ठ (Objective) विधियों पर केंद्रित था।
अन्य सम्प्रदायों का दृष्टिकोण
-
संज्ञानवाद (Cognitivism): यह मन की आंतरिक प्रक्रियाओं जैसे स्मृति, विचार और समस्या-समाधान का अध्ययन करता है। यह व्यवहारवाद के विपरीत है, क्योंकि यह मानता है कि आंतरिक मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जा सकता है।
-
गेस्टाल्टवाद (Gestaltism): यह मनोविज्ञान के समग्र दृष्टिकोण पर बल देता है। इसका मानना है कि किसी अनुभव को उसके हिस्सों में तोड़कर नहीं समझा जा सकता, बल्कि उसे एक समग्र इकाई के रूप में समझना चाहिए।
-
निर्मितिवाद (Constructivism): यह एक सीखने का सिद्धांत है जो मानता है कि शिक्षार्थी अपने अनुभव और ज्ञान का उपयोग करके दुनिया की अपनी समझ का निर्माण करते हैं। यह अधिगम प्रक्रिया पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
Psychology Test – 02
Q6. मनोविज्ञान ने शिक्षा को बना दिया है –
(a) पाठ्चर्या केन्द्रित
(b) शिक्षक केंद्रित
(c) बाल केंद्रित
(d) विषय केंद्रित
उत्तर: (c)
मनोविज्ञान ने शिक्षा को बाल केंद्रित (child-centered) बना दिया है।
बाल केंद्रित शिक्षा (Child-Centered Education)
शिक्षा मनोविज्ञान के विकास से पहले, शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से शिक्षक केंद्रित या विषय केंद्रित थी, जहाँ शिक्षक ही ज्ञान का एकमात्र स्रोत होता था और पाठ्यक्रम ही सबसे महत्वपूर्ण चीज़ थी। लेकिन, जैसे-जैसे मनोविज्ञान ने बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझा, शिक्षा का ध्यान बच्चे पर स्थानांतरित हो गया।
बाल केंद्रित शिक्षा में:
-
बच्चे की ज़रूरतों और क्षमताओं पर ध्यान: यह विधि मानती है कि प्रत्येक बच्चा अद्वितीय होता है और उसकी अपनी रुचियाँ, क्षमताएँ और सीखने की गति होती है।
-
सक्रिय भागीदारी: इसमें बच्चे निष्क्रिय श्रोता नहीं होते, बल्कि सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
-
शिक्षक की भूमिका: शिक्षक की भूमिका एक मार्गदर्शक और सहायक की होती है, जो बच्चे को सीखने के लिए प्रेरित करता है।
मनोविज्ञान ने यह स्पष्ट किया कि प्रभावी शिक्षण तभी संभव है जब वह बच्चे के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को ध्यान में रखकर किया जाए। यही कारण है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में बाल केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाया गया है।
Q7. शैक्षिक मनोविज्ञान का संबंध है –
(a) शिक्षार्थी
(b) सीखने की प्रक्रिया
(c) सीखने की स्थिति से
(d) उपरोक्त सभी
Ans: (d)
शैक्षिक मनोविज्ञान का संबंध उपरोक्त सभी से है।
शैक्षिक मनोविज्ञान का क्षेत्र
शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational Psychology) एक व्यापक क्षेत्र है जो शिक्षा और सीखने से संबंधित हर पहलू का अध्ययन करता है। यह तीन मुख्य घटकों पर केंद्रित है:
-
शिक्षार्थी (The Learner): इसमें शिक्षार्थी की रुचियां, क्षमताएं, बुद्धि, व्यक्तित्व, और विकास की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है।
-
सीखने की प्रक्रिया (The Learning Process): इसमें सीखने के सिद्धांत, शिक्षण विधियां और रणनीतियों का अध्ययन किया जाता है ताकि यह समझा जा सके कि व्यक्ति कैसे सीखता है।
-
सीखने की स्थिति (The Learning Situation): इसमें वह वातावरण शामिल होता है जिसमें सीखना होता है, जैसे कि कक्षा का माहौल, पाठ्यक्रम, शिक्षक का व्यवहार, और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक कारक।
ये तीनों घटक मिलकर शैक्षिक मनोविज्ञान के अध्ययन के दायरे को पूरा करते हैं, जिसका उद्देश्य शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया को बेहतर बनाना है।
Q8. शिक्षा मनोविज्ञान है –
(a) मानक विज्ञान
(b) अनुप्रयुक्त विज्ञान
(c) विशुद्ध विज्ञान
(d) उपरोक्त में से कोई नही
Ans: (b)
शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) एक अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science) है।
शिक्षा मनोविज्ञान: एक अनुप्रयुक्त विज्ञान
मनोविज्ञान की दो मुख्य शाखाएँ होती हैं:
-
विशुद्ध विज्ञान (Pure Science): इसका उद्देश्य सिद्धांतों और ज्ञान का विकास करना है, जैसे कि मानव व्यवहार को समझना।
-
अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science): इसका उद्देश्य विशुद्ध विज्ञान से प्राप्त ज्ञान को वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए लागू करना है।
शिक्षा मनोविज्ञान इसी अनुप्रयुक्त विज्ञान की श्रेणी में आता है क्योंकि यह मनोविज्ञान के सिद्धांतों और अनुसंधान का उपयोग शिक्षा और शिक्षण की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए करता है। यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि छात्र कैसे सीखते हैं, शिक्षक कैसे पढ़ाते हैं, और सीखने का माहौल कैसा होना चाहिए।
इसलिए, यह केवल सिद्धांतों का अध्ययन नहीं करता, बल्कि उन्हें कक्षा में लागू करता है ताकि बच्चों और वयस्कों को प्रभावी ढंग से सिखाया जा सके।
Q9. निम्नलिखित में से कौन सा शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति को सबसे उपयुक्त रूप में प्रदर्शित करता है –
(1) धनात्मक विज्ञान
(2) ऋणात्मक विज्ञान
(3) व्यवहारगत विज्ञान
(a) केवल 1
(b) केवल 3
(c) 1 व 3
(d) 1, 2 व 3
Ans: (c)
इसका सही उत्तर (c) 1 व 3 है।
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति को समझने के लिए, हमें दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर ध्यान देना होगा:
-
धनात्मक विज्ञान (Positive Science): यह एक ऐसा विज्ञान है जो “क्या है” (what is) का अध्ययन करता है, न कि “क्या होना चाहिए” (what ought to be) का। शिक्षा मनोविज्ञान इस बात का अध्ययन करता है कि सीखने की प्रक्रिया वास्तव में कैसे होती है और बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं, न कि उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए।
-
व्यवहारगत विज्ञान (Behavioral Science): शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से व्यवहार का अध्ययन करता है, विशेष रूप से सीखने के संदर्भ में। यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि व्यवहार को कैसे मापा, वर्णित और भविष्यवाणी की जा सकती है।
ऋणात्मक विज्ञान (Negative Science)
ऋणात्मक विज्ञान शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति का हिस्सा नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है जो नकारात्मक पहलुओं या घटनाओं का अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान का ध्यान समग्र सीखने की प्रक्रिया पर है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के व्यवहार शामिल हैं।
इसलिए, शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति धनात्मक और व्यवहारगत दोनों हैं।
Q10. मनोविज्ञान में व्यवहारवाद का प्रतिपादन करने वाले थे –
(a) जॉन डीवी
(b) कोहलर
(c) विलियम जेम्स
(d) जॉन वी. वाटसन
Ans: (d)
मनोविज्ञान में व्यवहारवाद का प्रतिपादन करने वाले जॉन वी. वाटसन (John B. Watson) थे।
व्यवहारवाद (Behaviorism) क्या है?
व्यवहारवाद मनोविज्ञान का एक ऐसा स्कूल है जो इस विचार पर केंद्रित है कि व्यवहार को मापा, देखा और रिकॉर्ड किया जा सकता है। यह मन, चेतना, या आंतरिक मानसिक प्रक्रियाओं के बजाय केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) के अध्ययन पर जोर देता है। वाटसन का मानना था कि व्यक्ति का व्यवहार पर्यावरण के साथ उसकी अंतःक्रिया का परिणाम होता है, न कि आनुवंशिक या आंतरिक मानसिक कारकों का।
जॉन वी. वाटसन का योगदान
जॉन वी. वाटसन ने 1913 में “साइकोलॉजी एज़ द बिहेविओरिस्ट व्यूज़ इट” नामक लेख में अपने विचारों को प्रस्तुत किया। इस लेख को व्यवहारवाद का घोषणा पत्र माना जाता है। उन्होंने मनोविज्ञान को एक विशुद्ध विज्ञान (pure science) बनाने का प्रयास किया, ठीक उसी तरह जैसे भौतिकी या रसायन विज्ञान। वाटसन ने प्रसिद्ध “लिटिल अल्बर्ट” प्रयोग भी किया, जिसमें उन्होंने यह दिखाया कि डर जैसी भावनाओं को भी शास्त्रीय अनुबंधन (classical conditioning) के माध्यम से सिखाया जा सकता है।
अन्य मनोवैज्ञानिकों का योगदान
-
जॉन डीवी (John Dewey): ये एक दार्शनिक और शिक्षाविद् थे, जिनका संबंध प्रकार्यवाद (Functionalism) और प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) से है।
-
कोहलर (Kohler): ये एक गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने अंतर्दृष्टि अधिगम (insight learning) का सिद्धांत दिया था।
-
विलियम जेम्स (William James): इन्हें अमेरिकी मनोविज्ञान का जनक माना जाता है। वे प्रकार्यवाद स्कूल से संबंधित थे।
Q11. व्यवहारवाद के जन्मदाता हैं –
(a) मैडल
(b) स्किनर
(c) वाटसन
(d) ब्रूनर
Ans: (c)
व्यवहारवाद (Behaviorism) के जन्मदाता वाटसन हैं।
व्यवहारवाद: एक संक्षिप्त परिचय
व्यवहारवाद, मनोविज्ञान का एक प्रमुख स्कूल है जो इस बात पर जोर देता है कि मनोविज्ञान को केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) का अध्ययन करना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार, आंतरिक मानसिक प्रक्रियाएं जैसे कि मन, चेतना, या भावनाएं वैज्ञानिक अध्ययन के लिए अनुपयुक्त हैं क्योंकि उन्हें सीधे तौर पर मापा नहीं जा सकता।
-
जॉन बी. वाटसन (John B. Watson) को 1913 में उनके लेख “साइकोलॉजी एज़ द बिहेविओरिस्ट व्यूज़ इट” के प्रकाशन के बाद व्यवहारवाद का जनक माना जाता है। उन्होंने मनोविज्ञान को एक विशुद्ध विज्ञान (pure science) बनाने का प्रयास किया, ठीक उसी तरह जैसे भौतिकी या रसायन विज्ञान।
-
बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner) एक अन्य प्रमुख व्यवहारवादी थे, जिन्होंने क्रियाप्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) का सिद्धांत दिया था।
-
जेरोम ब्रूनर (Jerome Bruner) एक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक थे, जिनका संबंध संज्ञानवाद (Cognitivism) से है।
-
मैडल (Madel) मनोविज्ञान के किसी प्रमुख स्कूल या सिद्धांत से संबंधित नहीं हैं।
Q12. व्यवहारवादी विचारक है –
(a) वाटसन
(b) स्किनर
(c) मैडल
(d) राबर्ट कुक
Ans: (a)
दिए गए विकल्पों में से वाटसन को व्यवहारवाद का जनक (founder) माना जाता है।
प्रमुख व्यवहारवादी विचारक
व्यवहारवाद, मनोविज्ञान का एक ऐसा स्कूल है जो केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) के अध्ययन पर जोर देता है। इसके कुछ प्रमुख विचारक इस प्रकार हैं:
-
जॉन बी. वाटसन (John B. Watson): इन्हें व्यवहारवाद का जनक माना जाता है। उन्होंने 1913 में अपने लेख “साइकोलॉजी एज़ द बिहेवियोरिस्ट व्यूज़ इट” में इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया। उन्होंने तर्क दिया कि मनोविज्ञान को केवल उन चीजों का अध्ययन करना चाहिए जिन्हें मापा और देखा जा सके।
-
बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner): स्किनर एक अन्य प्रमुख व्यवहारवादी थे, जिन्होंने क्रियाप्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) का सिद्धांत दिया। उन्होंने दिखाया कि व्यवहार को पुरस्कार और दंड के माध्यम से बदला जा सकता है।
-
इवान पावलोव (Ivan Pavlov): हालाँकि, वे एक व्यवहारवादी नहीं थे, लेकिन उनके शास्त्रीय अनुबंधन (Classical Conditioning) के सिद्धांतों ने व्यवहारवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
-
एडवर्ड थार्नडाइक (Edward Thorndike): उन्होंने प्रभाव के नियम (Law of Effect) को विकसित किया, जो व्यवहारवाद का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
Q13. …………………………………. पूर्व प्रसुति काल के प्रारम्भ से किशोरावस्था के अतं होने तक अध्ययन करता है –
(a) विकासात्मक मनोविज्ञान
(b) बाल मनोविज्ञान
(c) मानव मनोविज्ञान
(d) दैहिक मनोविज्ञान
Ans: (b)
बाल मनोविज्ञान : गर्भावस्था से किशोरावस्था के अंत तक के मनुष्यों के विकास का अध्ययन करता है।
Q14. किस मनोवैज्ञानिक अध्ययन विधि में प्रयोज्य उत्तरदाता स्वयं प्रपत्र भरता है –
(a) प्रश्नावली
(b) क्यू सोर्ट
(c) अनुसूची
(d) अवलोकन
Ans: (a)
किस मनोवैज्ञानिक अध्ययन विधि में प्रयोज्य उत्तरदाता स्वयं प्रपत्र भरता है, वह है प्रश्नावली।
प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method)
प्रश्नावली एक शोध उपकरण है जिसमें प्रश्नों की एक श्रृंखला होती है जिसका उद्देश्य किसी विषय के बारे में जानकारी एकत्र करना है। इस विधि की मुख्य विशेषता यह है कि उत्तरदाता स्वयं प्रपत्र भरता है, जिसे वे स्वयं ही पढ़ते और समझते हैं। यह विधि बड़े समूहों से जानकारी एकत्र करने के लिए बहुत प्रभावी है।
-
अनुसूची (Schedule): अनुसूची भी प्रश्नों की एक सूची है, लेकिन इसमें अनुसंधानकर्ता या साक्षात्कारकर्ता स्वयं उत्तरदाता से प्रश्न पूछता है और उत्तर भरता है।
-
अवलोकन (Observation): इस विधि में अनुसंधानकर्ता सीधे तौर पर व्यवहार का अवलोकन करता है, इसमें कोई प्रश्नावली नहीं भरी जाती है।
-
क्यू सॉर्ट (Q-Sort): यह एक ऐसी विधि है जिसमें व्यक्ति को कई कार्डों पर दिए गए बयानों को छाँटने के लिए कहा जाता है, जिसमें वे अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। यह एक प्रश्नावली नहीं है।
Q15. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है, कियोंकि –
(a) यह केवल विज्ञान का अध्ययन करता है
(b) शिक्षा मनोविज्ञान में केवल सूचनाओं के आधार पर सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है
(c) शैक्षिक वातावरण में अधिगमकर्ता के व्यवहार का वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से अध्ययन किया जाता है
(d) इसमें केवल विद्यार्थियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
Ans: (c)
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है, क्योंकि (c) शैक्षिक वातावरण में अधिगमकर्ता के व्यवहार का वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से अध्ययन किया जाता है। —
शिक्षा मनोविज्ञान की वैज्ञानिक प्रकृति
शिक्षा मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है। इसकी वैज्ञानिक प्रकृति को कई कारणों से समझा जा सकता है:
-
वस्तुनिष्ठता (Objectivity): यह भावनाओं या व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के बजाय निष्पक्ष डेटा पर आधारित होता है।
-
वैज्ञानिक विधियों का उपयोग: यह मानव व्यवहार का अध्ययन करने के लिए व्यवस्थित विधियों का उपयोग करता है, जैसे कि अवलोकन, प्रयोग और सर्वेक्षण। इन विधियों से प्राप्त परिणाम विश्वसनीय और सत्यापन योग्य होते हैं।
-
सार्वभौमिक सिद्धांतों का निर्माण: इसका उद्देश्य ऐसे सिद्धांतों का निर्माण करना है जो विभिन्न शैक्षिक संदर्भों और संस्कृतियों में लागू हो सकें।
संक्षेप में, शिक्षा मनोविज्ञान, एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में, शिक्षा से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करता है।
Q16. शिक्षा का अधिकार उद्घोषित कब हुआ –
(a) 2007
(b) 2008
(c) 2009
(d) 2010
Ans: (c)
शिक्षा का अधिकार 2009 में उद्घोषित हुआ।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE)
शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009), भारतीय संसद द्वारा 4 अगस्त 2009 को पारित किया गया था। यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बनाता है। यह अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को पूरे भारत में लागू हुआ था।
यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21ए का अनुपालन करता है, जिसे 2002 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।
Q17. कल्पना का शिक्षा में क्या स्थान है –
(a) यथार्थ ज्ञान का आधार है
(b) प्रतिबोधन में सहायक है
(c) ज्ञान के अभाव को दूर करती है
(d) सृजनात्मकता में सहायक
Ans: (d)
कल्पना का शिक्षा में स्थान (d) सृजनात्मकता में सहायक है।
कल्पना और सृजनात्मकता
कल्पना (Imagination) शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसका सबसे बड़ा योगदान सृजनात्मकता (creativity) को बढ़ावा देना है।
-
सृजनात्मकता का विकास: कल्पना छात्रों को नए और मौलिक विचारों को विकसित करने में मदद करती है। यह उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों से समस्याओं को देखने और नवीन समाधान खोजने के लिए प्रेरित करती है।
-
अमूर्त विचारों को समझना: कल्पना का उपयोग छात्रों को अमूर्त और जटिल अवधारणाओं को समझने में मदद करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इतिहास में किसी घटना की कल्पना करके छात्र उसे बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।
-
अभिव्यक्ति को बढ़ावा: कल्पना छात्रों को अपनी भावनाओं, विचारों और अनुभवों को कला, लेखन या संगीत के माध्यम से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
अन्य विकल्प भी कल्पना से संबंधित हो सकते हैं, लेकिन सृजनात्मकता सबसे महत्वपूर्ण पहलू है:
-
यथार्थ ज्ञान का आधार है: कल्पना यथार्थ ज्ञान का आधार नहीं है, बल्कि यह यथार्थ ज्ञान का उपयोग करके नए विचार बनाने में सहायक है।
-
प्रतिबोधन में सहायक है: प्रतिबोधन (Perception) किसी जानकारी को समझने की प्रक्रिया है, जिसमें कल्पना सहायक हो सकती है, लेकिन यह उसका मुख्य कार्य नहीं है।
-
ज्ञान के अभाव को दूर करती है: कल्पना ज्ञान के अभाव को दूर नहीं कर सकती, बल्कि यह ज्ञान के आधार पर नए विचारों का निर्माण करती है।
इसलिए, कल्पना का सबसे महत्वपूर्ण शैक्षिक कार्य सृजनात्मकता को बढ़ावा देना है।
Q18. अध्यापन और मनोविज्ञान का क्या संबंध है –
(a) एक दूसरे के पूरक हैं
(b) एक दूसरे के सहायक हैं
(c) मनोविज्ञान, अध्यापन को प्रभावी बनाता है
(d) इनमें से कोई नहीं
Ans: (c)
मनोविज्ञान और अध्यापन एक दूसरे के पूरक और सहायक हैं, और मनोविज्ञान अध्यापन को प्रभावी बनाता है, इसलिए इन दोनों के बीच का संबंध इन सभी विकल्पों को दर्शाता है। सही उत्तर है : मनोविज्ञान अध्यापन को प्रभावी बनाता है।
अध्यापन और मनोविज्ञान के बीच संबंध
मनोविज्ञान और अध्यापन (Teaching) एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। मनोविज्ञान, विशेषकर शिक्षा मनोविज्ञान, अध्यापन की प्रक्रिया को वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।
