Psychology Mock Test – 04

Psychology Mock Test – 04

मनोविज्ञान महत्त्वपूर्ण प्रश्न 

Psychology mock test – 04 

प्रश्‍न – (1) उपलब्धि परीक्षण माप है।

1.      बुद्धि का
2.      मानसिक योग्‍यता का
3.      ज्ञान का
4.      शारीरिक क्षमता का
उत्‍तर – 3

उपलब्धि परीक्षण ज्ञान का माप है।

एक उपलब्धि परीक्षण (achievement test) का उद्देश्य यह मापना है कि किसी व्यक्ति ने किसी विशिष्ट विषय या क्षेत्र में कितना ज्ञान और कौशल अर्जित किया है। ये परीक्षण आमतौर पर किसी शिक्षण इकाई, जैसे कि एक सेमेस्टर या पाठ्यक्रम के अंत में दिए जाते हैं।

  • ज्ञान (Knowledge): उपलब्धि परीक्षण सीधे तौर पर व्यक्ति के संचित ज्ञान का आकलन करता है। उदाहरण के लिए, एक इतिहास की परीक्षा में छात्रों से युद्धों की तिथियाँ या ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में पूछा जाता है।

  • बुद्धि (Intelligence) और मानसिक योग्यता (Mental ability): बुद्धि परीक्षण व्यक्ति की जन्मजात क्षमता को मापते हैं, जबकि उपलब्धि परीक्षण उसकी अर्जित क्षमता को मापते हैं।

  • शारीरिक क्षमता (Physical ability): यह परीक्षण व्यक्ति की शारीरिक शक्ति और फिटनेस का आकलन करता है, जिसका उपलब्धि परीक्षण से कोई सीधा संबंध नहीं है।

संक्षेप में, उपलब्धि परीक्षण यह बताता है कि आपने क्या सीखा है, न कि आप कितने बुद्धिमान हैं।

 

प्रश्‍न – (2) विद्यार्थियों के लिए उपलब्धि परीक्षा का सबसे अच्‍छा तरीका है।

1.      वार्षिक परीक्षा
2.      अर्द्धवार्षिक परीक्षा
3.      आवधिक परीक्षा
4.      मासिक परीक्षा
उत्‍तर – 3

विद्यार्थियों के लिए उपलब्धि परीक्षा का सबसे अच्छा तरीका है 3. आवधिक परीक्षा (Periodic Examination)


आवधिक परीक्षा का महत्व

आवधिक परीक्षा वह प्रणाली है जिसमें पूरे वर्ष नियमित अंतराल पर परीक्षाएँ ली जाती हैं (जैसे मासिक या त्रैमासिक)। यह प्रणाली अन्य विकल्पों से बेहतर है क्योंकि:

  • निरंतर मूल्यांकन: यह छात्रों को साल भर लगातार अध्ययन करने के लिए प्रेरित करती है। इससे वे अंतिम परीक्षा के दबाव से बच जाते हैं और समय पर अपनी कमजोरियों को पहचान कर सुधार कर सकते हैं।

  • दबाव कम होना: जब परीक्षाएँ नियमित अंतराल पर होती हैं, तो छात्रों पर एक ही बार में पूरे पाठ्यक्रम को याद रखने का बोझ नहीं होता।

  • उपचारात्मक शिक्षण: शिक्षक को नियमित रूप से पता चलता रहता है कि छात्र कहाँ कठिनाई महसूस कर रहे हैं। इससे वे समय पर उपचारात्मक शिक्षण (Remedial teaching) प्रदान कर सकते हैं।

  • व्यापक मूल्यांकन: यह छात्रों के अधिगम (learning) का अधिक व्यापक और विश्वसनीय मूल्यांकन प्रदान करती है।

अन्य विकल्प क्यों कम प्रभावी हैं:

  • मासिक परीक्षा: यह बहुत अधिक हो सकती है और छात्रों पर अनावश्यक दबाव डाल सकती है।