-
एक-दूसरे के पूरक (Complementary): अध्यापन का उद्देश्य सिखाना है, और मनोविज्ञान यह बताता है कि सीखना कैसे होता है। मनोविज्ञान के सिद्धांतों के बिना अध्यापन एक दिशाहीन प्रक्रिया हो सकती है। एक शिक्षक मनोविज्ञान के ज्ञान का उपयोग करके यह समझ सकता है कि छात्र कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं, और जानकारी को संसाधित करते हैं।
-
एक-दूसरे के सहायक (Supportive): मनोविज्ञान एक शिक्षक को छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने में मदद करता है। यह शिक्षक को विभिन्न शिक्षण विधियों और रणनीतियों का उपयोग करने की अनुमति देता है, जो छात्रों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
-
अध्यापन को प्रभावी बनाना (Making teaching effective): मनोविज्ञान के ज्ञान का उपयोग करके, एक शिक्षक अपनी शिक्षण विधियों को बेहतर बना सकता है। उदाहरण के लिए, मनोविज्ञान हमें बताता है कि सकारात्मक पुनर्बलन (reinforcement) अधिगम को बढ़ावा देता है। एक शिक्षक इस ज्ञान का उपयोग करके छात्रों को प्रेरित कर सकता है और उनकी सीखने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना सकता है।
संक्षेप में, मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो हमें यह समझने में मदद करता है कि मानव व्यवहार कैसे काम करता है, और अध्यापन उस ज्ञान को लागू करने की कला है ताकि दूसरों को सिखाया जा सके। इसलिए, इन दोनों का गहरा और अटूट संबंध है।
Q19. इनमें से किस शिक्षा मनोवैज्ञानिक ने बाल – केंद्रित शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया –
(a) जॉन ड्यूवी
(b) स्कीनर
(b) ड्रेवर
(d) वुडवर्थ
Ans: (a)
इनमें से जॉन ड्यूवी ने बाल-केंद्रित शिक्षा पर सर्वाधिक जोर दिया।
जॉन ड्यूवी और बाल-केंद्रित शिक्षा
जॉन ड्यूवी (John Dewey) एक अमेरिकी दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और शिक्षा सुधारक थे। उन्होंने प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसका केंद्रबिंदु बाल-केंद्रित शिक्षा (Child-Centered Education) था। ड्यूवी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य बच्चे को जीवन के लिए तैयार करना है, और यह केवल करके सीखने (learning by doing) से ही संभव है। उनके अनुसार, शिक्षा को बच्चे की रुचियों, क्षमताओं और ज़रूरतों के अनुसार होना चाहिए।
-
मुख्य विचार:
-
करके सीखना (Learning by doing): ड्यूवी ने छात्रों को कक्षा में निष्क्रिय श्रोता के बजाय सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
-
अनुभवात्मक अधिगम (Experiential Learning): उन्होंने माना कि बच्चे अपने अनुभवों से सबसे अच्छा सीखते हैं।
-
समाजीकरण (Socialization): ड्यूवी ने स्कूल को एक ऐसा सामाजिक स्थान माना जहाँ बच्चे सहयोग करना और समुदाय में रहना सीखते हैं।
-
अन्य मनोवैज्ञानिकों का योगदान
-
बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner): स्किनर एक व्यवहारवादी थे, जिन्होंने क्रियाप्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) का सिद्धांत दिया। उनका ध्यान व्यवहार को आकार देने पर था, न कि बाल-केंद्रित शिक्षा पर।
-
ड्रेवर (Drever): जेम्स ड्रेवर एक स्कॉटिश मनोवैज्ञानिक थे, जो मनोविज्ञान के एक शब्दकोश के लिए प्रसिद्ध थे। उनका बाल-केंद्रित शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष योगदान नहीं था।
-
वुडवर्थ (Woodworth): रॉबर्ट एस. वुडवर्थ ने मनोविज्ञान में कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों का योगदान दिया, लेकिन बाल-केंद्रित शिक्षा उनके काम का मुख्य केंद्र नहीं था।
Q20. ‘शिक्षा का व्यापक अर्थ क्या है?’ निम्न में से किसी एक सही कथन को चुनिए –
(a) विद्यालयी वातावरण की शिक्षा
(b) निश्चित अवधि के पाठ्यक्रम की शिक्षा
(c) बाल्यावस्था से परिपक्वावस्था की शिक्षा
(d) विभिन्न विषयों की पुस्तकों पर आधारित शिक्षा
Ans: (c)
शिक्षा का व्यापक अर्थ है (c) बाल्यावस्था से परिपक्वावस्था की शिक्षा।
शिक्षा का व्यापक अर्थ
शिक्षा का व्यापक अर्थ (broader meaning) केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं है। यह जीवनभर चलने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है।
-
औपचारिक शिक्षा (Formal Education): इसका अर्थ केवल विद्यालय, कॉलेज या विश्वविद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा है, जो एक निश्चित पाठ्यक्रम और अवधि तक सीमित होती है। यह शिक्षा का संकीर्ण या सीमित अर्थ है।
-
व्यापक शिक्षा (Broader Education): इसमें वे सभी अनुभव शामिल हैं जो व्यक्ति अपने पूरे जीवन में प्राप्त करता है। यह न केवल स्कूल या कॉलेज में प्राप्त ज्ञान है, बल्कि परिवार, समाज, दोस्तों, यात्रा, और जीवन के हर पहलू से प्राप्त होने वाला ज्ञान और अनुभव भी है।
इस प्रकार, शिक्षा का व्यापक अर्थ व्यक्ति के समग्र विकास से संबंधित है, जिसमें उसका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास शामिल है। यह सीखने की एक निरंतर प्रक्रिया है जो उसे बचपन से लेकर परिपक्वता तक आकार देती रहती है।
Q21. छात्र के व्यवहार को परिस्थिति में अनुकूलित बनाने में निम्न में से कौनसी एक शिक्षण – नीति का न्यूनतम उपयोग होता है –
(a) रचनात्मक क्रियाओं में जुटाना
(b) कौशल विकसित करना
(c) पूर्व – ज्ञान का प्रयोग करना
(d) छात्र – क्षमता को नजरअन्दाज करना
Ans: (d)
छात्र के व्यवहार को परिस्थिति में अनुकूलित बनाने में, (d) छात्र – क्षमता को नजरअन्दाज करना शिक्षण नीति का न्यूनतम उपयोग होता है, क्योंकि यह एक नकारात्मक और अप्रभावी तरीका है।
शिक्षण नीतियों का महत्व
छात्र के व्यवहार को परिस्थिति में अनुकूलित बनाने का अर्थ है कि छात्र को किसी भी नई परिस्थिति में सफलतापूर्वक समायोजित होने के लिए तैयार करना। इसके लिए सकारात्मक और सहायक शिक्षण नीतियों की आवश्यकता होती है।
-
रचनात्मक क्रियाओं में जुटाना: यह छात्रों को समस्याओं को हल करने और नए समाधान खोजने में मदद करता है।
-
कौशल विकसित करना: यह छात्रों को आवश्यक कौशल प्रदान करता है ताकि वे नई चुनौतियों का सामना कर सकें।
-
पूर्व-ज्ञान का प्रयोग करना: यह छात्रों को नए ज्ञान को उनके पिछले अनुभव से जोड़ने में मदद करता है, जिससे वे बेहतर ढंग से सीख पाते हैं।
इसके विपरीत, छात्र की क्षमता को नजरअंदाज़ करना एक नकारात्मक दृष्टिकोण है। यह छात्रों को हतोत्साहित करता है और उनमें आत्मविश्वास की कमी पैदा करता है, जिससे वे नई परिस्थितियों में अनुकूलित होने में विफल रहते हैं। एक प्रभावी शिक्षण नीति का उद्देश्य हमेशा छात्र की क्षमताओं को पहचानना और उनका उपयोग करना होता है।
Q22. क्रो एवं क्रो के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु जिससे संबंधित है –
(a) शिक्षा के प्रक्रम में से गुजरने वाले व्यक्ति की प्रकृति
(b) सीखने को प्रभावित करने वाली दशाएं
(c) व्यक्ति का व्यवहार
(d) व्यक्ति का मानसिक जीवन
Ans: (a)
क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु शिक्षा के प्रक्रम में से गुजरने वाले व्यक्ति की प्रकृति से संबंधित है।
क्रो एवं क्रो की परिभाषा
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक क्रो एवं क्रो ने शिक्षा मनोविज्ञान को बहुत ही व्यापक रूप में परिभाषित किया है। उनके अनुसार:
“शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।”
इस परिभाषा का मूल सार यह है कि शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र केवल सीखने की प्रक्रिया या व्यवहार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व और विकास से संबंधित है जो सीखने की प्रक्रिया से गुजर रहा है। यह व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक प्रकृति को समझने पर जोर देता है, ताकि सीखने की प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सके।
Q23. प्राथमिक शिक्षा में ‘क्रिया द्वारा सीखना’ पर जोर देने वालों में प्रमुख शिक्षा मनोवैज्ञानिक हैं –
(a) जॉर्ज पेन
(b) फ्रॉबेल
(c) जॉन ड्यूवी
(d) रॉस
Ans: (c)
प्राथमिक शिक्षा में ‘क्रिया द्वारा सीखना’ पर जोर देने वाले प्रमुख शिक्षा मनोवैज्ञानिकों में से एक जॉन ड्यूवी (John Dewey) हैं।
‘क्रिया द्वारा सीखना’ का सिद्धांत
जॉन ड्यूवी ने प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) का सिद्धांत दिया था, जिसका मुख्य केंद्र ‘करके सीखना’ (learning by doing) था। ड्यूवी का मानना था कि शिक्षा एक जीवन प्रक्रिया है, न कि केवल जानकारी का संग्रह। उनके अनुसार, छात्रों को केवल निष्क्रिय श्रोता नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें अपनी इंद्रियों और अनुभवों का उपयोग करके सक्रिय रूप से सीखना चाहिए। उन्होंने स्कूलों को समाज की एक छोटी इकाई के रूप में देखा जहाँ छात्र वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करके सीखते हैं।
अन्य मनोवैज्ञानिकों का योगदान
-
फ्रॉबेल (Froebel): फ्रेडरिक फ्रॉबेल ने भी ‘करके सीखने’ पर जोर दिया, खासकर किंडरगार्टन (Kindergarten) की अवधारणा में। उन्होंने खेल और रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को सीखने के लिए प्रोत्साहित किया।
-
रॉस (Ross): विलियम रॉस ने शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में योगदान दिया, लेकिन ‘करके सीखने’ पर उनका जोर ड्यूवी जितना नहीं था।
-
जॉर्ज पेन (George Payne): जॉर्ज पेने ने व्यावसायिक शिक्षा (vocational education) के क्षेत्र में काम किया।
हालांकि फ्रॉबेल ने भी ‘करके सीखने’ पर जोर दिया, लेकिन जॉन ड्यूवी को इस सिद्धांत का सबसे प्रमुख और प्रभावशाली समर्थक माना जाता है, खासकर आधुनिक शिक्षा के संदर्भ में।
Q24. ‘प्रभावी शिक्षण मॉडल’ के निम्नांकित चार तथ्यों में से कौनसा एक छात्रों में न्यूनतम प्रभाव डालता है –
(a) आगे के लिए ‘उत्सुकता’ पैदा करना
(b) ‘सूचना’ को स्पष्ट करना
(c) सूझबूझ की जांच करना
(d) स्वयं सीखने के अवसर देना
Ans: (b)
‘प्रभावी शिक्षण मॉडल’ के चार तथ्यों में से (b) ‘सूचना’ को स्पष्ट करना छात्रों में न्यूनतम प्रभाव डालता है।
प्रभावी शिक्षण और उसका प्रभाव
प्रभावी शिक्षण का लक्ष्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करना है।
-
‘उत्सुकता’ पैदा करना (Arouse Curiosity): जब छात्रों में किसी विषय के प्रति उत्सुकता पैदा होती है, तो वे स्वयं जानकारी खोजने और सीखने के लिए प्रेरित होते हैं। यह सीखने की प्रक्रिया को गहरा और अधिक प्रभावशाली बनाता है।
-
सूझबूझ की जांच करना (Check for Understanding): यह सुनिश्चित करता है कि छात्र केवल जानकारी याद नहीं कर रहे हैं, बल्कि वास्तव में उसे समझ रहे हैं। यह छात्रों को अपने ज्ञान को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो सीखने को अधिक प्रभावी बनाता है।
-
स्वयं सीखने के अवसर देना (Provide Opportunities for Self-Learning): यह छात्रों में आत्मनिर्भरता और समस्या-समाधान कौशल विकसित करता है। यह सबसे प्रभावी शिक्षण रणनीतियों में से एक है।
‘सूचना’ को स्पष्ट करना
इसके विपरीत, ‘सूचना’ को स्पष्ट करना शिक्षण का एक बुनियादी और प्रारंभिक हिस्सा है। हालांकि यह आवश्यक है, लेकिन यह छात्रों में केवल निष्क्रिय ज्ञान (passive knowledge) का विकास करता है। यह छात्रों को सक्रिय रूप से सोचने, अन्वेषण करने या ज्ञान को लागू करने के लिए प्रेरित नहीं करता है। इसलिए, यह अन्य विकल्पों की तुलना में छात्रों के समग्र विकास पर न्यूनतम प्रभाव डालता है।
Q25. अच्छी शिक्षा है ‘स्वशिक्षा’ अत: अच्छा शासन ‘स्वशासन’ प्रजातंत्र कहलाता है। यह राय व्यक्त की है –
(a) गिलक्रिस्ट
(b) बर्क
(c) बर्न
(d) जे. एस. मिल
Ans: (d)
यह राय जे. एस. मिल (J. S. Mill) ने व्यक्त की है।
जॉन स्टुअर्ट मिल और स्वशासन
जॉन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill) एक प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक, अर्थशास्त्री और राजनीतिक विचारक थे। उन्होंने स्वतंत्रता, लोकतंत्र और शिक्षा पर गहन विचार व्यक्त किए।
-
स्वतंत्रता और स्वशासन: मिल का मानना था कि व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को विकसित करने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। उनके अनुसार, जिस तरह एक व्यक्ति स्वयं को शिक्षित करके सर्वोत्तम ज्ञान प्राप्त कर सकता है, उसी तरह एक समाज भी स्वशासन (self-governance) के माध्यम से सर्वोत्तम विकास प्राप्त कर सकता है।
-
शिक्षा और लोकतंत्र: मिल ने शिक्षा को लोकतंत्र की सफलता के लिए एक अनिवार्य शर्त माना। उनका मानना था कि एक शिक्षित नागरिक ही तर्कसंगत निर्णय ले सकता है और सरकार में प्रभावी ढंग से भाग ले सकता है। इस प्रकार, उन्होंने ‘स्वशिक्षा’ को व्यक्ति के लिए और ‘स्वशासन’ को समाज के लिए सर्वोत्तम मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया।
Q26. प्रजातंत्रीय शिक्षा से तात्पर्य है –
(a) शिक्षा में संख्यात्मक प्रक्रिया की वृद्धि करना
(b) छात्रों के रचनात्मक कौशलों में वृद्धि लाना
(c) पिछड़े हुए वर्ग में शिक्षा को आगे बढ़ाना
(d) अधिगम प्रक्रिया राष्ट्रीय एकता के लिए हो
Ans: (b)
प्रजातंत्रीय शिक्षा (Democratic Education) से तात्पर्य है (b) छात्रों के रचनात्मक कौशलों में वृद्धि लाना।
प्रजातंत्रीय शिक्षा का उद्देश्य
प्रजातंत्रीय शिक्षा का मूल विचार यह है कि शिक्षा केवल जानकारी देने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य छात्रों को जिम्मेदार और सक्रिय नागरिक बनने के लिए तैयार करना है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और सहिष्णुता के लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है।
-
छात्रों के रचनात्मक कौशलों में वृद्धि लाना: प्रजातंत्रीय शिक्षा छात्रों को स्वतंत्र रूप से सोचने, आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करने और समस्याओं का रचनात्मक समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह उन्हें केवल नियमों का पालन करने के बजाय अपने विचारों को व्यक्त करने और निर्णय लेने का अवसर देती है। यह दृष्टिकोण छात्रों को लोकतंत्र में भाग लेने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करता है।
अन्य विकल्प
-
शिक्षा में संख्यात्मक प्रक्रिया की वृद्धि करना: यह शिक्षा के मात्रात्मक पहलुओं पर जोर देता है, जैसे कि नामांकन दर या पास प्रतिशत बढ़ाना, जो प्रजातंत्रीय शिक्षा का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य नहीं है।
-
पिछड़े हुए वर्ग में शिक्षा को आगे बढ़ाना: यह शिक्षा के एक महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य को दर्शाता है, लेकिन यह केवल प्रजातंत्रीय शिक्षा का एक पहलू है, न कि उसकी पूरी परिभाषा।
-
अधिगम प्रक्रिया राष्ट्रीय एकता के लिए हो: यह भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक लक्ष्य है, लेकिन यह प्रजातंत्रीय शिक्षा की पूरी अवधारणा को परिभाषित नहीं करता है, जो अधिक व्यापक है और व्यक्तिगत विकास और नागरिक भागीदारी पर केंद्रित है।
Q27. निम्नांकित में से कौनसा शिक्षा का अभिकरण नहीं है –
(a) घर
(b) विद्यालय
(c) संसद
(d) मीडिया
Ans: (c)
इनमें से संसद शिक्षा का अभिकरण (agency) नहीं है।
शिक्षा के अभिकरण
शिक्षा के अभिकरण वे संस्थाएँ और निकाय हैं जो किसी न किसी रूप में व्यक्ति की शिक्षा और विकास को प्रभावित करते हैं। इन अभिकरणों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
-
औपचारिक अभिकरण (Formal Agencies): ये वे संस्थाएँ हैं जिनका उद्देश्य सुनियोजित तरीके से शिक्षा प्रदान करना है। इनके पास एक निश्चित पाठ्यक्रम, समय सारणी और मूल्यांकन प्रणाली होती है।
-
उदाहरण: विद्यालय, महाविद्यालय, और विश्वविद्यालय।
-
-
अनौपचारिक अभिकरण (Informal Agencies): ये वे संस्थाएँ हैं जहाँ व्यक्ति अनजाने में या स्वाभाविक रूप से सीखता है। इनके पास कोई निश्चित पाठ्यक्रम या उद्देश्य नहीं होता।
-
उदाहरण: घर, परिवार, और पड़ोस।
-
-
गैर-औपचारिक अभिकरण (Non-formal Agencies): ये वे संस्थाएँ हैं जो औपचारिक प्रणाली के बाहर शिक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन उनका उद्देश्य और पाठ्यक्रम निश्चित होता है।
-
उदाहरण: मीडिया (टीवी, इंटरनेट), पुस्तकालय, और संग्रहालय।
-
संसद (Parliament)
संसद एक विधायी निकाय (legislative body) है जिसका मुख्य कार्य कानून बनाना और देश की नीतियों का निर्धारण करना है। हालाँकि, यह शिक्षा से संबंधित नीतियाँ और कानून बना सकती है, लेकिन यह स्वयं एक शैक्षिक अभिकरण के रूप में कार्य नहीं करती, जिसका अर्थ है कि यह सीधे तौर पर शिक्षा प्रदान नहीं करती।
Q28. 1909 में प्रथम बाल निर्देशन क्लिनिक का निर्माण किया –
(a) विलियम हिले
(b) जॉन डीवी
(c) थार्नडाईक
(d) वाटसन
Ans: (a)
1909 में प्रथम बाल निर्देशन क्लिनिक का निर्माण विलियम हिले (William Healy) ने किया।
बाल निर्देशन क्लिनिक का निर्माण
विलियम हिले एक अमेरिकी मनोचिकित्सक थे, जिन्हें बाल मार्गदर्शन आंदोलन (Child Guidance Movement) का जनक माना जाता है। उन्होंने और उनकी पत्नी, ग्रेस फर्नांडिस हीली, ने 1909 में शिकागो में जुवेनाइल साइकोपैथिक इंस्टीट्यूट (Juvenile Psychopathic Institute) की स्थापना की। यह दुनिया का पहला बाल निर्देशन क्लिनिक था।
इस क्लिनिक का उद्देश्य किशोर अपराध (juvenile delinquency) के कारणों का वैज्ञानिक अध्ययन करना था। हीले का मानना था कि अपराध केवल सामाजिक या आर्थिक कारकों का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं। इस क्लिनिक ने बच्चों के व्यवहार संबंधी समस्याओं को समझने और उनका उपचार करने के लिए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण (multidisciplinary approach) अपनाया, जिसमें मनोचिकित्सा, सामाजिक कार्य और मनोविज्ञान का संयोजन शामिल था।
अन्य विकल्प:
-
जॉन डीवी: प्रगतिशील शिक्षा के जनक।
-
थार्नडाइक: अधिगम के सिद्धांतों, विशेषकर प्रभाव के नियम, के लिए जाने जाते हैं।
-
वाटसन: व्यवहारवाद के जनक।
Q29. समाजमिति विधि का मापन में प्रयोग किया जा सकता है –
(a) बुद्धि के
(b) समूह संसजकता के
(c) अधिक्षमता के
(d) रूचि के
Ans: (b)
समाजमिति (Sociometry) विधि का प्रयोग समूह संसजकता (Group Cohesiveness) के मापन में किया जा सकता है।
समाजमिति क्या है?
समाजमिति एक विधि है जिसका उपयोग किसी समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों, आकर्षण, अस्वीकृति और संरचना को मापने के लिए किया जाता है। इसका विकास जे. एल. मोरेनो (J. L. Moreno) द्वारा किया गया था। इस विधि में, समूह के सदस्यों से पूछा जाता है कि वे कुछ विशेष गतिविधियों के लिए किन सदस्यों को चुनना पसंद करेंगे या नापसंद करेंगे।
समूह संसजकता का मापन
समाजमिति विधि से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग करके यह निर्धारित किया जा सकता है कि कोई समूह कितना एकजुट है, यानी समूह संसजकता (Group Cohesiveness) कितनी है। संसजकता का अर्थ है कि समूह के सदस्य एक-दूसरे से कितना जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को कितना पसंद करते हैं। एक उच्च संसजक समूह (highly cohesive group) वह होता है जिसके सदस्य एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक भावना रखते हैं और एक साथ रहना और काम करना पसंद करते हैं।
इस विधि का उपयोग यह पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है कि कौन से सदस्य लोकप्रिय हैं (sociometric stars), कौन से सदस्य अलग-थलग हैं (isolates) और कौन से सदस्य अस्वीकृत हैं (rejected)।
अन्य विकल्पों का मूल्यांकन
-
बुद्धि (Intelligence): बुद्धि को मापने के लिए बुद्धि परीक्षणों (intelligence tests) का उपयोग किया जाता है, जैसे कि स्टैनफोर्ड-बिनेट्स स्केल।
-
अधिक्षमता (Aptitude): अधिक्षमता को मापने के लिए अभिक्षमता परीक्षणों (aptitude tests) का उपयोग किया जाता है।
-
रुचि (Interest): रुचि को मापने के लिए रुचि सूची (interest inventories) का उपयोग किया जाता है।
Q30. निम्नांकित में से कौनसा ‘समन्वित शिक्षा’ में रूचिवान् है –
(a) प्लेटो
(b) टैगोर
(c) अरविन्द
(d) गांधीजी
Ans: (d)
दिए गए विकल्पों में से, गांधीजी ‘समन्वित शिक्षा’ में रुचिवान् थे।
गांधीजी और समन्वित शिक्षा
गांधीजी ने शिक्षा की एक ऐसी प्रणाली की कल्पना की थी जो बच्चों के समग्र विकास (holistic development) पर केंद्रित हो। उनकी ‘नई तालीम’ या ‘बुनियादी शिक्षा’ की अवधारणा इसी सिद्धांत पर आधारित थी।
-
समग्र विकास: गांधीजी का मानना था कि शिक्षा केवल बौद्धिक विकास तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें बच्चे के शरीर, मन और आत्मा का विकास भी शामिल होना चाहिए।
-
हस्तकला पर जोर: उन्होंने हस्तकला (craft-centered education) को शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उनका तर्क था कि हस्तकला के माध्यम से बच्चे न केवल व्यावसायिक कौशल सीखते हैं, बल्कि इससे उनका मानसिक और शारीरिक समन्वय भी बेहतर होता है।
-
जीवन से जोड़ना: गांधीजी चाहते थे कि शिक्षा को वास्तविक जीवन से जोड़ा जाए, ताकि बच्चे जो कुछ भी सीखें, वह उनके लिए उपयोगी हो।
इस प्रकार, गांधीजी की शिक्षा की अवधारणा ‘समन्वित शिक्षा’ (integrated education) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो बौद्धिक, शारीरिक और नैतिक विकास को एक साथ जोड़ती है।
Q31. ब्रेल विधि का उपयोग किसके अध्यापन में होता है –
(a) अंधे बालकों
(b) बहरे व गूंगे बालकों
(c) पिछड़े बालकों
(d) प्रतिभाशाली बालकों
Ans: (a)
ब्रेल विधि का उपयोग अंधे बालकों के अध्यापन में होता है।
ब्रेल विधि क्या है?
ब्रेल (Braille) एक स्पर्शनीय लेखन प्रणाली है जिसे लुई ब्रेल द्वारा विकसित किया गया था। इस प्रणाली में कागज़ पर उभरे हुए बिंदुओं की एक श्रृंखला होती है, जिसे अंधे व्यक्ति अपनी उँगलियों से छूकर पढ़ सकते हैं। प्रत्येक अक्षर, संख्या या विराम चिह्न को छह बिंदुओं के एक मैट्रिक्स के विभिन्न संयोजनों द्वारा दर्शाया जाता है। यह विधि अंधे लोगों को पढ़ने और लिखने में सक्षम बनाती है, जिससे वे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और दुनिया के साथ अधिक प्रभावी ढंग से जुड़ सकते हैं।
अन्य विकल्प
-
बहरे व गूंगे बालकों: इन बालकों के लिए सांकेतिक भाषा (Sign Language) का उपयोग किया जाता है।
-
पिछड़े बालकों: इनके लिए विशेष शिक्षण विधियाँ और उपचारात्मक शिक्षण (remedial teaching) का उपयोग किया जाता है।
-
प्रतिभाशाली बालकों: इनके लिए संवर्धन (enrichment) और त्वरण (acceleration) जैसे कार्यक्रम अपनाए जाते हैं।
Q32. प्रयोजना विधि के जन्मदाता थे –
(a) पेस्टोलॉजी
(b) डीवी
(c) किलपेट्रिक
(d) स्पेन्सर
Ans: (c)
प्रयोजना विधि (Project Method) के जन्मदाता (c) किलपेट्रिक (Kilpatrick) थे।
प्रयोजना विधि (Project Method)
प्रयोजना विधि एक शिक्षण विधि है जो करके सीखने (learning by doing) के सिद्धांत पर आधारित है। इसे किलपेट्रिक (William Heard Kilpatrick) ने प्रतिपादित किया था। यह विधि जॉन ड्यूवी (John Dewey) के विचारों से बहुत प्रभावित है, जो मानते थे कि शिक्षा को वास्तविक जीवन की समस्याओं से जोड़ना चाहिए।
इस विधि में, छात्र एक उद्देश्य-पूर्ण परियोजना पर काम करते हैं जो उनके वास्तविक जीवन से संबंधित होती है। शिक्षक केवल एक मार्गदर्शक या सहायक (facilitator) के रूप में कार्य करता है। यह विधि छात्रों में समस्या-समाधान, आलोचनात्मक सोच, सहयोग और आत्मनिर्भरता जैसे कौशलों का विकास करती है।
अन्य विकल्प
-
पेस्टोलॉजी (Pestalozzi): इन्होंने बच्चों की शिक्षा में अवलोकन (observation) और इंद्रियों के उपयोग पर जोर दिया।
-
जॉन ड्यूवी (John Dewey): उन्होंने प्रयोजना विधि का सैद्धांतिक आधार प्रदान किया, लेकिन इसे एक शिक्षण विधि के रूप में व्यवस्थित करने और प्रतिपादित करने का श्रेय किलपेट्रिक को दिया जाता है।
-
स्पेन्सर (Spencer): इन्होंने ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ (survival of the fittest) के सिद्धांत को शिक्षा पर लागू किया।
Q33. बाल – मनोविज्ञान का केन्द्र बिन्दु है –
(a) अच्छा शिक्षक
(b) बालक
(c) शिक्षण प्रक्रिया
(d) विद्यालय
Ans: (b)
बाल मनोविज्ञान का केंद्र बिंदु (b) बालक है।
बाल मनोविज्ञान (Child Psychology)
बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक शाखा है जो बच्चों के व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को समझना है। इसलिए, इस पूरे अध्ययन का केंद्रबिंदु बालक होता है।
-
अच्छा शिक्षक (Good Teacher): एक अच्छा शिक्षक बाल मनोविज्ञान का उपयोग करके बालक की ज़रूरतों को समझता है।
-
शिक्षण प्रक्रिया (Teaching Process): शिक्षण प्रक्रिया बालक के विकास के लिए एक साधन है।
-
विद्यालय (School): विद्यालय वह वातावरण है जहाँ बालक सीखता है।
ये सभी घटक महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ये सभी बालक के इर्द-गिर्द घूमते हैं। बाल मनोविज्ञान का अंतिम लक्ष्य बालक के सर्वांगीण विकास में सहायता करना है।
Q34. प्रगतिशील शिक्षा के सदंर्भ में ‘समान शैक्षिक अवसर’ से अभिप्राय है कि सभी छात्र ……………….. |
(a) किसी भी जाति, पंथ, रंग, क्षेत्र व धर्म के होते हुए भी समान शिक्षा प्राप्त करे
(b) समान शिक्षा पाने के बाद अपनी क्षमताओं को सिद्ध कर सकें
(c) बिना किसी भेद के समान पद्धतियों व सामग्रियों से शिक्षा प्राप्त करें
(d) एसी शिक्षा पाएं जो उनके लिए अनुकूलतम हो तथा उनके भविष्य के कार्यों में सहायक हो
Ans: (d)
प्रगतिशील शिक्षा के संदर्भ में ‘समान शैक्षिक अवसर’ से अभिप्राय है कि सभी छात्र (d) एसी शिक्षा पाएं जो उनके लिए अनुकूलतम हो तथा उनके भविष्य के कार्यों में सहायक हो।
समान शैक्षिक अवसर का अर्थ
प्रगतिशील शिक्षा में ‘समान शैक्षिक अवसर’ का अर्थ केवल सभी छात्रों को एक ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना नहीं है। यह उससे कहीं अधिक व्यापक है। इसका मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक छात्र को उसकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, रुचियों और क्षमताओं के अनुसार शिक्षा मिले, ताकि वह अपनी अधिकतम क्षमता तक पहुँच सके।
-
व्यक्तिगत अनुकूलन: यह मानता है कि सभी छात्र एक जैसे नहीं होते हैं। उनकी सीखने की गति, रुचियाँ और क्षमताएँ अलग-अलग होती हैं। इसलिए, शिक्षा को उनके लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए।
-
भविष्य की तैयारी: प्रगतिशील शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को उनके भविष्य के जीवन और कार्यों के लिए तैयार करना है। इसमें उन्हें वे कौशल और ज्ञान प्रदान करना शामिल है जो उनके लिए व्यक्तिगत रूप से प्रासंगिक और उपयोगी हों।
इस प्रकार, यह केवल समानता पर नहीं, बल्कि समानता के साथ-साथ व्यक्तिगत भिन्नताओं का सम्मान करने पर भी जोर देता है। विकल्प (a) और (c) केवल समान शिक्षा की बात करते हैं, जो प्रगतिशील शिक्षा के व्यापक दृष्टिकोण को पूरी तरह से नहीं दर्शाते।
Q35. ‘शिक्षा मनो विज्ञान का अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक और मनोविज्ञान से है, जो व्यवहार संबंधी विज्ञान ग्रहण करता है।’ यह कथन किसका है –
(a) स्कीनर
(b) एलिस क्रो
(c) टेलफोर्ड
(d) कोलेसनिक
Ans: (a)
- स्कीनर एक प्रसिद्ध व्यवहारवादी थे जिन्होंने सीखने और व्यवहार पर गहन अध्ययन किया।
- इस कथन के माध्यम से उन्होंने बताया कि शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षा (जो एक सामाजिक प्रक्रिया है) और मनोविज्ञान (जो व्यवहार का विज्ञान है) दोनों के सिद्धांतों को मिलाकर बना है।
Q36. वर्तमान समय में मनोविज्ञान है –
(a) मस्तिष्क का विज्ञान
(b) व्यवहार का विज्ञान
(c) चेतना का विज्ञान
(c) आत्मा का विज्ञान
Ans: (b)
वर्तमान समय में मनोविज्ञान (b) व्यवहार का विज्ञान है।
मनोविज्ञान का विकास
मनोविज्ञान की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है:
-
आत्मा का विज्ञान: सबसे पहले, मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र की एक शाखा के रूप में आत्मा के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया था। यह प्लेटो और अरस्तू जैसे दार्शनिकों का दृष्टिकोण था।
-
मन या मस्तिष्क का विज्ञान: 17वीं शताब्दी में, मनोविज्ञान को मन या मस्तिष्क के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया। जॉन लॉक जैसे विचारकों ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया।
-
चेतना का विज्ञान: 19वीं शताब्दी में, विशेषकर विलियम वुण्ट और विलियम जेम्स जैसे मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को चेतना के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने आंतरिक अनुभवों और मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया।
-
व्यवहार का विज्ञान: 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, जे.बी. वाटसन जैसे व्यवहारवादियों ने मनोविज्ञान को अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने तर्क दिया कि मन या चेतना जैसी अमूर्त अवधारणाओं का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता।
आज, मनोविज्ञान को मुख्य रूप से व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो व्यवहारवाद के दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह मानव व्यवहार और उसके पीछे की प्रक्रियाओं, जैसे कि सोचना, महसूस करना और समझना, का अध्ययन करता है।
Q37. शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध है –
A. शिक्षक से
B. शिक्षण से
C. कक्षाकक्ष वातावरण से
D. विद्यार्थी से
निम्न में से कौन सा सबसे अच्छा विकल्प है –
(a) सिर्फ D
(b) A और D
(c) B,C और D
(d) A,B,C और D
Ans: (d)
शिक्षा मनोविज्ञान का संबंध दिए गए सभी विकल्पों से है, इसलिए सबसे अच्छा विकल्प (d) A, B, C और D है।
शिक्षा मनोविज्ञान का व्यापक संबंध
शिक्षा मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है जो शिक्षा से संबंधित सभी पहलुओं का अध्ययन करता है। यह सीखने-सिखाने की पूरी प्रक्रिया को समझने और उसमें सुधार करने पर केंद्रित है। इसका संबंध केवल विद्यार्थी से नहीं, बल्कि उस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) से है जिसमें सीखना होता है।
-
शिक्षक (Teacher): शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को छात्रों की ज़रूरतों को समझने, उनकी सीखने की शैली को पहचानने और प्रभावी शिक्षण विधियों को विकसित करने में मदद करता है।
-
शिक्षण (Teaching): यह सीखने के सिद्धांतों, शिक्षण रणनीतियों और मूल्यांकन की तकनीकों का अध्ययन करता है ताकि शिक्षण की प्रक्रिया को वैज्ञानिक और उद्देश्यपूर्ण बनाया जा सके।
-
कक्षा-कक्ष वातावरण (Classroom Environment): यह एक सकारात्मक और सहायक सीखने का माहौल बनाने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें छात्रों के सामाजिक और भावनात्मक विकास को भी शामिल किया जाता है।
-
विद्यार्थी (Student): शिक्षा मनोविज्ञान का केंद्र बिंदु हमेशा विद्यार्थी होता है। यह उनकी बुद्धि, प्रेरणा, व्यक्तित्व, और व्यक्तिगत भिन्नताओं का अध्ययन करता है ताकि उन्हें उनके अधिकतम क्षमता तक पहुँचने में मदद मिल सके।
ये सभी कारक आपस में जुड़े हुए हैं और एक प्रभावी शैक्षिक प्रणाली बनाने के लिए एक साथ काम करते हैं। इसलिए, शिक्षा मनोविज्ञान का संबंध इन सभी से है।
Q38. ‘बालक खेल द्वारा सीखता है’ – यह तथ्य सबसे अधिक शैक्षिक उपयोगी मनोवैज्ञानिक क्रिया क्यों है –
(a) खेल से बालक प्रसन्नचित बना रहता है
(b) खेल जीवन के लिए आवश्यक दवा है
(c) दैनिक कार्य से बची हुई शक्ति खेल में प्रयुक्त ऊर्जा है
(d) खेल बालक को उसके भावी – जीवन – व्यवसाय के लिए तैयार करता है
Ans: (d)
‘बालक खेल द्वारा सीखता है’ यह तथ्य सबसे अधिक शैक्षिक उपयोगी है क्योंकि (d) खेल बालक को उसके भावी-जीवन-व्यवसाय के लिए तैयार करता है।
खेल का शैक्षिक महत्व
यह कथन इस बात पर जोर देता है कि खेल केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण शैक्षिक और विकासात्मक प्रक्रिया है।
-
समस्या-समाधान और कौशल विकास: खेल में बच्चे अक्सर काल्पनिक स्थितियों का सामना करते हैं, जिससे उन्हें समस्या-समाधान, निर्णय लेने और रचनात्मकता जैसे महत्वपूर्ण कौशल विकसित करने का अवसर मिलता है।
-
सामाजिक और भावनात्मक विकास: खेलों के माध्यम से बच्चे सहयोग करना, नियमों का पालन करना, नेतृत्व करना और दूसरों के साथ बातचीत करना सीखते हैं। ये सभी कौशल उनके भावी जीवन के लिए आवश्यक हैं।
-
व्यावहारिक ज्ञान: कई खेल बच्चों को उनके भावी व्यवसायों के लिए आवश्यक व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, एक बच्चा जो डॉक्टर-डॉक्टर खेलता है, वह सामाजिक भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझना सीखता है।
यह सत्य है कि खेल से बालक प्रसन्नचित्त रहता है (a) और यह एक आवश्यक दवा है (b), लेकिन ये खेल के केवल भावनात्मक और शारीरिक लाभ हैं। शैक्षिक उपयोगिता के संदर्भ में, खेल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह बच्चों को उनके भविष्य के लिए तैयार करता है, जो उन्हें अधिक स्वतंत्र और जिम्मेदार बनाता है।
Q39. बर्हिमुखी निरीक्षण में सम्मिलित नहीं है –
(a) अन्य के व्यवहार का परीक्षण करना
(b) दूसरों के विचारों पर आधारित विचारधारा बनाना
(c) दूसरे की क्रियाओं का अनुसरण करना
(d) अन्य की क्रियाओं की आलोचना करना
Ans: (d)
बर्हिमुखी निरीक्षण में (d) अन्य की क्रियाओं की आलोचना करना सम्मिलित नहीं है।
बर्हिमुखी निरीक्षण (Extrovert Observation) क्या है?