  • अर्ध-वार्षिक और वार्षिक परीक्षा: इन परीक्षाओं में छात्र अक्सर साल भर पढ़ाई को टालते रहते हैं, और अंतिम समय में बहुत अधिक तनाव में आ जाते हैं।

 

प्रश्‍न – (3) जब बच्‍चा फेल होता है, तो इसका तात्‍पर्य है। कि

1.      बच्‍चा पढाई के लिए योग्‍य नही है।
2.      बच्‍चे ने उत्‍तरों को सही तरीके से याद नहीं किया है।
3.      बच्‍चें को प्राइवेट ट्यूशन लेनी चाहिए थी।
4.      व्‍यवस्‍था फेल हुई है।
उत्‍तर – 4

जब बच्चा फेल होता है, तो इसका तात्पर्य है कि व्यवस्था फेल हुई है।


असफलता का आधुनिक परिप्रेक्ष्य

आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान के अनुसार, किसी भी बच्चे का असफल होना मुख्य रूप से शिक्षण-अधिगम प्रणाली की असफलता को दर्शाता है। इसका अर्थ यह है कि:

  • शिक्षण विधि अपर्याप्त थी: शिक्षक द्वारा अपनाई गई विधि बच्चे की सीखने की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थी।

  • पाठ्यक्रम अनुपयुक्त था: पाठ्यक्रम या तो बहुत कठिन था या बच्चे की समझ के स्तर के अनुरूप नहीं था।

  • मूल्यांकन प्रणाली त्रुटिपूर्ण थी: परीक्षा प्रणाली बच्चे की वास्तविक क्षमता का सही आकलन करने में विफल रही।

  • सहायता का अभाव था: बच्चे को सीखने में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त सहायता नहीं मिली।

यह दृष्टिकोण इस बात पर जोर देता है कि हर बच्चा सीखने में सक्षम होता है। यदि वह सफल नहीं होता है, तो हमें बच्चे को दोष देने के बजाय उन कारकों को समझना और ठीक करना चाहिए जो उसकी असफलता का कारण बने।

 

प्रश्‍न – (4) परीक्षा में विद्यार्थियों  से किस प्रकार के पश्‍न पूछने चाहिए।

1.      स्‍मृति एव समक्ष आधारित
2.      वस्‍तुनिष्‍ठ एवं विषयगत
3.      समक्ष एवं अनुप्रयोग आधारित
4.      केवल वस्‍तुनिष्‍ठ
उत्‍तर – 3

परीक्षा में विद्यार्थियों से समझ और अनुप्रयोग-आधारित प्रश्न पूछने चाहिए।


समझ और अनुप्रयोग-आधारित प्रश्न (Comprehension and Application-based Questions)

ये प्रश्न केवल तथ्यों को याद रखने पर आधारित नहीं होते, बल्कि छात्रों की विषय की गहरी समझ को मापते हैं। ये प्रश्न छात्रों से जानकारी को नई और अपरिचित स्थितियों में लागू करने, समस्याओं को हल करने, और विभिन्न अवधारणाओं के बीच संबंध स्थापित करने के लिए कहते हैं।

  • उदाहरण: “आर्थिक विकास के क्या कारण हैं?” के बजाय, “आर्थिक विकास में शिक्षा की क्या भूमिका है, उदाहरणों के साथ समझाएँ।”

अन्य विकल्प क्यों कम प्रभावी हैं:

  • स्मृति पर आधारित प्रश्न (Memory-based Questions): ये केवल यह मापते हैं कि छात्र ने कितना याद किया है। इससे रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है और रचनात्मक सोच सीमित हो जाती है।

  • केवल वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Only Objective Questions): वस्तुनिष्ठ प्रश्न त्वरित मूल्यांकन के लिए अच्छे होते हैं, लेकिन वे छात्रों की सोच, तर्क, और लिखने की क्षमता का आकलन नहीं कर पाते।

  • वस्तुनिष्ठ एवं विषयगत (Objective and Subjective): यह एक अच्छा संयोजन है, लेकिन “समझ और अनुप्रयोग-आधारित” अधिक विशिष्ट और प्रभावी है क्योंकि यह छात्रों की उच्च-स्तरीय सोच क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करता है।