बर्हिमुखी निरीक्षण (या बाह्य निरीक्षण) का अर्थ है किसी व्यक्ति के व्यवहार, कार्यों और प्रतिक्रियाओं का वस्तुनिष्ठ (objective) रूप से अवलोकन करना। यह अवलोकन व्यक्ति के बाहरी व्यवहार पर केंद्रित होता है। इस विधि में शोधकर्ता या व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के व्यवहार का निष्पक्ष रूप से अध्ययन करता है ताकि उसके बारे में जानकारी एकत्र की जा सके।
विकल्पों का विश्लेषण
-
अन्य के व्यवहार का परीक्षण करना: यह बाह्य निरीक्षण का एक मुख्य कार्य है, जिसमें दूसरे व्यक्ति के व्यवहार को ध्यानपूर्वक देखा जाता है।
-
दूसरों के विचारों पर आधारित विचारधारा बनाना: जब हम किसी दूसरे के व्यवहार को देखते हैं, तो हम अक्सर उनके विचारों और दृष्टिकोणों के बारे में निष्कर्ष निकालते हैं। यह भी इस प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
-
दूसरे की क्रियाओं का अनुसरण करना: किसी की क्रियाओं का अनुसरण करना उनके व्यवहार को समझने का एक तरीका है।
-
अन्य की क्रियाओं की आलोचना करना: आलोचना करना एक व्यक्तिपरक (subjective) प्रक्रिया है जिसमें हम अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों और मूल्यों के आधार पर किसी और के व्यवहार का मूल्यांकन करते हैं। यह एक वैज्ञानिक या वस्तुनिष्ठ निरीक्षण विधि का हिस्सा नहीं है। वैज्ञानिक निरीक्षण का उद्देश्य केवल व्यवहार को रिकॉर्ड करना और समझना होता है, न कि उसका मूल्यांकन या आलोचना करना।
Q40. शारीरिक सुंदरता और सर्वांगीण आत्मा परस्पर एक दूसरे को उन्नत बना ने में सहायक है।’ उपरोक्त कथन निम्न में से कि सके शैक्षिक विचारों की पुष्टि करता है –
(a) हरबर्ट
(b) प्लेटो
(c) ड्यूवी
(d) पेस्टॉलोजी
Ans: (b)
यह कथन (b) प्लेटो के शैक्षिक विचारों की पुष्टि करता है।
प्लेटो के शैक्षिक विचार
प्लेटो (Plato) एक प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक थे। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल शारीरिक या बौद्धिक विकास नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध स्थापित करना है।
-
शारीरिक सुंदरता: प्लेटो ने व्यायाम (gymnastics) और शारीरिक प्रशिक्षण को शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उनका मानना था कि एक स्वस्थ शरीर ही एक स्वस्थ मन का निवास होता है।
-
सर्वांगीण आत्मा (Integral Soul): उनके अनुसार, शिक्षा का अंतिम लक्ष्य आत्मा को उसके सर्वोच्च रूप तक पहुँचाना है, जिसमें नैतिकता, तर्क और ज्ञान शामिल हैं।
-
परस्पर संबंध: प्लेटो ने कहा कि शारीरिक प्रशिक्षण और संगीत (music) व्यक्ति की आत्मा और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करते हैं, जिससे दोनों एक दूसरे को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं।
यह विचार प्लेटो के आदर्शवादी दर्शन (Idealistic Philosophy) का हिस्सा है, जिसमें उन्होंने शिक्षा को व्यक्ति के समग्र और नैतिक विकास का एक साधन माना था।
Q41. शिक्षा का मनोवैज्ञानिक सर्वोत्तम उद्देश्य क्या है –
(a) व्यक्ति का पूर्ण विकास करना
(b) व्यक्ति को रोजी – रोटी कमाने हेतु बनाना
(c) व्यक्ति को बालकों को पढाने में निपुण बनाना
(d) व्यक्ति को स्वकेन्द्रित बनाना
Ans: (a)
शिक्षा का मनोवैज्ञानिक सर्वोत्तम उद्देश्य (a) व्यक्ति का पूर्ण विकास करना है।
शिक्षा का मनोवैज्ञानिक उद्देश्य
मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में, शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना या किसी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य के लिए तैयार करना नहीं है। इसका मुख्य लक्ष्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास (holistic development) करना है।
इसमें शामिल है:
-
शारीरिक विकास: व्यक्ति का स्वास्थ्य और शारीरिक क्षमता।
-
मानसिक और बौद्धिक विकास: तर्क, आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान कौशल।
-
सामाजिक विकास: दूसरों के साथ सहयोग करना और समाज में प्रभावी ढंग से रहना।
-
नैतिक और भावनात्मक विकास: सही-गलत की समझ और भावनाओं को नियंत्रित करना।
यह सभी पहलू मिलकर व्यक्ति को एक संतुलित और जिम्मेदार इंसान बनाते हैं। अन्य विकल्प (b, c, d) शिक्षा के सीमित और आंशिक उद्देश्यों को दर्शाते हैं। व्यक्ति को रोजी-रोटी कमाना सिखाना या पढ़ाने में निपुण बनाना केवल कुछ विशिष्ट कौशल विकसित करता है, जबकि व्यक्ति को स्व-केंद्रित बनाना शिक्षा का एक नकारात्मक परिणाम है।
Q42. प्रभावशाली शिक्षक बनने के लिए आवश्यक है कि –
(a) वह अपने विषय को अच्छी प्रकार जानता हो
(b) वह अपने विद्यार्थियों से अधिकतम संभव अंतक्रियाएं करे
(c) उसे शिक्षण – विधियों का पूरा ज्ञान हो
(d) उपर्युक्त सभी
Ans: (d)
एक प्रभावशाली शिक्षक बनने के लिए, उपर्युक्त सभी गुण आवश्यक हैं।
प्रभावशाली शिक्षक के गुण
एक प्रभावशाली शिक्षक वह होता है जो न केवल छात्रों को जानकारी देता है, बल्कि उन्हें सीखने के लिए प्रेरित भी करता है। इसके लिए, निम्नलिखित गुण आवश्यक हैं:
-
अपने विषय को अच्छी प्रकार जानता हो: एक शिक्षक को अपने विषय का गहरा ज्ञान होना चाहिए ताकि वह छात्रों के सभी प्रश्नों का उत्तर दे सके और विषय-वस्तु को स्पष्ट रूप से समझा सके।
-
अपने विद्यार्थियों से अधिकतम संभव अंतःक्रियाएं करे: शिक्षक और छात्रों के बीच की अंतःक्रिया (interaction) सीखने की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाती है। इससे शिक्षक को छात्रों की सीखने की शैली, रुचियों और समस्याओं को समझने में मदद मिलती है, और छात्र भी अधिक आत्मविश्वास के साथ प्रश्न पूछ सकते हैं।
-
उसे शिक्षण-विधियों का पूरा ज्ञान हो: हर छात्र अलग होता है और हर विषय को पढ़ाने का एक अलग तरीका होता है। विभिन्न शिक्षण-विधियों का ज्ञान होने से शिक्षक हर छात्र की आवश्यकता के अनुसार पढ़ा सकता है और कक्षा को रोचक बना सकता है।
ये सभी गुण एक-दूसरे के पूरक हैं और एक सफल शिक्षक बनने के लिए एक साथ आवश्यक हैं।
Q43. प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों के लिए …………………
(a) शिक्षक को पहल करनी चाहिए और समस्या समाधान में मुख्य भूमिका निभानी चाहिए
(b) अभिक्षमता को कौशल के रूप में समझना सही है
(c) प्रगति का निरीक्षण करने की आवश्यकता सही है
(d) शिक्षक को अनुकूलन करना चाहिए, जैसे विद्यार्थी में बदलाव आता है
Ans: (d)
प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों के लिए, (d) शिक्षक को अनुकूलन करना चाहिए, जैसे विद्यार्थी में बदलाव आता है।
प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों की शिक्षा
प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों के लिए शिक्षा को पारंपरिक तरीकों से अलग होना चाहिए। उनका शिक्षण इस तरह से व्यवस्थित होना चाहिए कि उनकी अनूठी सीखने की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके।
-
शिक्षक की भूमिका: प्रतिभाशाली छात्रों को अतिरिक्त चुनौतियाँ और उन्नत सामग्री प्रदान करने के लिए, शिक्षक को अपनी शिक्षण विधियों को उनके अनुसार अनुकूलित (adapt) करना चाहिए। यह छात्रों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुँचने में मदद करता है।
-
अन्य विकल्प:
-
(a) शिक्षक को पहल करनी चाहिए, लेकिन समस्या-समाधान में मुख्य भूमिका विद्यार्थी को निभानी चाहिए ताकि उनका कौशल विकसित हो सके।
-
(b) अभिक्षमता को एक जन्मजात क्षमता के रूप में समझा जाता है, न कि केवल एक कौशल के रूप में।
-
(c) प्रगति का निरीक्षण करना सभी छात्रों के लिए आवश्यक है, न कि केवल प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों के लिए।
-
Q44. श्री अरविन्द घोष का शिक्षा – दर्शन आधारित था –
(a) आदर्शवाद
(b) यथार्थवाद पर
(c) प्रयोजनवाद पर
(d) उपरोक्त के समन्वय में
Ans: (d)
श्री अरविन्द घोष का शिक्षा-दर्शन (d) उपरोक्त के समन्वय में आधारित था।
श्री अरविन्द का शिक्षा दर्शन
श्री अरविन्द घोष का शिक्षा दर्शन किसी एक विचारधारा, जैसे आदर्शवाद, यथार्थवाद या प्रयोजनवाद, तक सीमित नहीं था। उन्होंने इन सभी के सर्वश्रेष्ठ पहलुओं को मिलाकर एक एकीकृत और आध्यात्मिक शिक्षा प्रणाली (Integral and Spiritual Education System) का निर्माण किया।
-
आदर्शवाद: श्री अरविन्द आदर्शवाद से प्रभावित थे क्योंकि उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति की अंतरात्मा का विकास करना और उसे आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाना है।
-
यथार्थवाद: उन्होंने यथार्थवाद को भी अपनाया, क्योंकि उनका मानना था कि शिक्षा को छात्रों को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए। उन्होंने बच्चों की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक जरूरतों पर ध्यान केंद्रित किया।
-
प्रयोजनवाद: वे प्रयोजनवाद के भी समर्थक थे, क्योंकि उन्होंने करके सीखने (learning by doing) और छात्रों को उनकी रुचियों और क्षमताओं के अनुसार शिक्षा देने पर जोर दिया।
इस प्रकार, श्री अरविन्द का शिक्षा दर्शन इन सभी विचारों का एक समन्वित रूप था, जिसका अंतिम लक्ष्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करके उसे एक पूर्ण मानव बनाना था।
Q45. मनोविज्ञान की यह परिभाषा किस वैज्ञानिक द्वारा दी गई :- ‘सबसे पहले मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग किया, फिर उसने अपने मन या मस्तिष्क का त्याग किया, उसके बाद उसने चेतना का त्याग किया । अब यह व्यवहार का विधि को स्वीकार करता है।’
(a) जेम्स विलियम
(b) क्रो एवं क्रो
(c) वुडवर्थ आर. एस.
(d) स्कीनर
Ans: (c)
मनोविज्ञान की यह परिभाषा (c) वुडवर्थ आर. एस. (Woodworth R.S.) द्वारा दी गई।
वुडवर्थ की परिभाषा का अर्थ
इस परिभाषा में, वुडवर्थ ने मनोविज्ञान के विकास के ऐतिहासिक क्रम को संक्षेप में बताया है:
-
आत्मा का त्याग: मनोविज्ञान की शुरुआत दर्शनशास्त्र की एक शाखा के रूप में हुई, जहाँ इसे आत्मा के विज्ञान के रूप में देखा गया।
-
मन या मस्तिष्क का त्याग: बाद में, इसे मन या मस्तिष्क के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया।
-
चेतना का त्याग: 19वीं शताब्दी में, विलियम वुण्ट जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इसे चेतना के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया।
-
व्यवहार का विधि: 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, जे.बी. वाटसन जैसे व्यवहारवादियों के उदय के साथ, मनोविज्ञान ने अपना ध्यान केवल अवलोकनीय व्यवहार पर केंद्रित कर लिया।
वुडवर्थ की यह परिभाषा मनोविज्ञान के विकास को संक्षेप में दर्शाती है कि कैसे यह एक अमूर्त और आत्म-केंद्रित अनुशासन से एक वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक विषय बन गया।
Q46. निम्नलिखित में से कौ न सा शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति को सबसे उपयुक्त रूप में प्रदशिर्त करता है –
A. धनात्मक विज्ञान
B. नियात्मक विज्ञान
C. व्यवहारगत विज्ञान
उपर्युक्त कोड का प्रयोग करते हुए सही उत्तर छांटिए –
(a) A एवं B
(b) B एवं C
(c) A एवं C
(d) केवल C
Ans: (c)
सही उत्तर (c) A एवं C है।
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति को समझने के लिए, हमें दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर ध्यान देना होगा:
-
धनात्मक विज्ञान (Positive Science): यह एक ऐसा विज्ञान है जो “क्या है” (what is) का अध्ययन करता है, न कि “क्या होना चाहिए” (what ought to be) का। शिक्षा मनोविज्ञान इस बात का अध्ययन करता है कि सीखने की प्रक्रिया वास्तव में कैसे होती है और बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं, न कि उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए।
-
व्यवहारगत विज्ञान (Behavioral Science): शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से व्यवहार का अध्ययन करता है, विशेष रूप से सीखने के संदर्भ में। यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि व्यवहार को कैसे मापा, वर्णित और भविष्यवाणी की जा सकती है।
नियामक विज्ञान (Normative Science)
नियामक विज्ञान (Normative Science) वह विज्ञान है जो मानदंडों और मूल्यों से संबंधित होता है और यह बताता है कि “क्या होना चाहिए”। शिक्षा मनोविज्ञान विशुद्ध रूप से नियामक विज्ञान नहीं है, क्योंकि यह केवल शैक्षिक सिद्धांतों को लागू करता है, न कि नैतिक मानदंडों को स्थापित करता है।
इसलिए, शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति धनात्मक और व्यवहारगत दोनों हैं।
Q47. शिक्षा मनोविज्ञान अध्ययन करता है –
(a) आत्मा का धार्मिक परिस्थितियों में
(b) मानव व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों में
(c) चेतन्यता का असीमित परिस्थितियों में
(d) मस्तिष्क का बौद्धिक परिस्थितियों में
Ans: (b)
शिक्षा मनोविज्ञान मानव व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों में अध्ययन करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान क्या है?
शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक अनुप्रयुक्त शाखा है जो इस बात का वैज्ञानिक अध्ययन करती है कि लोग शैक्षिक परिवेश में कैसे सीखते और सिखाते हैं। यह मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन इसे विशेष रूप से सीखने और शिक्षण के संदर्भ में लागू करता है।
-
यह शिक्षकों को यह समझने में मदद करता है कि विद्यार्थी कैसे सीखते हैं, उनकी सीखने की शैली क्या है और उनकी व्यक्तिगत ज़रूरतों को कैसे पूरा किया जा सकता है।
-
यह शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रणालियों को बेहतर बनाने में भी मदद करता है, ताकि शिक्षा अधिक प्रभावी हो सके।
संक्षेप में, शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार के सिद्धांतों को लागू करता है।
Q48. शारीरिक शिक्षा का ‘स्वर्ण युग’ कहते हैं –
(a) उत्तर एथेन्स काल
(b) स्पार्टा काल
(c) होमर काल
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
Ans: (a)
शारीरिक शिक्षा का ‘स्वर्ण युग’ (a) उत्तर एथेन्स काल को कहते हैं।
उत्तर एथेन्स काल (Post-Athens Period)
उत्तर एथेन्स काल (लगभग 400 ईसा पूर्व से) को शारीरिक शिक्षा का स्वर्ण युग माना जाता है क्योंकि इस दौरान शारीरिक और मानसिक विकास के बीच एक संतुलन स्थापित हुआ।
-
एथेन्स काल: इस अवधि में, शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य केवल शारीरिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि इसे एक स्वस्थ मन और शरीर के विकास के लिए एक साधन के रूप में देखा गया। यहाँ खेल और व्यायाम को शिक्षा का एक अभिन्न अंग माना गया।
-
प्लेटो और अरस्तू का प्रभाव: प्लेटो और अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने शारीरिक शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि शारीरिक और मानसिक शिक्षा दोनों ही एक आदर्श नागरिक के लिए आवश्यक हैं।
अन्य काल
-
स्पार्टा काल (Sparta Period): इस काल में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य पूरी तरह से सैन्य प्रशिक्षण था। इसका लक्ष्य मजबूत सैनिक और योद्धा तैयार करना था, न कि समग्र मानव विकास।
-
होमर काल (Homer Period): यह काल मुख्य रूप से वीरता, साहस और युद्ध के लिए प्रसिद्ध था। इस समय शारीरिक गतिविधियों का उद्देश्य व्यक्तिगत वीरता और युद्ध-कौशल का प्रदर्शन था।
Q49. वर्तमान समय में मनोविज्ञान है –
(a) मस्तिष्क का विज्ञान
(b) व्यवहार का विज्ञान
(c) चेतना का विज्ञान
(d) आत्मा का विज्ञान
Ans: (b)
वर्तमान समय में मनोविज्ञान (b) व्यवहार का विज्ञान है।
मनोविज्ञान की परिभाषा समय के साथ काफी विकसित हुई है। शुरू में इसे आत्मा का अध्ययन माना जाता था, फिर यह मन और चेतना का विज्ञान बना, और अंत में 20वीं सदी में व्यवहारवाद के आगमन के साथ, मनोविज्ञान ने अपना ध्यान केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) पर केंद्रित कर लिया।
आज, मनोविज्ञान को व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह मानव और जानवरों के व्यवहार, सोच, भावनाओं और अनुभवों का अध्ययन करता है, जिससे इसे एक वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक विषय के रूप में स्थापित किया जा सके।
Q50. मनोविज्ञान का ज्ञान उपयोगी है –
(a) शिक्षक के लिए
(b) अभिभावक के लिए
(c) विद्यालय प्रशासक के लिए
(d) उपर्युक्त सभी के लिए
Ans: (d)
मनोविज्ञान का ज्ञान (d) उपर्युक्त सभी के लिए उपयोगी है।
मनोविज्ञान के ज्ञान की उपयोगिता
मनोविज्ञान का ज्ञान मानव व्यवहार को समझने में मदद करता है, और इसलिए यह विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी है:
-
शिक्षक के लिए: एक शिक्षक के लिए मनोविज्ञान का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह उन्हें छात्रों की सीखने की शैली, व्यक्तिगत आवश्यकताओं, प्रेरणा और व्यवहार को समझने में मदद करता है, जिससे वे अपनी शिक्षण विधियों को अधिक प्रभावी बना सकते हैं।
-
अभिभावक के लिए: माता-पिता के लिए मनोविज्ञान का ज्ञान बच्चों के पालन-पोषण में सहायक होता है। यह उन्हें बच्चों के भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास को समझने, उनके व्यवहार की समस्याओं को हल करने और उनके साथ स्वस्थ संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
-
विद्यालय प्रशासक के लिए: विद्यालय प्रशासकों के लिए मनोविज्ञान का ज्ञान विद्यालय के वातावरण को बेहतर बनाने, शिक्षकों और छात्रों के बीच संबंधों को सुगम बनाने और विद्यालय के भीतर अनुशासन बनाए रखने में महत्वपूर्ण है। यह उन्हें विद्यालय के संसाधनों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में भी मदद करता है।
इस प्रकार, मनोविज्ञान का ज्ञान इन सभी व्यक्तियों के लिए आवश्यक है जो शिक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं।
Q51. निम्न में से कौनसा कथन सही नहीं है –
(a) शिक्षा मनोविज्ञान हमें शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीकों के बारे में नहीं बताता
(b) शिक्षा मनोविज्ञान अधिगमकर्ता के विकास के विभिन्न स्तरों पर हमें उसकी योग्यताओं तथा सीमाओं से परिचित कराता है
(c) शिक्षा मनोविज्ञान की क्रियाएं केवल कक्षा कक्ष परिस्थितियों तक सीमित नहीं हैं
(d) शिक्षा मनोविज्ञान अधिगम के सिद्धांतों एवं नियमों को स्थापित करता है
Ans: (a)
दिए गए कथनों में से (a) शिक्षा मनोविज्ञान हमें शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीकों के बारे में नहीं बताता सही नहीं है।
शिक्षा मनोविज्ञान और उसके उद्देश्य
शिक्षा मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है जिसका मुख्य उद्देश्य शैक्षिक प्रक्रियाओं को अधिक प्रभावी बनाना है। यह शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
-
तरीकों के बारे में बताना: शिक्षा मनोविज्ञान हमें यह सिखाता है कि सीखने की प्रक्रिया कैसे काम करती है। यह सीखने के सिद्धांतों और नियमों का उपयोग करके शिक्षकों को ऐसी विधियाँ और रणनीतियाँ विकसित करने में मदद करता है जो छात्रों की व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा कर सकें और अधिगम को प्रभावी बना सकें।
-
विकास के विभिन्न स्तरों की समझ: यह कथन सही है कि शिक्षा मनोविज्ञान हमें बच्चे के विकास के विभिन्न चरणों (जैसे, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था) पर उनकी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक योग्यताओं और सीमाओं से परिचित कराता है। यह शिक्षकों को हर स्तर के अनुसार शिक्षण सामग्री और विधियों को अनुकूलित करने में मदद करता है।
-
कक्षा तक सीमित नहीं: यह कथन भी सही है कि शिक्षा मनोविज्ञान केवल कक्षा की परिस्थितियों तक सीमित नहीं है। इसका उपयोग पाठ्यक्रम विकास, मूल्यांकन प्रणाली, विशेष शिक्षा और यहाँ तक कि विद्यालय प्रशासन में भी होता है।
-
सिद्धांतों और नियमों को स्थापित करना: यह कथन भी सही है। शिक्षा मनोविज्ञान अधिगम के सिद्धांतों (जैसे, थार्नडाइक का प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत) और नियमों को स्थापित करता है, जिनका उपयोग शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है।
Q52. शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की मदद करता है, जब –
(a) वह अध्यापक को बच्चों के प्रति लापरवाह बना देता है
(b) वह अध्यापक को दर्शनशास्त्र और सामाजिक विज्ञान के प्रति उपेक्षित बना देता है
(c) वह आवश्यक पर्यावरण को दूर करता है
(d) वह अध्यापक को अधिगम के नियमों तथा प्रक्रियाओं के प्रति एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है
Ans: (d)
शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की मदद करता है, जब:
(d) वह अध्यापक को अधिगम के नियमों तथा प्रक्रियाओं के प्रति एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान की भूमिका (Role of Educational Psychology)
शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) वह विज्ञान है जो शिक्षा से संबंधित मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है। यह एक अध्यापक की मदद निम्नलिखित रूप से करता है:
-
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: यह अध्यापक को अधिगम (Learning) के सिद्धांतों, बच्चों के विकास की अवस्थाओं, अभिप्रेरणा (Motivation), और बुद्धिमत्ता की प्रक्रियाओं को वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीके से समझने में मदद करता है।
-
समस्या समाधान: यह अध्यापक को कक्षा में आने वाली व्यवहारिक और शैक्षिक समस्याओं (जैसे अनुशासनहीनता, धीमा सीखना, आदि) को वैज्ञानिक नियमों के आधार पर हल करने की क्षमता देता है।
-
शिक्षण विधियों का चयन: यह ज्ञान अध्यापक को बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और विकासात्मक स्तर के अनुसार सबसे प्रभावी शिक्षण विधियों (Teaching Methods) का चयन करने में सक्षम बनाता है।
गलत विकल्पों का स्पष्टीकरण
-
(a) और (b) (लापरवाह बनाना/उपेक्षित बनाना): शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य अध्यापक को अधिक जिम्मेदार और व्यापक दृष्टिकोण वाला बनाना है, न कि लापरवाह या संकीर्ण।
-
(c) (आवश्यक पर्यावरण को दूर करना): शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को सीखने के लिए आवश्यक और अनुकूल पर्यावरण (Conducive Environment) के निर्माण में सहायता करता है, न कि उसे दूर करता है।
Q53. ‘शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत शिक्षा से संबंधित सम्पूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व आ जाता है।’ – यह परिभाषा किसके द्वारा दी गई –
(a) स्कीनर
(b) क्रो एवं क्रो
(c) कोलेसनिक
(d) थार्नडाईक
Ans: (d)
यह परिभाषा (a) स्किनर द्वारा दी गई थी।
स्किनर की परिभाषा का अर्थ
बी.एफ. स्किनर (B. F. Skinner) एक प्रमुख व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने शिक्षा मनोविज्ञान को बहुत ही व्यापक रूप से परिभाषित किया। उनकी परिभाषा के अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र केवल सीखने की प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सीखने वाले व्यक्ति का संपूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व शामिल है।
स्किनर का मानना था कि प्रभावी शिक्षण के लिए, एक शिक्षक को छात्र के समग्र व्यक्तित्व को समझना चाहिए, जिसमें उसकी रुचियाँ, प्रेरणा, और सीखने की क्षमताएँ शामिल हैं। इस प्रकार, शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व के वैज्ञानिक सिद्धांतों को शिक्षा के क्षेत्र में लागू करना है।
Q54. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र है –
(a) बालक
(b) शिक्षक
(c) शिक्षण विधि
(d) पाठ्यक्रम
Ans: (a)
शिक्षा मनोविज्ञान का केंद्र (a) बालक है।
शिक्षा मनोविज्ञान: बाल-केंद्रित दृष्टिकोण
आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य ध्यान बालक पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य बच्चों के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं, और सीखने की शैलियों को समझना है। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन से शिक्षक यह जान पाते हैं कि:
-
बच्चे कैसे सीखते हैं।
-
उनकी व्यक्तिगत ज़रूरतें क्या हैं।
-
उन्हें क्या प्रेरित करता है।
-
वे किन चुनौतियों का सामना करते हैं।
इस ज्ञान का उपयोग करके, शिक्षक अपनी शिक्षण विधियों को बालक के लिए अनुकूलित कर सकते हैं। हालाँकि शिक्षक, शिक्षण विधि और पाठ्यक्रम भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ये सभी घटक अंततः बालक के सर्वांगीण विकास के लिए एक साधन मात्र हैं।
Q55. अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान महत्वपूर्ण है क्योंकि –
(a) उसको शिक्षा मनोविज्ञान में निहित सिद्धांतों को अपने शिक्षण कार्य में प्रयोग करना होता है
(b) वह कक्षा – कक्ष में शिक्षण करते समय अधिगमकर्ताओं के बीच वैयक्तिक भिन्नता का कोई विचार नहीं करता है |
(c) शिक्षण व्यवसाय में मानवीय विकास के नियमों का कोई स्थान नहीं है |
(d) उसके शिक्षण व्यवसाय का अधिगम प्रक्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है |
Ans: (a)
अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान महत्वपूर्ण है क्योंकि (a) उसको शिक्षा मनोविज्ञान में निहित सिद्धांतों को अपने शिक्षण कार्य में प्रयोग करना होता है।
शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व
शिक्षा मनोविज्ञान एक अध्यापक को अपने शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाने में मदद करता है। यह एक वैज्ञानिक अनुशासन है जो शिक्षकों को यह समझने में सहायता करता है कि विद्यार्थी कैसे सीखते हैं, उनकी ज़रूरतें क्या हैं, और उनके व्यवहार को कैसे समझा जा सकता है।
-
सिद्धांतों का प्रयोग: शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत, जैसे कि अधिगम के नियम, प्रेरणा के सिद्धांत और व्यक्तिगत भिन्नताओं की समझ, शिक्षकों को अपनी शिक्षण विधियों को छात्रों के लिए अनुकूलित करने में मदद करते हैं।
-
अन्य विकल्प गलत क्यों हैं:
-
(b) एक अच्छा शिक्षक हमेशा छात्रों के बीच की वैयक्तिक भिन्नता (individual differences) को ध्यान में रखता है। शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान इसी भिन्नता को समझने में मदद करता है।
-
(c) शिक्षण व्यवसाय मानवीय विकास के नियमों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। शिक्षा मनोविज्ञान इन नियमों का अध्ययन करता है।
-
(d) शिक्षण व्यवसाय का अधिगम प्रक्रिया से गहरा संबंध है। शिक्षण का उद्देश्य ही अधिगम को सुगम बनाना है।
-
Q56. ‘शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक सीखने के अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।’ यह कथन है –
(a) स्कीनर
(b) क्रो एवं क्रो
(c) ब्राउन
(d) कुप्पूस्वामी
Ans: (b)
यह कथन (b) क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) का है।
क्रो एवं क्रो की परिभाषा
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों क्रो एवं क्रो ने शिक्षा मनोविज्ञान की एक व्यापक परिभाषा दी है। उनके अनुसार, शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र केवल बचपन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक चलने वाली पूरी सीखने की प्रक्रिया को शामिल करता है। इस परिभाषा में, वे इस बात पर जोर देते हैं कि सीखने के अनुभव जीवन भर जारी रहते हैं और शिक्षा मनोविज्ञान इन अनुभवों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन करता है ताकि व्यक्ति के विकास को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
Q57. सामाजिक नियमों व कानूनों के विरूद्ध व्यवहार करने वाला बालक कहलाता है –
(a) पिछड़ा बालक
(b) मंदबुद्धि बालक
(c) जड़बुद्धि बालक
(d) बाल अपराधी
Ans: (d)
जो बालक सामाजिक नियमों व कानूनों के विरूद्ध व्यवहार करता है, वह (d) बाल अपराधी कहलाता है।
बाल अपराधी (Juvenile Delinquent)
बाल अपराधी वह बालक होता है जिसकी उम्र कानूनी तौर पर नाबालिग होती है, लेकिन वह समाज के मानदंडों और कानूनों के खिलाफ जाकर अपराध करता है। ऐसे व्यवहार में चोरी, तोड़फोड़, हमला करना या अन्य असामाजिक गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं।
-
पिछड़ा बालक (Backward Child): यह वह बालक होता है जो अपनी आयु वर्ग के अन्य बच्चों की तुलना में शैक्षिक रूप से पीछे होता है।
-
मंदबुद्धि बालक (Mentally Retarded Child): यह वह बालक होता है जिसका मानसिक विकास सामान्य से कम होता है, जिससे उसे सीखने और अनुकूलन में कठिनाई होती है।
-
जड़बुद्धि बालक (Idiot Child): यह मंदबुद्धि बालक की एक गंभीर श्रेणी है, जिसमें बालक का मानसिक विकास बहुत कम होता है।
इस प्रकार, सामाजिक और कानूनी नियमों का उल्लंघन करने वाला बालक इन श्रेणियों से अलग होता है और उसे बाल अपराधी कहा जाता है।
Q58. एक अध्यापक शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन के बिना अपना कार्य पूरा नहीं कर सकता, क्योंकि –
(a) शिक्षा मनोविज्ञान वैयक्तिक की निम्नताओं और शिक्षा की समस्याओं के हलों से गहन रूप से सम्बन्धित है
(b) शिक्षा मनोविज्ञान अधिगमकर्ता के व्यक्तिगत तथा सामाजिक समायोजन की उपेक्षा करता है
(c) शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थियों की केवल कतिपय तथ्यों एवं सूचनाओं को रटकर याद कर लेने में मदद करता है
(d) शिक्षा मनोविज्ञान अधिगम के सिद्धांतों एवं नियमों का निर्धारण नहीं करता है
Ans: (a)
एक अध्यापक शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन के बिना अपना कार्य पूरा नहीं कर सकता, क्योंकि (a) शिक्षा मनोविज्ञान वैयक्तिक भिन्नताओं और शिक्षा की समस्याओं के हलों से गहन रूप से सम्बन्धित है।
शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व
शिक्षा मनोविज्ञान एक अध्यापक के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह शिक्षकों को छात्रों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।
-
वैयक्तिक भिन्नता (Individual Differences): शिक्षा मनोविज्ञान हमें बताता है कि प्रत्येक छात्र अद्वितीय होता है। उनकी सीखने की गति, रुचियां, क्षमताएं और पृष्ठभूमि अलग-अलग होती हैं। एक शिक्षक इस ज्ञान का उपयोग करके अपनी शिक्षण विधियों को हर छात्र की व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार अनुकूलित कर सकता है।
-
शैक्षिक समस्याओं का समाधान: यह छात्रों के व्यवहार संबंधी मुद्दों, प्रेरणा की कमी, या सीखने में आने वाली कठिनाइयों जैसे समस्याओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करने में मदद करता है। इस विश्लेषण के आधार पर, शिक्षक इन समस्याओं को हल करने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ विकसित कर सकते हैं।
विकल्प (b), (c), और (d) गलत हैं क्योंकि शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य इसके विपरीत होता है:
-
(b) शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन को बढ़ावा देता है, उसकी उपेक्षा नहीं करता।
-
(c) यह छात्रों को रटकर याद करने के बजाय समझकर सीखने में मदद करता है।
-
(d) यह अधिगम के सिद्धांतों और नियमों का निर्धारण करता है, जो शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाते हैं।
Q59. किस प्रकार के तर्क में एक व्यक्ति विशिष्ट तथ्यों से सामान्य निष्कर्ष की ओर बढता है?
(a) आगमनात्मक
(b) निगमनात्मक
(c) स्वली
(d) a व b दोनों
Ans: (a)
वह तर्क जिसमें एक व्यक्ति विशिष्ट तथ्यों से सामान्य निष्कर्ष की ओर बढ़ता है, आगमनात्मक तर्क (Inductive Reasoning) कहलाता है।
आगमनात्मक तर्क (Inductive Reasoning)
आगमनात्मक तर्क में, व्यक्ति विशिष्ट अवलोकनों, अनुभवों या तथ्यों के आधार पर एक सामान्य नियम या सिद्धांत बनाता है। यह ‘नीचे से ऊपर’ (bottom-up) का दृष्टिकोण है।
-
उदाहरण: आप देखते हैं कि आपके मोहल्ले में हर कुत्ता भौंकता है (विशिष्ट अवलोकन)। इस आधार पर आप यह निष्कर्ष निकालते हैं कि “सभी कुत्ते भौंकते हैं” (सामान्य निष्कर्ष)।
निगमनात्मक तर्क (Deductive Reasoning)
निगमनात्मक तर्क (Deductive Reasoning) इसके विपरीत होता है। इसमें एक व्यक्ति सामान्य सिद्धांत से विशिष्ट निष्कर्ष की ओर बढ़ता है। यह ‘ऊपर से नीचे’ (top-down) का दृष्टिकोण है।
-
उदाहरण: आप जानते हैं कि “सभी मनुष्य मरणशील हैं” (सामान्य सिद्धांत)। आप जानते हैं कि “राहुल एक मनुष्य है” (विशिष्ट तथ्य)। इसलिए, आप निष्कर्ष निकालते हैं कि “राहुल मरणशील है” (विशिष्ट निष्कर्ष)।
Q60. एक शिक्षक को कक्षा में कार्य करना चाहिए –
(a) प्रगतिशील भूमिका में
(b) प्रभुत्ववादी भूमिका में
(c) प्रजातांत्रिक भूमिका में
(d) प्रभावशाली भूमिका में
Ans: (c)
एक शिक्षक को कक्षा में (c) प्रजातांत्रिक भूमिका में कार्य करना चाहिए।
प्रजातांत्रिक शिक्षण की भूमिका
प्रजातांत्रिक शिक्षण (Democratic Teaching) में, शिक्षक का उद्देश्य छात्रों को केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि उन्हें स्वतंत्र, जिम्मेदार और सहयोगपूर्ण नागरिक बनाना है। इस भूमिका में, शिक्षक:
-
छात्रों को निर्णय लेने में शामिल करता है: छात्रों को कक्षा के नियमों, गतिविधियों और सीखने की प्रक्रिया के बारे में निर्णय लेने का अवसर दिया जाता है।
-
चर्चा और बहस को बढ़ावा देता है: शिक्षक छात्रों को अपने विचार व्यक्त करने, प्रश्न पूछने और विचारों का सम्मानपूर्वक खंडन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
-
सहयोग और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है: यह छात्रों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने और एक सहायक सीखने का माहौल बनाने के लिए प्रेरित करता है।
यह भूमिका छात्रों में आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और सामाजिक कौशल विकसित करने में मदद करती है, जो उनके भविष्य के जीवन के लिए आवश्यक हैं।
Q61. बाल मनोविज्ञान संबंधित है –
(a) विकासात्मक अवस्था
(b) बालक की सामाजिक अंतक्रिया
(c) परिपक्वता एवं आनुवंशिक प्रभाव
(d) उपर्युक्त सभी
Ans: (d)
बाल मनोविज्ञान इन सभी से संबंधित है, इसलिए सही उत्तर (d) उपर्युक्त सभी है।
बाल मनोविज्ञान का क्षेत्र
बाल मनोविज्ञान (Child Psychology) एक विस्तृत क्षेत्र है जो बच्चों के विकास के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के व्यवहार, सोच और भावनाओं को समझना है, जिसमें ये सभी कारक शामिल हैं:
-
विकासात्मक अवस्था (Developmental Stage): इसमें जन्म से लेकर किशोरावस्था तक होने वाले शारीरिक, संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास का अध्ययन किया जाता है।
-
बालक की सामाजिक अंतःक्रिया (Child’s Social Interaction): इसमें बच्चे अपने परिवार, दोस्तों और समाज के साथ कैसे बातचीत करते हैं और सीखते हैं, इसका अध्ययन शामिल है। यह उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
-
परिपक्वता एवं आनुवंशिक प्रभाव (Maturity and Hereditary Influence): बाल मनोविज्ञान यह भी अध्ययन करता है कि आनुवंशिक कारक (hereditary factors) और जैविक परिपक्वता (biological maturity) बच्चे के विकास और व्यवहार को कैसे प्रभावित करते हैं।
इस प्रकार, बाल मनोविज्ञान का ज्ञान इन सभी पहलुओं को समझने में मदद करता है।
Q62. मनोविज्ञान का क्षेत्रवादी सिद्धांत दिया –
(a) कुर्ट लेविन ने
(b) सी. टी. मॉर्गन ने
(c) लियोन फेस्टिंगर ने
(d) हेनरी गोडार्ड ने
Ans: (a)
मनोविज्ञान का क्षेत्रवादी सिद्धांत (Field Theory) कुर्ट लेविन (Kurt Lewin) ने दिया था।
कुर्ट लेविन का क्षेत्रवादी सिद्धांत
कुर्ट लेविन एक जर्मन-अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्हें आधुनिक सामाजिक मनोविज्ञान के संस्थापकों में से एक माना जाता है। उनका क्षेत्रवादी सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि व्यक्ति का व्यवहार उसके मनोवैज्ञानिक वातावरण या ‘जीवन-क्षेत्र’ (Life-space) का एक कार्य है।
-
जीवन-क्षेत्र: लेविन के अनुसार, जीवन-क्षेत्र वह समग्रता है जिसमें व्यक्ति और उसका मनोवैज्ञानिक वातावरण दोनों शामिल होते हैं। यह व्यक्ति के आंतरिक मनोवैज्ञानिक कारकों (जैसे आवश्यकताएँ, उद्देश्य) और बाहरी पर्यावरणीय कारकों (जैसे लोग, वस्तुएँ) के बीच की अंतःक्रिया को दर्शाता है।
-
व्यवहार की व्याख्या: इस सिद्धांत के अनुसार, किसी व्यक्ति के व्यवहार को केवल उसके व्यक्तित्व गुणों से नहीं, बल्कि उस समय के संपूर्ण मनोवैज्ञानिक वातावरण को समझकर ही बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
संक्षेप में, लेविन का क्षेत्रवादी सिद्धांत बताता है कि व्यवहार (B) व्यक्ति (P) और उसके वातावरण (E) का एक कार्य है: B=f(P,E)। यह समीकरण सामाजिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक मौलिक अवधारणा बन गया।
Q63. अपने शिष्य के संवेगात्मक विकास के लिए अध्यापक को चाहिए कि –
(a) वह शिष्य के माता-पिता का स्थान हड़पने की कोशिश न करे
(b) वह अपने शिष्य के प्रति प्रेम तथा स्नेह विकसित करे
(c) वह अपने शिष्य की शरारत के प्रति भी प्रेम का रवैया अपनाए
(d) अपने कुछ चुनिंदा शिष्यों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार करे
Ans: (b)
अपने शिष्य के संवेगात्मक विकास के लिए अध्यापक को चाहिए कि (b) वह अपने शिष्य के प्रति प्रेम तथा स्नेह विकसित करे।
संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका
एक बच्चे के संवेगात्मक विकास (emotional development) में शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। एक शिक्षक को छात्रों के साथ सकारात्मक और सहायक संबंध स्थापित करना चाहिए।
-
प्रेम और स्नेह: जब एक छात्र अपने शिक्षक से प्रेम और स्नेह महसूस करता है, तो वह खुद को सुरक्षित और स्वीकार्य महसूस करता है। यह भावना उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और उनमें सामंजस्य स्थापित करने में मदद करती है।
-
अन्य विकल्प:
-
(a) शिक्षक को माता-पिता का स्थान हड़पने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें एक मार्गदर्शक और सहायक के रूप में कार्य करना चाहिए।
-
(c) शरारत के प्रति प्रेम का रवैया अपनाना अनुशासनहीनता को बढ़ावा दे सकता है, जो छात्र के लिए हानिकारक हो सकता है।
-
(d) चुनिंदा शिष्यों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार करना अन्य छात्रों को निराश कर सकता है और उनके संवेगात्मक विकास को बाधित कर सकता है।
-
Q64. जब शिक्षक द्वारा छात्रों के लघु समूह बनाकर प्रत्येक समूह को विषय सम्बन्धी समस्या दी जाए, छात्र चर्चा कर समाधान या निष्कर्ष निकालते हैं। यह किस उपागम की ओर संकेत कर रहा है –
(a) पैनल परिचर्चा
(b) सिस्टम उपागम
(c) अभिक्रमित अनुदेशन
(d) निर्मितवाद
Ans: (d)
जब शिक्षक द्वारा छात्रों के लघु समूह बनाकर प्रत्येक समूह को विषय सम्बन्धी समस्या दी जाए और छात्र चर्चा कर समाधान या निष्कर्ष निकालते हैं, तो यह निर्मितवाद (Constructivism) उपागम की ओर संकेत करता है।
निर्मितवाद क्या है?
निर्मितवाद एक अधिगम सिद्धांत है जो इस विचार पर आधारित है कि छात्र अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। इस उपागम में, शिक्षक केवल ज्ञान प्रदान नहीं करता, बल्कि छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करता है।
दिए गए परिदृश्य में, छात्रों को एक समस्या दी जाती है, और वे समूह में चर्चा करके उसका समाधान खोजते हैं। यह प्रक्रिया इस बात पर जोर देती है कि:
-
ज्ञान का निर्माण: छात्र अपने पिछले अनुभवों और वर्तमान चर्चा के माध्यम से नया ज्ञान बनाते हैं।
-
सहयोग: समूह में चर्चा से छात्र एक-दूसरे के विचारों से सीखते हैं और समस्या-समाधान कौशल विकसित करते हैं।
-
सक्रिय अधिगम: यह निष्क्रिय रूप से जानकारी प्राप्त करने के बजाय, छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता है।
यह विधि रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देती है।
Q65. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है, कियोंकि –
(a) यह केवल विज्ञान का अध्ययन करता है
(b) शिक्षा मनोविज्ञान में केवल सूचनाओं के आधार पर सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है
(c) शैक्षिक वातावरण में अधिगमकर्ता के व्यवहार का वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से अध्ययन किया जाता है
(d) इसमें विद्यार्थियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
Ans: (c)
शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है, क्योंकि (c) शैक्षिक वातावरण में अधिगमकर्ता के व्यवहार का वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से अध्ययन किया जाता है।
शिक्षा मनोविज्ञान की वैज्ञानिक प्रकृति
शिक्षा मनोविज्ञान को एक वैज्ञानिक अनुशासन माना जाता है क्योंकि यह वैज्ञानिक विधियों (scientific methods) का उपयोग करके ज्ञान प्राप्त करता है। यह अवलोकन, प्रयोग, और मापन जैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोणों को अपनाता है।
-
वस्तुनिष्ठता (Objectivity): शिक्षा मनोविज्ञान में, शोधकर्ता पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर अधिगमकर्ता (learner) के व्यवहार का निष्पक्ष रूप से अध्ययन करते हैं।
-
प्रायोगिकता (Experimentation): यह अध्ययन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं कि कैसे विभिन्न शैक्षिक परिस्थितियाँ और शिक्षण विधियाँ छात्रों के सीखने और व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
-
तथ्य-आधारित निष्कर्ष: यह केवल अटकलों या व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि डेटा और साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकालता है।
इसलिए, शिक्षा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक स्वरूप इसकी पद्धतियों पर आधारित है, न कि केवल इसके अध्ययन के विषय पर। यह शैक्षिक परिस्थितियों में सीखने वाले के व्यवहार को समझने के लिए व्यवस्थित और तर्कसंगत दृष्टिकोण का उपयोग करता है।
Q66. कोहलबर्ग के अनुसार, ‘सही और गलत के प्रश्न के बारे में निर्णय लेने में शामिल चिंतन प्रक्रिया’ को कहा जाता है –
(a) सहयोग की नैतिकता
(b) नैतिक – तर्कणा
(c) नैतिक यथार्थवाद
(d) नैतिक दुविधा
Ans: (b)
कोहलबर्ग के अनुसार, ‘सही और गलत के प्रश्न के बारे में निर्णय लेने में शामिल चिंतन प्रक्रिया’ को (b) नैतिक-तर्कणा (Moral Reasoning) कहा जाता है।
नैतिक-तर्कणा (Moral Reasoning)
लॉरेंस कोहलबर्ग ने अपने नैतिक विकास के सिद्धांत (Theory of Moral Development) में बताया कि बच्चे और वयस्क नैतिक निर्णय कैसे लेते हैं। उनके अनुसार, नैतिक-तर्कणा वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति सही और गलत के बीच अंतर करने के लिए तर्क का उपयोग करता है। यह किसी व्यक्ति की नैतिक समझ और तर्क करने की क्षमता को दर्शाता है, जो उम्र के साथ विकसित होती है।
-
नैतिक दुविधा (Moral Dilemma): यह वह स्थिति है जहाँ व्यक्ति को दो या दो से अधिक नैतिक रूप से विरोधाभासी विकल्पों में से एक को चुनना होता है। यह नैतिक तर्कणा की प्रक्रिया को प्रेरित करता है।
-
नैतिक यथार्थवाद (Moral Realism): यह जीन पियाजे का एक सिद्धांत है, जिसमें बच्चे नियमों को अटल और अपरिवर्तनीय मानते हैं।
-
सहयोग की नैतिकता (Morality of Cooperation): यह पियाजे के सिद्धांत का हिस्सा है, जहाँ बच्चे यह समझते हैं कि नियम लचीले होते हैं और उन्हें आपसी सहमति से बदला जा सकता है।
कोहलबर्ग का सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि लोग किसी निर्णय पर कैसे पहुँचते हैं, न कि वे क्या निर्णय लेते हैं। यह प्रक्रिया ही नैतिक-तर्कणा कहलाती है।
Q67. शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा शिक्षक –
(a) बालकों की वैयक्तिक विभिन्नताओं का ज्ञान प्राप्त करता है
(b) उचित शिक्षण विधियों का चयन करता है
(c) कक्षा – कक्ष में अनुशासन स्थापित करता है
(d) उपरोक्त सभी
Ans: (d)
शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान के द्वारा शिक्षक (d) उपरोक्त सभी कार्य करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान और शिक्षक
शिक्षा मनोविज्ञान एक शिक्षक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने और नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके ज्ञान के माध्यम से एक शिक्षक:
-
बालकों की वैयक्तिक विभिन्नताओं का ज्ञान प्राप्त करता है: हर बच्चा अद्वितीय होता है। उनकी सीखने की गति, रुचियाँ, क्षमताएँ और पृष्ठभूमि अलग-अलग होती हैं। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक को इन भिन्नताओं को पहचानने और उनका सम्मान करने में मदद करता है।
-
उचित शिक्षण विधियों का चयन करता है: जब शिक्षक को पता होता है कि एक विशेष छात्र कैसे सीखता है, तो वह उस छात्र के लिए सबसे उपयुक्त शिक्षण विधि का चयन कर सकता है।
-
कक्षा-कक्ष में अनुशासन स्थापित करता है: शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षकों को छात्रों के व्यवहार और प्रेरणा को समझने में मदद करता है। इस समझ से, वे सकारात्मक और प्रभावी अनुशासन रणनीतियाँ विकसित कर सकते हैं, जो केवल दंड पर आधारित नहीं होतीं।
ये सभी कारक एक साथ मिलकर एक प्रभावी और छात्र-केंद्रित शिक्षण वातावरण का निर्माण करते हैं, जिससे छात्रों को उनकी अधिकतम क्षमता तक पहुँचने में मदद मिलती है।
Q68. एक शिक्षक की सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है –
(a) विद्यार्थियों से उनका गृहकार्य करवाना
(b) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को आनन्दप्रद बनाना
(c) कक्षा में अनुशासन बनाए रखना
(d) प्रश्न – पत्र तैयार करना
Ans: (b)
एक शिक्षक की सबसे महत्वपूर्ण चुनौती (b) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को आनन्दप्रद बनाना है।
चुनौतियों का महत्व
शिक्षक को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन इनमें से सबसे महत्वपूर्ण चुनौती शिक्षण को प्रभावी और आकर्षक बनाना है।
-
शिक्षण को आनंदप्रद बनाना: यह केवल जानकारी देने से कहीं बढ़कर है। एक शिक्षक को छात्रों में सीखने के प्रति रुचि और जिज्ञासा पैदा करनी चाहिए ताकि वे स्वयं प्रेरित होकर सीखें। यह चुनौती सबसे बड़ी है क्योंकि यह रचनात्मकता, मनोविज्ञान और प्रभावी संचार कौशल की मांग करती है।
-
अन्य चुनौतियाँ:
-
गृहकार्य करवाना (a): यह एक नियमित कार्य है, लेकिन यदि शिक्षण प्रक्रिया आनंदप्रद हो, तो छात्र गृहकार्य स्वयं करने के लिए प्रेरित होते हैं।
-
अनुशासन बनाए रखना (c): अनुशासन एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यदि कक्षा में सीखने की प्रक्रिया रोचक और आनंदप्रद हो, तो अनुशासन की समस्या स्वतः ही कम हो जाती है।
-
प्रश्न-पत्र तैयार करना (d): यह एक तकनीकी कार्य है जो शिक्षक की जिम्मेदारी का एक हिस्सा है, लेकिन यह शिक्षण की मुख्य चुनौती नहीं है।
-
Q69. जॉन डिवी ने कहा है –
(a) विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण है
(b) विद्यालय एक साधारण वातावरण है
(c) विद्यालय एक तकनीक वातावरण है
(d) विद्यालय एक अनौपचारिक वातावरण है
Ans: (a)
जॉन ड्यूवी (John Dewey) ने कहा है कि (a) विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण है।
ड्यूवी का विद्यालय पर दृष्टिकोण
जॉन ड्यूवी ने शिक्षा को जीवन से जोड़ने पर बहुत जोर दिया। उनके अनुसार, विद्यालय एक ऐसी जगह नहीं है जो वास्तविक दुनिया से अलग हो, बल्कि यह समाज का ही एक छोटा, सरल और शुद्ध रूप है। इस दृष्टिकोण से, विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण है क्योंकि:
-
यह जानबूझकर उन अनुभवों और गतिविधियों को शामिल करता है जो बच्चों को सामाजिक जीवन के लिए तैयार करते हैं।
-
यह बच्चों को सहयोग, समस्या-समाधान और नागरिकता जैसे कौशल सिखाता है, जो वास्तविक जीवन में उपयोगी होते हैं।
-
यह एक नियंत्रित और संरचित वातावरण प्रदान करता है जहाँ बच्चे प्रयोग कर सकते हैं और गलतियों से सीख सकते हैं, जो वास्तविक दुनिया में संभव नहीं होता।
इसलिए, ड्यूवी के लिए, विद्यालय एक साधारण वातावरण नहीं था, बल्कि एक उद्देश्यपूर्ण और विशिष्ट सामाजिक संस्थान था।
Q70. शिक्षण की किण्डर गाटर्न पद्धति आधारित है –
(a) प्रोजक्ट पद्धति पर
(b) खेल-विधि पर
(c) सर्वेक्षण विधि पर
(d) ह्यूरिस्टिक विधि पर
Ans: (b)
शिक्षण की किंडरगार्टन पद्धति (b) खेल-विधि पर आधारित है।
किंडरगार्टन पद्धति
किंडरगार्टन पद्धति को फ्रेडरिक फ्रोबेल ने विकसित किया था। जर्मन में “किंडरगार्टन” का अर्थ है “बच्चों का बगीचा” (children’s garden)। इस पद्धति का मुख्य सिद्धांत यह है कि बच्चे खेल के माध्यम से सबसे अच्छे तरीके से सीखते हैं।
-
खेल-आधारित शिक्षा: फ्रोबेल का मानना था कि बच्चों के लिए खेल स्वाभाविक और महत्वपूर्ण हैं। खेल उन्हें अपनी रचनात्मकता, कल्पना और सामाजिक कौशल विकसित करने में मदद करते हैं।
-
सामग्री और उपकरण: इस पद्धति में, बच्चों को विशेष रूप से डिजाइन किए गए “उपहार” (gifts) और “व्यवसाय” (occupations) दिए जाते हैं। ये सामग्री, जैसे कि लकड़ी के ब्लॉक और मिट्टी, बच्चों को खेलते हुए सीखने में मदद करती हैं।
-
समग्र विकास: किंडरगार्टन पद्धति का उद्देश्य बच्चे का समग्र विकास करना है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास शामिल है। यह रटने पर नहीं, बल्कि करके सीखने (learning by doing) पर जोर देती है।
Q71. वह परीक्षण जिसमें बच्चों को प्रारम्भिक बिन्दु से लेकर अंतिम बिन्दु तक सही रास्ता खोजना होता है, कहलाता है –
(a) कूट संकेतन
(b) भूल-भुलैया
(c) वस्तु संकलन
(d) ब्लॉक निर्माण
Ans: (b)
वह परीक्षण जिसमें बच्चों को प्रारंभिक बिंदु से लेकर अंतिम बिंदु तक सही रास्ता खोजना होता है, उसे (b) भूल-भुलैया (Maze) परीक्षण कहते हैं।
भूल-भुलैया परीक्षण (Maze Test)
यह एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण है जिसका उपयोग बच्चों में समस्या-समाधान कौशल, कार्य-स्मृति (working memory) और दृश्य-स्थानिक तर्क (visuo-spatial reasoning) का आकलन करने के लिए किया जाता है। इन परीक्षणों में, बच्चों को एक जटिल भूल-भुलैया में सही रास्ता खोजने के लिए एक पेंसिल या अपनी उंगली का उपयोग करना होता है।
-
कूट संकेतन (Coding): यह परीक्षण मानसिक गति और एकाग्रता को मापता है।
-
वस्तु संकलन (Object Assembly): इस परीक्षण में टुकड़ों को जोड़कर एक पूरी वस्तु बनानी होती है। यह रचनात्मकता और स्थानिक तर्क का आकलन करता है।
-
ब्लॉक निर्माण (Block Design): इस परीक्षण में रंगीन ब्लॉकों का उपयोग करके एक विशिष्ट पैटर्न बनाना होता है। यह भी स्थानिक तर्क का आकलन करता है।
भूल-भुलैया परीक्षण इन सभी से भिन्न है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य सही मार्ग खोजना होता है।
Q72. परीक्षा के स्थान पर सतत् और व्यापक मूल्यांकन गुणवत्ता मूलक शिक्षा के लिए अधिक उपयुक्त है, क्योंकि इसमें –
(a) संज्ञानात्मक क्षेत्र का मूल्यांकन किया जाना है
(b) सहसंज्ञानात्मक क्षेत्र का मूल्यांकन किया जाता है
(c) मूल्यांकन सतत् एवं व्यापक क्षेत्रों का होता है
(d) उपर्युक्त सभी
Ans: (d)
परीक्षा के स्थान पर सतत् और व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation – CCE) गुणवत्तामूलक शिक्षा के लिए अधिक उपयुक्त है क्योंकि इसमें (d) उपर्युक्त सभी कारक शामिल हैं।
सतत् और व्यापक मूल्यांकन (CCE) का महत्व
सतत् और व्यापक मूल्यांकन एक छात्र के समग्र विकास का आकलन करने पर केंद्रित है, न कि केवल उसकी शैक्षणिक उपलब्धियों पर। यह गुणवत्तामूलक शिक्षा के लिए अधिक उपयुक्त है क्योंकि:
-
संज्ञानात्मक क्षेत्र का मूल्यांकन (Cognitive Domain): CCE में पारंपरिक मूल्यांकन विधियों की तरह ही छात्रों के ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग और विश्लेषण कौशल का मूल्यांकन किया जाता है। यह सीखने की प्रक्रिया का एक सतत हिस्सा है, जो केवल परीक्षा के अंत में नहीं, बल्कि पूरे वर्ष चलता है।
-
सहसंज्ञानात्मक क्षेत्र का मूल्यांकन (Co-scholastic Domain): यह मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पारंपरिक परीक्षा प्रणाली में अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। इसमें छात्रों के कौशल, दृष्टिकोण, रुचियां और मूल्यों का आकलन किया जाता है, जैसे कि उनकी रचनात्मकता, सहयोग, नेतृत्व और भावनात्मक बुद्धिमत्ता।
-
सतत् और व्यापक मूल्यांकन: यह मूल्यांकन को एक निरंतर और व्यापक प्रक्रिया बनाता है। सतत् का अर्थ है कि मूल्यांकन पूरे वर्ष नियमित रूप से होता है, जबकि व्यापक का अर्थ है कि इसमें शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक दोनों क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।
यह प्रणाली छात्रों पर परीक्षा के दबाव को कम करती है, उन्हें अपनी कमजोरियों और शक्तियों को समझने में मदद करती है, और शिक्षकों को शिक्षण विधियों को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक प्रतिक्रिया प्रदान करती है।
Q73. सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका सामान्यत: अदा करते है –
(a) नारी – संगठन
(b) विद्यालयी अध्यापक
(c) छात्र
(d) शिक्षा – आयोग
Ans: (b)
सामाजिक परिवर्तन लाने में विद्यालयी अध्यापक (Teachers) सामान्यत: महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
शिक्षक और सामाजिक परिवर्तन
एक शिक्षक केवल ज्ञान प्रदान करने वाला नहीं होता, बल्कि वह समाज का एक निर्माता भी होता है। वे छात्रों को भविष्य के लिए तैयार करते हैं और उनमें वे मूल्य, दृष्टिकोण और कौशल विकसित करते हैं जो सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक हैं। शिक्षक इस भूमिका को कई तरीकों से निभाते हैं:
-
ज्ञान और चेतना का प्रसार: शिक्षक छात्रों को दुनिया के बारे में पढ़ाते हैं, जिससे उनमें सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा होती है।
-
आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना: वे छात्रों को अपने समाज और उसकी समस्याओं के बारे में सोचने, प्रश्न पूछने और समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
-
मूल्यों का विकास: शिक्षक छात्रों में समानता, सहिष्णुता, सहयोग और नागरिक जिम्मेदारी जैसे मूल्यों को स्थापित करते हैं।
-
भविष्य के नेताओं को तैयार करना: वे छात्रों को भविष्य के ऐसे नेताओं के रूप में तैयार करते हैं जो समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
जबकि नारी-संगठन और छात्र भी सामाजिक परिवर्तन के महत्वपूर्ण कारक हैं, और शिक्षा आयोग नीतियां निर्धारित करता है, शिक्षक ही वह व्यक्ति होता है जो रोजमर्रा के आधार पर छात्रों को शिक्षित करके और उनमें सामाजिक चेतना जगाकर परिवर्तन को मूर्त रूप देता है।
Q74. निम्न में से किस तकनीक के साथ नेता एवं दल पद संबंधित है –
(a) प्रेक्षण
(b) समाजमिति
(c) प्रक्षेपी
(d) साक्षात्कार
Ans: (b)
नेता (Leader) एवं दल (Gang) पद (b) समाजमिति तकनीक से संबंधित हैं।
समाजमिति (Sociometry) और उसके पद
समाजमिति एक विधि है जिसका उपयोग समूह में व्यक्तियों के बीच के सामाजिक संबंधों को मापने के लिए किया जाता है। इस तकनीक के माध्यम से, यह पता लगाया जाता है कि कौन से सदस्य लोकप्रिय हैं और कौन से अलग-थलग हैं। इस प्रक्रिया में, निम्नलिखित पद सामने आते हैं:
-
नेता (Leader): वह सदस्य जिसे समूह के अधिकांश सदस्यों द्वारा पसंद किया जाता है।
-
दल (Gang): वह छोटे समूह जो आपस में एक-दूसरे को पसंद करते हैं, लेकिन उन्हें अन्य समूहों द्वारा पसंद नहीं किया जाता।
-
पृथक (Isolate): वह सदस्य जिसे कोई भी पसंद नहीं करता।
इस प्रकार, समाजमिति तकनीक का उपयोग करके समूह संरचना और संबंधों का अध्ययन किया जाता है, जिससे इन पदों की पहचान होती है।
Q75. निम्न में से कौनसा क्षेत्र मनोविज्ञान के अन्तर्गत नहीं आता ?
(a) असामान्य मनोविज्ञान
(b) औद्योगिक मनोविज्ञान
(c) आर्थिक मनोविज्ञान
(d) पशु मनोविज्ञान
Ans: (c)
दिए गए विकल्पों में से, (c) आर्थिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान के अंतर्गत एक मुख्य और स्थापित क्षेत्र नहीं है।
मनोविज्ञान के मुख्य क्षेत्र
मनोविज्ञान एक विशाल और विविध विषय है, जिसके कई उप-क्षेत्र हैं। इनमें से कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं:
-
असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology): यह मानसिक विकारों, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं का अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य इन विकारों को समझना, उनका निदान करना और उनका उपचार करना है।
-
औद्योगिक मनोविज्ञान (Industrial Psychology): इसे अक्सर औद्योगिक-संगठनात्मक मनोविज्ञान (Industrial-Organizational Psychology) भी कहा जाता है। यह कार्यस्थल पर मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। इसका उपयोग कर्मचारियों के चयन, प्रशिक्षण, कार्य संतुष्टि और उत्पादकता में सुधार के लिए किया जाता है।
-
पशु मनोविज्ञान (Animal Psychology): यह जानवरों के व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। यह मानव व्यवहार को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पहले जानवरों पर किए गए प्रयोगों पर आधारित थे।
आर्थिक मनोविज्ञान (Economic Psychology)
जबकि अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच एक संबंध है (जिसे व्यवहारगत अर्थशास्त्र – Behavioral Economics – कहा जाता है), आर्थिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान के एक अलग और मान्यता प्राप्त उप-क्षेत्र के रूप में व्यापक रूप से स्थापित नहीं है। यह एक अंतर्विषयक (interdisciplinary) क्षेत्र है जो मानव व्यवहार को समझने के लिए मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को जोड़ता है, लेकिन इसे मनोविज्ञान के एक मुख्य क्षेत्र के रूप में नहीं गिना जाता।
Q76. ‘मनोविज्ञान व्यवहार का शुद्ध विज्ञान है’ यह कथन है –
(a) स्कीनर
(b) हरलॉक
(c) सी. वुडवर्थ
(d) जीन पियाजे
Ans: (c)
सही उत्तर है (a) स्किनर (Skinner)।
बी.एफ. स्किनर और व्यवहारवाद
बी.एफ. स्किनर एक प्रमुख व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने मनोविज्ञान को एक ऐसे विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जो केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) पर केंद्रित है। स्किनर का मानना था कि मनोविज्ञान को आंतरिक मानसिक प्रक्रियाओं, जैसे कि मन या चेतना, का अध्ययन नहीं करना चाहिए क्योंकि उनका सीधे तौर पर अवलोकन और मापन नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, मनोविज्ञान को एक शुद्ध विज्ञान बनाने के लिए, इसे केवल व्यवहार और उन पर्यावरणीय कारकों का अध्ययन करना चाहिए जो उस व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह दृष्टिकोण मनोविज्ञान को एक वस्तुनिष्ठ (objective) और प्रायोगिक (experimental) अनुशासन के रूप में स्थापित करने में सहायक था।
Q77. “छात्र समूह में चर्चा कर समस्या का हल निकाले, शिक्षक सुविधा प्रदत् की भूमिका में हो।” यह उपागम है –
(a) सिस्टम उपागम
(b) मल्टी मीडिया उपागम
(c) निर्मितवाद उपागम
(d) मृदु उपागम
Ans: (c)
छात्रों को समूह में चर्चा करके समस्या का हल निकालने के लिए प्रोत्साहित करना, जबकि शिक्षक एक सुविधा प्रदाता (facilitator) की भूमिका निभाता है, यह (c) निर्मितवाद उपागम (Constructivism Approach) है।
निर्मितवाद उपागम
निर्मितवाद एक अधिगम सिद्धांत है जो इस विचार पर आधारित है कि छात्र अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। इस उपागम में, अधिगम एक सक्रिय प्रक्रिया है जहाँ छात्र अपने अनुभवों और पिछले ज्ञान के आधार पर नए विचारों और अवधारणाओं को विकसित करते हैं।
-
छात्र की भूमिका: छात्र निष्क्रिय श्रोता के बजाय सक्रिय रूप से सीखने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं। समूह चर्चा, परियोजनाएँ और समस्या-समाधान जैसी गतिविधियाँ इस उपागम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
-
शिक्षक की भूमिका: शिक्षक केवल ज्ञान प्रदान करने वाला नहीं होता, बल्कि एक सुविधा प्रदाता (facilitator), मार्गदर्शक और सहयोगी की भूमिका निभाता है। वह छात्रों को प्रश्न पूछने, आलोचनात्मक सोच विकसित करने और एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए प्रेरित करता है।
अन्य विकल्प इस संदर्भ में सही नहीं हैं:
-
सिस्टम उपागम: यह शिक्षा के सभी घटकों (शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन) को एक प्रणाली के रूप में देखता है।
-
मल्टीमीडिया उपागम: यह शिक्षण में विभिन्न प्रकार की मीडिया (वीडियो, ऑडियो, टेक्स्ट) के उपयोग से संबंधित है।
-
मृदु उपागम: यह शिक्षण सामग्री के उत्पादन और उपयोग से संबंधित है।
Q78. साइकोलॉजी शब्द की उत्पति किस भाषा से हुई थी ?
(a) अंग्रेजी
(b) रूसी
(c) लैटिन
(d) स्पेनिश
Ans: (c)
साइकोलॉजी (Psychology) शब्द की उत्पत्ति (c) लैटिन भाषा से हुई थी।
शब्द की उत्पत्ति
‘Psychology’ शब्द दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है, लेकिन इसका अंग्रेजी में आगमन और उपयोग लैटिन भाषा के माध्यम से हुआ।
-
Psyche (ψυχή): इसका अर्थ है ‘आत्मा’ या ‘मन’।
-
Logos (λόγος): इसका अर्थ है ‘अध्ययन’ या ‘विज्ञान’।
इस प्रकार, शाब्दिक रूप से, Psychology का अर्थ ‘आत्मा या मन का अध्ययन’ है। यह शब्द सबसे पहले 16वीं शताब्दी में जर्मन दार्शनिक रुडोल्फ गोकेले (Rudolf Goclenius) द्वारा लैटिन में उपयोग किया गया था।
Q79. समाजमिति विधि के जन्मदाता हैं –
(a) वी. वी. अकोलकर
(b) जे. जी. होम
(c) पी. वी. युंग
(d) मोरेनो
Ans: (d)
समाजमिति (Sociometry) विधि के जन्मदाता (d) मोरेनो (J. L. Moreno) हैं।
जे. एल. मोरेनो (J. L. Moreno)
जैकोब लेवी मोरेनो एक ऑस्ट्रियाई-अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और दार्शनिक थे। उन्होंने समाजमिति विधि को विकसित किया। यह एक तकनीक है जिसका उपयोग एक समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों, अंतःक्रियाओं और आकर्षण के पैटर्न को मापने के लिए किया जाता है। मोरेनो का मानना था कि किसी समूह की संरचना और गतिशीलता को समझकर, उसके सदस्यों की सामाजिक और भावनात्मक स्थिति को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
समाजमिति का उपयोग
समाजमिति का उपयोग करके, एक समाज-चित्र (sociogram) बनाया जा सकता है, जो एक समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों का ग्राफिक प्रतिनिधित्व करता है। इसका उपयोग सामाजिक मनोविज्ञान, शिक्षा और संगठनात्मक विकास जैसे क्षेत्रों में किया जाता है ताकि समूह में नेतृत्व, अलगाव और अन्य सामाजिक समस्याओं की पहचान की जा सके।
Q80. कौनसी विधि उपागम में समान प्रयोज्यों का मापन उनके विकास की विभिन्न अवस्थाओं पर लिया जाता है –
(a) जीवन लेखन विधि
(b) समकालीन अध्ययन विधि
(c) दीर्घकालीन अध्ययन विधि
(d) समाजमिति विधि
Ans: (c)
दिए गए विकल्पों में से, वह विधि उपागम जिसमें समान प्रयोज्यों (subjects) का मापन उनके विकास की विभिन्न अवस्थाओं पर लिया जाता है, उसे दीर्घकालीन अध्ययन विधि (Longitudinal Study Method) कहते हैं।
दीर्घकालीन अध्ययन विधि (Longitudinal Study)
यह एक शोध विधि है जिसमें शोधकर्ता एक ही समूह के व्यक्तियों (प्रयोज्यों) का अध्ययन एक लंबी अवधि तक, उनके जीवन के विभिन्न चरणों में करता है। इस विधि का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि कैसे समय के साथ किसी व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। उदाहरण के लिए, एक शोधकर्ता 5 साल के बच्चों के एक समूह का अध्ययन शुरू कर सकता है और फिर 10 साल बाद, और फिर 20 साल बाद भी उनका अध्ययन जारी रख सकता है।
अन्य विधियाँ
-
जीवन लेखन विधि (Case Study Method): इसमें एक व्यक्ति, समूह या घटना का गहन और विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
-
समकालीन अध्ययन विधि (Cross-Sectional Study Method): इस विधि में, शोधकर्ता एक ही समय में विभिन्न आयु समूहों के व्यक्तियों का अध्ययन करता है ताकि उनके बीच के अंतर को समझा जा सके।
-
समाजमिति विधि (Sociometry Method): यह समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों और अंतःक्रियाओं को मापने की एक तकनीक है।
Q81. मनोविज्ञान अध्ययन है –
(a) व्यवहार का
(b) व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन
(c) आत्मा का
(d) आदतों का
Ans: (b)
मनोविज्ञान (b) व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है।
मनोविज्ञान की परिभाषा समय के साथ विकसित हुई है। शुरुआत में इसे आत्मा या मन के अध्ययन के रूप में देखा जाता था, लेकिन 20वीं शताब्दी के बाद, इसे एक वैज्ञानिक विषय के रूप में स्थापित किया गया।
-
व्यवहार (Behavior): मनोविज्ञान में केवल व्यवहार का अध्ययन नहीं किया जाता, बल्कि उसके पीछे की मानसिक प्रक्रियाओं (जैसे, सोचना, महसूस करना) का भी अध्ययन किया जाता है।
-
वैज्ञानिक अध्ययन (Scientific Study): मनोविज्ञान को एक विज्ञान माना जाता है क्योंकि यह मानव और पशु व्यवहार का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक विधियों (जैसे, अवलोकन, प्रयोग, मापन) का उपयोग करता है। यह साक्ष्य-आधारित सिद्धांतों पर काम करता है।
-
आत्मा और आदतें: आत्मा का अध्ययन मनोविज्ञान की पुरानी परिभाषा थी, और आदतों का अध्ययन व्यवहार के एक छोटे हिस्से को दर्शाता है। इसलिए, ‘व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन’ सबसे व्यापक और सटीक परिभाषा है।
Q82. निम्न में से कौनसा कृत अपचारी कृत्य के अन्तर्गत आता है ?
(a) मन
(b) चेतना
(c) व्यवहार
(d) आत्मा
Ans: (C)
इनमें से (c) व्यवहार कृत अपचारी कृत्य (Delinquent Act) के अंतर्गत आता है।
अपचारी कृत्य क्या है?
अपचारी कृत्य (delinquent act) वह कार्य या व्यवहार है जो किसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है और जो कानून या सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करता है। बाल अपराध (juvenile delinquency) के संदर्भ में, यह ऐसे व्यवहारों को संदर्भित करता है जो यदि किसी वयस्क द्वारा किए जाते, तो उन्हें अपराध माना जाता।
-
मन, चेतना और आत्मा अमूर्त अवधारणाएँ हैं। वे किसी व्यक्ति के आंतरिक विचार, भावनाएं या विश्वास हैं। ये स्वयं में कोई कार्य या कृत्य नहीं हैं। केवल जब ये आंतरिक विचार व्यवहार में प्रकट होते हैं, तभी उन्हें अपचारी कृत्य के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, किसी के मन में चोरी करने का विचार आना एक अपचारी कृत्य नहीं है, लेकिन चोरी करने का कार्य (व्यवहार) एक अपचारी कृत्य है। इसलिए, व्यवहार ही वह मूर्त क्रिया है जिसे कानून और समाज द्वारा देखा और मापा जा सकता है।
Q83. नियंत्रित दशाओं के अतंर्गत किया गया अध्ययन कहलाता है –
(a) प्रश्नावली
(b) प्रयोग
(c) सर्वेक्षण
(d) चेकलिस्ट
Ans: (b)
नियंत्रित दशाओं के अंतर्गत किया गया अध्ययन (b) प्रयोग कहलाता है।
प्रयोग (Experiment)
मनोविज्ञान और अन्य वैज्ञानिक क्षेत्रों में, प्रयोग एक शोध विधि है जिसमें शोधकर्ता एक या अधिक स्वतंत्र चरों (independent variables) में हेरफेर करता है और उनके प्रभाव को एक आश्रित चर (dependent variable) पर मापता है। यह सब नियंत्रित परिस्थितियों में किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परिणाम केवल स्वतंत्र चर के कारण हो रहे हैं। यह विधि कारण और प्रभाव (cause and effect) संबंध स्थापित करने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
-
प्रश्नावली: यह एक सर्वेक्षण उपकरण है जिसमें प्रश्नों की एक सूची होती है।
-
सर्वेक्षण: यह एक बड़े समूह से जानकारी एकत्र करने की विधि है, लेकिन यह नियंत्रित नहीं होती।
-
चेकलिस्ट: यह एक अवलोकन उपकरण है जिसका उपयोग विशिष्ट व्यवहार या लक्षणों की उपस्थिति को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है।
Q84. सामाजिक उन्मुख व व्यक्तिपरक शिक्षा से अभिप्राय है –
(a) दोनों एक ही हैं
(b) दोनों में विभिन्न क्रियाएं शामिल हैं
(c) दोनों में समन्वय है
(d) दोनों के क्षेत्र भिन्न – भिन्न हैं
Ans: (d)
सामाजिक उन्मुख (Socially Oriented) और व्यक्तिपरक (Individualistic) शिक्षा से अभिप्राय है कि (d) दोनों के क्षेत्र भिन्न-भिन्न हैं।
सामाजिक उन्मुख शिक्षा (Socially Oriented Education)
सामाजिक उन्मुख शिक्षा का मुख्य उद्देश्य एक छात्र को समाज का एक जिम्मेदार और प्रभावी सदस्य बनाना है। इस प्रकार की शिक्षा में, ध्यान व्यक्तिगत उपलब्धि के बजाय समूह और सामाजिक लक्ष्यों पर होता है। यह छात्रों को सहयोग करना, दूसरों का सम्मान करना, और सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए मिलकर काम करना सिखाती है। इसका अंतिम लक्ष्य एक बेहतर समाज का निर्माण करना है।
व्यक्तिपरक शिक्षा (Individualistic Education)
व्यक्तिपरक शिक्षा, जिसे व्यक्ति-केंद्रित शिक्षा भी कहते हैं, का ध्यान प्रत्येक छात्र की व्यक्तिगत क्षमताओं, रुचियों और ज़रूरतों पर केंद्रित होता है। इस दृष्टिकोण में, प्रत्येक छात्र को उसकी अपनी गति और शैली के अनुसार सीखने का अवसर दिया जाता है। यह छात्रों की रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और आत्म-निर्भरता को बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष
हालांकि दोनों प्रकार की शिक्षाएं महत्वपूर्ण हैं और एक प्रभावी शिक्षा प्रणाली में अक्सर दोनों का समन्वय होता है, उनके उद्देश्य और क्षेत्र भिन्न-भिन्न हैं। सामाजिक उन्मुख शिक्षा का लक्ष्य समूह और समाज है, जबकि व्यक्तिपरक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति स्वयं है। इस भिन्नता के कारण, उनके तरीके और विधियां भी अलग-अलग होती हैं।
Q85. ‘एमिल’ नामक पुस्तक जिसमें एक काल्पनिक बालक की शिक्षा का उल्लेख है। इस पुस्तक के लेखक हैं –
(a) डी. वी.
(b) रूसो
(c) पेस्टालॉजी
(d) प्लेटो
Ans: (b)
‘एमिल’ (Émile) नामक पुस्तक, जिसमें एक काल्पनिक बालक की शिक्षा का उल्लेख है, के लेखक (b) रूसो (Jean-Jacques Rousseau) हैं।
जीन-जैक्स रूसो और ‘एमिल’
‘एमिल, या ऑन एजुकेशन’ (Émile, or On Education) फ्रांसीसी दार्शनिक जीन-जैक्स रूसो द्वारा 1762 में लिखी गई एक प्रभावशाली पुस्तक है। यह पुस्तक शिक्षा के दर्शन और बाल विकास पर उनके विचारों को प्रस्तुत करती है।
-
मुख्य विचार: रूसो ने इस पुस्तक में एक काल्पनिक बालक ‘एमिल’ की शिक्षा का वर्णन किया है। उनका मानना था कि बच्चे को प्रकृति के करीब रहकर, समाज के बुरे प्रभावों से दूर, प्राकृतिक तरीके से सीखना चाहिए।
-
बाल-केंद्रित शिक्षा (Child-Centric Education): रूसो के विचार आधुनिक बाल-केंद्रित शिक्षा के आधार माने जाते हैं। उन्होंने जोर दिया कि शिक्षा बच्चे की रुचियों और क्षमताओं के अनुसार होनी चाहिए, न कि उसे वयस्कता के लिए तैयार करने के लिए।
-
प्रभाव: ‘एमिल’ ने शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी और कई शिक्षाविदों, जैसे कि पेस्टालॉजी और फ्रोबेल, को प्रभावित किया।
Q86. निम्नलिखित में से किस प्रकार के प्रश्नों का मूल्यांकन करते समय वस्तुनिष्टता बनाए रखना कठिन होता है –
(a) निबंधात्मक प्रश्न
(b) बहुविकल्पात्मक प्रश्न
(c) मिलान वाले प्रश्न
(d) रिक्त स्थान की पूर्ति प्रकार के प्रश्न
Ans: (a)
इनमें से (a) निबंधात्मक प्रश्न का मूल्यांकन करते समय वस्तुनिष्ठता बनाए रखना कठिन होता है।
निबंधात्मक प्रश्न और वस्तुनिष्ठता
निबंधात्मक प्रश्न वे प्रश्न होते हैं जिनमें छात्रों को एक विषय पर विस्तार से लिखना होता है। इन प्रश्नों में उत्तर की कोई एक सही कुंजी नहीं होती, और शिक्षक को छात्र के उत्तर का मूल्यांकन उसकी रचनात्मकता, तर्क, भाषा की गुणवत्ता और प्रस्तुतिकरण के आधार पर करना पड़ता है।
-
वस्तुनिष्ठता की कमी: चूंकि मूल्यांकन व्यक्तिपरक होता है, इसलिए इसमें शिक्षक के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और विचारों का प्रभाव पड़ सकता है। एक ही उत्तर का मूल्यांकन अलग-अलग शिक्षकों द्वारा अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
इसके विपरीत, बहुविकल्पात्मक प्रश्न (b), मिलान वाले प्रश्न (c) और रिक्त स्थान की पूर्ति वाले प्रश्न (d) वस्तुनिष्ठ होते हैं। इन प्रश्नों का केवल एक ही सही उत्तर होता है, और मूल्यांकन पूरी तरह से सही उत्तर के चयन पर आधारित होता है। इन प्रश्नों में व्यक्तिपरकता की कोई गुंजाइश नहीं होती।
Q87. कक्षा में प्रेरणायुक्त वातावरण बनाने हेतु अध्यापक को निम्न में से कौन-सा कार्य नहीं करना चाहिए ?
(a) कक्षा में प्रथम आने वाले बालक को कमजोर बालकों की सहायता करने के अवसर देना।
(b) कक्षा में प्रथम आने वाले बालक की प्रशंसा करके कमजोर बालकों को और मेहनत करने के लिए प्रेरित कऱने का प्रयास करना।
(c) कमजोर बालकों का ध्यान लक्ष्य की ओर स्पष्ट करना।
(d) कमजोर बालकों की प्रशंसा करने के अवसरों का अधिक से अधिक प्रयोग करना।
Ans: (b)
कक्षा में प्रेरणायुक्त वातावरण बनाने हेतु अध्यापक को (b) कक्षा में प्रथम आने वाले बालक की प्रशंसा करके कमजोर बालकों को और मेहनत करने के लिए प्रेरित कऱने का प्रयास करना नहीं करना चाहिए।
क्यों नहीं करना चाहिए?
इस तरह का कार्य कमजोर बच्चों में नकारात्मक भावनाएं पैदा कर सकता है। जब एक शिक्षक बार-बार एक ही छात्र की प्रशंसा करता है, तो दूसरे बच्चे:
-
हतोत्साहित महसूस कर सकते हैं: उन्हें लग सकता है कि वे कभी भी उस स्तर तक नहीं पहुंच पाएंगे, जिससे उनकी प्रेरणा कम हो सकती है।
-
ईर्ष्या महसूस कर सकते हैं: इससे कक्षा का वातावरण नकारात्मक हो सकता है।
-
अपनी तुलना करना शुरू कर सकते हैं: हर बच्चे की सीखने की गति और क्षमता अलग होती है। तुलना करने से आत्म-सम्मान कम हो सकता है।
क्या करना चाहिए?
प्रेरणायुक्त वातावरण बनाने के लिए, अध्यापक को व्यक्तिगत और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
-
कमजोर बच्चों की प्रशंसा करना: जब वे छोटी-छोटी उपलब्धियां हासिल करते हैं, तो उनकी प्रशंसा करने से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
-
सहयोग को बढ़ावा देना: कक्षा में प्रथम आने वाले छात्र को कमजोर छात्रों की मदद करने का अवसर देना एक अच्छा तरीका है। इससे दोनों को फायदा होता है – एक को नेतृत्व और सामाजिक कौशल सीखने का मौका मिलता है, और दूसरे को मदद मिलती है।
-
लक्ष्य स्पष्ट करना: सभी छात्रों को यह समझने में मदद करना कि उनके लक्ष्य क्या हैं और उन तक कैसे पहुंचा जा सकता है।
Q88. व्यवहारवाद सम्प्रदाय की स्थापना की –
(a) जे. बी. वाटसन
(b) जॉन डी. वी.
(c) अल्फ्रेड एडलर
(d) पी. वी. युंग
Ans: (a)
व्यवहारवाद संप्रदाय की स्थापना (a) जे. बी. वाटसन (John B. Watson) ने की थी।
व्यवहारवाद (Behaviorism)
जे. बी. वाटसन को व्यवहारवाद का जनक माना जाता है। उन्होंने मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी, यह तर्क देते हुए कि मनोविज्ञान को केवल अवलोकनीय व्यवहार (observable behavior) का अध्ययन करना चाहिए, न कि मन, चेतना या आत्मा जैसी अमूर्त अवधारणाओं का।
वाटसन का मानना था कि व्यवहार को पर्यावरणीय उत्तेजनाओं (stimuli) और प्रतिक्रियाओं (responses) के बीच के संबंध के रूप में समझा जा सकता है। उनके प्रसिद्ध ‘लिटिल अल्बर्ट’ प्रयोग ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि भय को भी शास्त्रीय अनुबंधन (classical conditioning) के माध्यम से सिखाया जा सकता है।
अन्य विकल्प
-
जॉन डी. वी. (John Dewey): ये एक अमेरिकी दार्शनिक और शिक्षाविद थे जिन्होंने प्रयोजनवाद (Pragmatism) और प्रगतिशील शिक्षा (progressive education) पर जोर दिया।
-
अल्फ्रेड एडलर (Alfred Adler): ये एक ऑस्ट्रियाई चिकित्सक और मनोचिकित्सक थे जिन्होंने व्यक्तिगत मनोविज्ञान (Individual Psychology) की स्थापना की।
-
पी. वी. युंग: इस नाम का कोई प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक नहीं है, संभवतः यह कार्ल गुस्ताव जुंग (Carl Gustav Jung) का गलत नाम हो, जिन्होंने विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (Analytical Psychology) की स्थापना की थी।
Q89. निम्न में से कौन मनोवैज्ञानिक नहीं हैं ?
(a) जॉन डीवी
(b) वाटसन
(c) हल
(d) स्किनर
Ans: (a)
दिए गए विकल्पों में से, (a) जॉन डीवी एक मनोवैज्ञानिक नहीं हैं। वह एक अमेरिकी दार्शनिक, शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे।
प्रमुख व्यक्ति और उनके क्षेत्र
-
जॉन डीवी (John Dewey): जॉन डीवी को प्रगतिशील शिक्षा (Progressive Education) का जनक माना जाता है। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं, बल्कि छात्रों को जीवन के लिए तैयार करना है। उन्होंने करके सीखने (learning by doing) पर विशेष जोर दिया।
-
वाटसन (John B. Watson): ये व्यवहारवाद (Behaviorism) के संस्थापक हैं और इन्हें मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है।
-
हल (Clark L. Hull): ये एक प्रभावशाली व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक थे जो प्रेरणा (motivation) और सीखने के सिद्धांतों के लिए जाने जाते हैं।
-
स्किनर (B. F. Skinner): ये भी एक प्रमुख व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने क्रियाप्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) का सिद्धांत दिया और मनोविज्ञान को एक वस्तुनिष्ठ विज्ञान बनाने पर जोर दिया।
इस प्रकार, वाटसन, हल और स्किनर तीनों ही प्रमुख मनोवैज्ञानिक थे, जबकि जॉन डीवी का मुख्य योगदान दर्शन और शिक्षा के क्षेत्र में था।
Q90. निम्न में से कौन-सा कथन ‘शिक्षा मनो विज्ञान’ के अर्थ को सबसे अधिक सही ढंग से प्रकट करता है ?
(a) यह व्यक्ति के मन के अध्ययन का विज्ञान है
(b) यह व्यक्ति के अनुभवों का विज्ञान है
(c) इसका संबंध केवल व्यक्ति की सामाजिक प्रक्रियाओं से है
(d) यह शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करता है
Ans: (d)
दिए गए कथनों में से, (d) यह शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करता है शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ को सबसे सही ढंग से प्रकट करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान का सही अर्थ
-
शिक्षा मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है जो मनोविज्ञान के सिद्धांतों और विधियों को शिक्षा के क्षेत्र में लागू करता है।
-
यह हमें यह समझने में मदद करता है कि शिक्षण और अधिगम (learning) की प्रक्रियाएँ कैसे होती हैं।
-
यह शिक्षक को छात्रों के व्यवहार, उनके सीखने की शैली, उनकी प्रेरणा और उनकी व्यक्तिगत भिन्नताओं को समझने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करता है।
अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण
-
(a) यह व्यक्ति के मन के अध्ययन का विज्ञान है: यह कथन मनोविज्ञान की एक पुरानी और अधूरी परिभाषा है, क्योंकि मनोविज्ञान में मन के अलावा व्यवहार का भी अध्ययन किया जाता है।
-
(b) यह व्यक्ति के अनुभवों का विज्ञान है: यह कथन भी अधूरा है, क्योंकि यह अनुभव के पीछे की वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर ध्यान नहीं देता।
-
(c) इसका संबंध केवल व्यक्ति की सामाजिक प्रक्रियाओं से है: यह कथन गलत है क्योंकि शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के सामाजिक, संज्ञानात्मक और भावनात्मक सभी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
Q91. मूल प्रवृति का सिद्धांत देने वाले हैं –
(a) मैक डुगल
(b) थार्नडाइक
(c) साइमण्ड्स
(d) एडलर
Ans: (a)
मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत (a) मैक डुगल (McDougall) ने दिया था।
विलियम मैकडुगल और मूल प्रवृत्तियां
विलियम मैकडुगल (William McDougall) एक ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने मूल प्रवृत्ति सिद्धांत (Instinct Theory) को प्रतिपादित किया। उनके अनुसार, मानव व्यवहार का एक बड़ा हिस्सा जन्मजात, उद्देश्यपूर्ण और स्वचालित मूल प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है।
-
14 मूल प्रवृत्तियाँ: मैकडुगल ने कुल 14 मूल प्रवृत्तियों का वर्णन किया, जैसे पलायन (fear), युयुत्सा (anger), जिज्ञासा (curiosity), पैतृक प्रवृत्ति (parental instinct) आदि।
-
भाव (Emotion): उनका मानना था कि प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के साथ एक विशेष भाव (emotion) जुड़ा होता है। जैसे, पलायन की मूल प्रवृत्ति के साथ भय का भाव जुड़ा होता है, और युयुत्सा की मूल प्रवृत्ति के साथ क्रोध का भाव।
मैकडुगल के इस सिद्धांत ने उस समय मनोविज्ञान में प्रेरणा (motivation) को समझने के तरीके को काफी प्रभावित किया। हालांकि बाद में इस सिद्धांत की आलोचना हुई, फिर भी इसने मनोविज्ञान में मानव व्यवहार के अध्ययन की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Q92. समग्रता के सिद्धांत के प्रवर्तक हैं –
(a) आर. एम. गैले
(b) वर्दीमर एवं अन्य
(c) बी. एस. ब्लूम
(d) बी. एफ. स्किनर
Ans: (b)
समग्रता के सिद्धांत (Gestalt Theory) के प्रवर्तक (b) वर्दीमर एवं अन्य हैं।
समग्रता का सिद्धांत (Gestalt Theory)
समग्रता के सिद्धांत को गेस्टाल्ट मनोविज्ञान भी कहा जाता है। इसका मुख्य विचार यह है कि किसी भी वस्तु का समग्र रूप उसके अलग-अलग भागों के योग से कहीं अधिक होता है। गेस्टाल्ट जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘संपूर्णता’ या ‘समग्रता’। इस सिद्धांत के प्रमुख प्रवर्तक थे:
-
मैक्स वर्दीमर (Max Wertheimer): उन्हें गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का जनक माना जाता है।
-
कुर्ट कोफका (Kurt Koffka): उन्होंने गेस्टाल्ट के सिद्धांतों को मनोविज्ञान के अन्य क्षेत्रों में लागू किया।
-
वुल्फगैंग कोहलर (Wolfgang Köhler): उन्होंने चिंपैंजी पर किए गए अपने प्रयोगों के माध्यम से अंतर्दृष्टि (insight) सीखने के सिद्धांत को विकसित किया।
ये तीनों विचारक इस सिद्धांत के मुख्य स्तंभ थे, जिन्होंने इसे विकसित और लोकप्रिय बनाया।
Q93. गेस्टाल्टवाद के प्रतिपादक हैं –
(a) स्किनर
(b) वर्दीमर
(c) पावलॉव
(d) फ्रायड
Ans: (b)
गेस्टाल्टवाद (Gestaltism) के प्रतिपादक (b) वर्दीमर (Wertheimer) हैं।
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान एक प्रभावशाली सिद्धांत है जिसकी स्थापना 20वीं सदी की शुरुआत में जर्मनी में हुई थी। इसके मुख्य प्रतिपादक हैं:
-
मैक्स वर्दीमर (Max Wertheimer): उन्हें गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का जनक माना जाता है। उन्होंने इस सिद्धांत के मूल विचारों को प्रस्तुत किया, जिसमें यह अवधारणा शामिल है कि “समग्र उसके भागों के योग से कहीं अधिक है” (The whole is greater than the sum of its parts)।
-
कुर्ट कोफका (Kurt Koffka) और वुल्फगैंग कोहलर (Wolfgang Köhler): ये दोनों भी इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक और सह-संस्थापक थे। कोहलर ने चिंपैंजी पर किए गए अपने प्रसिद्ध प्रयोगों के माध्यम से अंतर्दृष्टि (insight) सीखने के सिद्धांत को विकसित किया।
गेस्टाल्ट मनोविज्ञान मुख्य रूप से प्रत्यक्षण (perception), सीखने और समस्या-समाधान का अध्ययन करता है, यह मानते हुए कि दिमाग अपने आप ही चीजों को एक संगठित और समग्र रूप में देखता है।
अन्य विकल्प
-
स्किनर (Skinner): ये व्यवहारवाद (Behaviorism) के प्रमुख प्रतिपादक हैं।
-
पावलॉव (Pavlov): ये शास्त्रीय अनुबंधन (Classical Conditioning) के सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं।
-
फ्रायड (Freud): ये मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) के जनक हैं।
Q94. “तुम मुझे कोई बालक दो और मैं उसे कुछ भी बना सकता हूं” – यह दावा किसका है ?
(a) मैक्डुगल
(b) कोहलर
(c) वाटसन
(d) पावलोव
Ans: (c)
यह दावा (c) वाटसन (Watson) का है।
जे. बी. वाटसन का दावा
जॉन बी. वाटसन (John B. Watson) व्यवहारवाद (Behaviorism) के संस्थापक थे। उनका यह प्रसिद्ध कथन इस सिद्धांत के मूल विचार को दर्शाता है कि पर्यावरण और अनुभव किसी व्यक्ति के विकास में सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं।
वाटसन का मानना था कि आनुवंशिकता या जन्मजात लक्षण उतने महत्वपूर्ण नहीं होते जितना कि व्यक्ति को दिए गए अनुभव और सीखने का माहौल। उनका दावा था कि वह किसी भी स्वस्थ शिशु को, उसकी प्राकृतिक प्रतिभा, प्रवृत्ति, या जाति की परवाह किए बिना, एक डॉक्टर, वकील, कलाकार, या यहां तक कि एक अपराधी भी बना सकते हैं, यदि उसे सही तरह का प्रशिक्षण और पर्यावरण दिया जाए।
Q95. हकलाने का मनोवैज्ञानिक कारण है –
(a) घर तथा विद्यालय का तनावपूर्ण वातावरण
(b) शब्द भण्डार अपर्याप्त होना
(c) संवेगों का तीव्र प्रवाह
(d) त्रुटिपूर्ण वाकशैली
Ans: (c)
हकलाने (stuttering) का एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक कारण (c) संवेगों का तीव्र प्रवाह है।
हकलाने के मनोवैज्ञानिक कारण
हकलाना एक जटिल भाषण विकार है जिसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक पहलू है।
-
संवेगों का तीव्र प्रवाह: जब कोई व्यक्ति अत्यधिक तनाव, भय, चिंता या उत्तेजना जैसे तीव्र संवेगों का अनुभव करता है, तो उसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है। यह प्रभाव मस्तिष्क के उन क्षेत्रों को बाधित कर सकता है जो भाषण को नियंत्रित करते हैं, जिससे शब्दों का प्रवाह बाधित होता है और व्यक्ति हकलाने लगता है। यह विशेष रूप से उन बच्चों में देखा जाता है जो संवेदनशील होते हैं।
-
अन्य कारक: हालाँकि, अन्य विकल्प सीधे तौर पर हकलाने के प्राथमिक कारण नहीं हैं, लेकिन वे इसे बढ़ा सकते हैं:
-
तनावपूर्ण वातावरण (a): घर या विद्यालय का तनावपूर्ण वातावरण बच्चे के संवेगात्मक तनाव को बढ़ा सकता है, जो बदले में हकलाने को और भी बदतर बना सकता है।
-
त्रुटिपूर्ण वाकशैली (d): यह स्वयं हकलाने का कारण नहीं है, बल्कि इसका एक लक्षण हो सकती है।
-
अपर्याप्त शब्द भंडार (b): यह हकलाने का कारण नहीं है, बल्कि यह भाषा विकास से संबंधित है।
-
आधुनिक शोध से पता चला है कि हकलाना केवल मनोवैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक न्यूरोलॉजिकल विकार भी है, लेकिन तनाव और संवेग जैसे मनोवैज्ञानिक कारक इसे काफी प्रभावित करते हैं।
Q96. गेस्टाल्ट का अर्थ है –
(a) पूर्णाकार
(b) संज्ञान
(c) अन्तर्दृष्टि
(d) अनुबन्ध
Ans: (a)
गेस्टाल्ट (Gestalt) का अर्थ (a) पूर्णाकार या समग्र रूप है।
गेस्टाल्ट का अर्थ और सिद्धांत
‘गेस्टाल्ट’ एक जर्मन शब्द है जिसका कोई सीधा हिंदी अनुवाद नहीं है, लेकिन इसका अर्थ संपूर्णता, समग्रता, या पूर्णाकार होता है। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी भी वस्तु का समग्र रूप उसके अलग-अलग हिस्सों के योग से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। हमारा दिमाग चीजों को टुकड़ों में देखने के बजाय एक संगठित और संपूर्ण इकाई के रूप में देखने की प्रवृत्ति रखता है।
उदाहरण के लिए, जब हम किसी चित्र को देखते हैं, तो हम पहले उसे एक पूरी तस्वीर के रूप में देखते हैं, न कि अलग-अलग रेखाओं, रंगों और आकृतियों के समूह के रूप में। यही गेस्टाल्ट का मूल विचार है।
Q97. शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध है –
A. शिक्षक से
B. शिक्षण से
C. कक्षाकक्ष वातावरण से
D. विद्यार्थी से
निम्न में से कौन सा सबसे अच्छा विकल्प है ?
(a) सिर्फ D
(b) A और D
(c) B, C और D
(d) A,B,C, और D
Ans: (d)
शिक्षा मनोविज्ञान का संबंध इन सभी से है, इसलिए सबसे अच्छा विकल्प (d) A, B, C, और D है।
शिक्षा मनोविज्ञान का कार्यक्षेत्र
शिक्षा मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है जो शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए मनोविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग करता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई कारक शामिल होते हैं, और शिक्षा मनोविज्ञान इन सभी कारकों का अध्ययन करता है:
-
शिक्षक (A): यह शिक्षक को छात्रों के व्यवहार, उनकी सीखने की शैली और उनकी जरूरतों को समझने में मदद करता है।
-
शिक्षण (B): यह शिक्षण की विधियों और रणनीतियों को प्रभावी बनाने पर केंद्रित है।
-
कक्षा-कक्ष वातावरण (C): यह एक सकारात्मक और सहायक सीखने का माहौल बनाने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है।
-
विद्यार्थी (D): यह शिक्षा मनोविज्ञान का केंद्र बिंदु है, क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों के विकास और सीखने की प्रक्रिया को समझना है।
इन सभी घटकों का आपस में गहरा संबंध है। एक प्रभावी शिक्षक (A) उचित शिक्षण विधियों (B) का उपयोग करके एक सकारात्मक कक्षा वातावरण (C) में विद्यार्थी (D) को सिखाता है। इसलिए, शिक्षा मनोविज्ञान इन सभी घटकों का अध्ययन करता है।
Q98. निम्न में से कौ नसे विचारक के अनुसार शिक्षा व्यक्ति की भी तरी शक्तियों को उभारने की प्रक्रिया है?
(a) फ्रोबेल
(b) पेस्टॉलोजी
(c) थार्नडाईक
(d) प्लेटो
Ans: (b)
इसका सही उत्तर (b) पेस्टॉलोजी (Pestalozzi) है।
पेस्टॉलोजी और शिक्षा
जोहान हेनरिक पेस्टॉलोजी (Johann Heinrich Pestalozzi) एक स्विस शिक्षाविद् थे, जिन्हें आधुनिक शिक्षा के अग्रदूतों में से एक माना जाता है। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि व्यक्ति की भीतरी शक्तियों, क्षमताओं और प्रवृत्तियों को उभारना है।
पेस्टॉलोजी ने बाल-केंद्रित शिक्षा (Child-Centered Education) पर जोर दिया। उनका सिद्धांत था कि बच्चों को उनके स्वयं के अनुभव और इंद्रियों के माध्यम से सीखना चाहिए, न कि केवल रटने के द्वारा। उनका प्रसिद्ध कथन था, “मनुष्य की शक्तियों का सामंजस्यपूर्ण विकास” (the harmonious development of man’s powers)। इसका अर्थ है कि शिक्षा को बच्चे के मस्तिष्क, हृदय और हाथ (head, heart, and hand) – यानी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक क्षमताओं – का संतुलित विकास करना चाहिए।
-
फ्रोबेल (a): उन्होंने किंडरगार्टन प्रणाली की स्थापना की, जो खेल के माध्यम से सीखने पर केंद्रित थी।
-
थार्नडाइक (c): ये एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जो सीखने के सिद्धांतों (जैसे, प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत) के लिए जाने जाते हैं।
-
प्लेटो (d): ये एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक थे जिन्होंने शिक्षा को एक आदर्श राज्य के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण माना।
पेस्टॉलोजी का दर्शन सीधे तौर पर व्यक्ति की आंतरिक क्षमताओं को विकसित करने से संबंधित है, जिससे वह दिए गए प्रश्न के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प हैं।
Q99. निम्न में से कौनसा कथन, शिक्षा मनो विज्ञान के अर्थ को सबसे अधिक सही ढंग से प्रकट करता है?
(a) यह व्यक्ति के मन के अध्ययन का विज्ञान है
(b) यह व्यक्ति के अनुभवों का विज्ञान है
(c) इसका संबंध केवल व्यक्ति की सामाजिक प्रक्रियाओं से है
(d) यह शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करता है
Ans: (d)
इनमें से सबसे सटीक कथन है (d) यह शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।
शिक्षा मनोविज्ञान का वास्तविक अर्थ
शिक्षा मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है। इसका मुख्य उद्देश्य मनोविज्ञान के सिद्धांतों, नियमों और तकनीकों का उपयोग करके शिक्षण और अधिगम (Learning) की प्रक्रियाओं को समझना और सुधारना है।
-
यह शिक्षकों को छात्रों के व्यवहार, उनकी सीखने की शैली, प्रेरणा और व्यक्तिगत विभिन्नताओं को वैज्ञानिक तरीके से समझने में मदद करता है।
-
यह बताता है कि पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ और मूल्यांकन प्रणाली को कैसे डिज़ाइन किया जाए ताकि वे छात्रों के लिए सबसे प्रभावी हों।
अन्य विकल्प अधूरे या गलत हैं:
-
(a) और (b) मनोविज्ञान की पुरानी या अधूरी परिभाषाएं हैं। मनोविज्ञान सिर्फ मन या अनुभव का नहीं, बल्कि व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है।
-
(c) यह कथन गलत है, क्योंकि शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के सामाजिक, संज्ञानात्मक और भावनात्मक सभी प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
Q100. सुमेलित कीजिए –
सूची – I सूची – II
(i) जॉन डीवी (A) गेस्टाल्ट
(ii) टिकनर (B) संरचनावाद
(iii)कोफ्का (C) कृत्यवाद
(iv) वाटसन (D) व्यवहारवाद
कूट
i, ii, iii, iv
(a) DBAC
(b) BACD
(c) DCAB
(d) CBAD
Ans: (d)
सही कूट (d) CBAD है।
सुमेलन का विवरण
-
जॉन डीवी (John Dewey) – (C) कृत्यवाद (Functionalism): जॉन डीवी को प्रयोजनवाद और कृत्यवाद का जनक माना जाता है। कृत्यवाद (functionalism) इस बात पर जोर देता है कि मानसिक प्रक्रियाएँ और व्यवहार कैसे व्यक्ति को अपने वातावरण के साथ अनुकूलन करने में मदद करते हैं।
-
टिकनर (Titchener) – (B) संरचनावाद (Structuralism): एडवर्ड बी. टिकनर को संरचनावाद का प्रमुख समर्थक माना जाता है। संरचनावाद का उद्देश्य चेतना (consciousness) को उसके मूल तत्वों, जैसे कि संवेदनाओं (sensations), भावनाओं और छवियों, में तोड़कर उसका अध्ययन करना था।
-
कोफ्का (Koffka) – (A) गेस्टाल्ट (Gestalt): कुर्ट कोफ्का गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के तीन प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। गेस्टाल्ट मनोविज्ञान इस सिद्धांत पर आधारित है कि “समग्र उसके भागों के योग से अधिक है” (The whole is greater than the sum of its parts)।
-
वाटसन (Watson) – (D) व्यवहारवाद (Behaviorism): जॉन बी. वाटसन को व्यवहारवाद का जनक माना जाता है। व्यवहारवाद केवल अवलोकनीय व्यवहार का अध्ययन करता है और आंतरिक मानसिक प्रक्रियाओं को अस्वीकार करता है।