 

प्रश्‍न – (5) निम्‍न में कौन सा वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍न है।

1.      निबंधात्मक प्रश्‍न
2.      लघुत्‍तरात्‍मक प्रश्‍न
3.      मुक्‍त उत्‍तर वाला प्रश्‍न
4.      सत्‍य या असत्‍य
उत्‍तर – 4

सही उत्तर है 4. सत्य या असत्य


वस्तुनिष्ठ प्रश्न क्या हैं?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Questions) वे होते हैं जिनका केवल एक ही सही उत्तर होता है। इन प्रश्नों में व्यक्तिपरक व्याख्या या राय की कोई गुंजाइश नहीं होती।

दिए गए विकल्पों में, सत्य या असत्य (True or False) प्रश्न सबसे स्पष्ट रूप से वस्तुनिष्ठ होते हैं क्योंकि उनका उत्तर या तो “सत्य” होता है या “असत्य”। कोई तीसरा विकल्प संभव नहीं है।


अन्य विकल्प क्यों वस्तुनिष्ठ नहीं हैं:

  • निबंधात्मक प्रश्न (Essay Questions): इन प्रश्नों के उत्तर लंबे और विस्तृत होते हैं, और इनका मूल्यांकन व्यक्तिपरक होता है।

  • लघुत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Questions): इनके उत्तर छोटे होते हैं, लेकिन फिर भी उनमें कुछ हद तक व्यक्तिपरक व्याख्या की गुंजाइश होती है।

  • मुक्त उत्तर वाला प्रश्न (Open-ended Questions): इन प्रश्नों के कई सही उत्तर हो सकते हैं, और इनका उद्देश्य छात्रों की रचनात्मकता और स्वतंत्र सोच को मापना होता है।

 

प्रश्‍न – (6) जब परीक्षार्थियों की संख्‍या अधिक हो, तो किस प्रकार के प्रश्‍नों द्वारा उनका मूल्‍यांकन किया जा सकता है।

1.      अति‍ लघुत्‍तरात्‍मक प्रश्‍न
2.      वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍न
3.      निबन्‍धात्‍मक प्रश्‍न
4.      लघुत्‍तरात्‍मक प्रश्‍न
उत्‍तर – 2

जब परीक्षार्थियों की संख्या अधिक हो, तो वस्तुनिष्ठ प्रश्न सबसे उपयुक्त होते हैं।


वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का महत्व

  • आसानी से जाँच: वस्तुनिष्ठ प्रश्नों (जैसे बहुविकल्पीय, सत्य/असत्य, मिलान) की जाँच बहुत जल्दी और आसानी से की जा सकती है, क्योंकि उनका उत्तर निश्चित होता है।

  • निष्पक्ष मूल्यांकन: इन प्रश्नों में मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति की राय या पूर्वाग्रह का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

  • अधिक कवरेज: ये प्रश्न कम समय में पूरे पाठ्यक्रम के एक बड़े हिस्से को कवर कर सकते हैं, जिससे छात्रों के ज्ञान का अधिक व्यापक मूल्यांकन होता है।

जब परीक्षार्थियों की संख्या अधिक होती है, तो निबंधात्मक या लघु उत्तरात्मक प्रश्नों की जाँच में बहुत समय लगता है और यह प्रक्रिया थकाऊ भी हो सकती है। इसलिए, समय और संसाधनों को बचाने के लिए वस्तुनिष्ठ प्रश्न सबसे अच्छा विकल्प होते हैं।

 

प्रश्‍न – (7) एक अच्‍छी परीक्षा के तीन महत्‍वपूर्ण गुण है।

1.      व्‍यापकता, मूल्‍यांकन और व्‍यावहारिकता
2.      वैधता, व्‍यापकता और मूल्‍यांकन
3.      वैधता, व्‍यावहारिकता और मूल्‍यांकन
4.      इनमें से कोई नहीं
उत्‍तर – 3

एक अच्छी परीक्षा के तीन महत्वपूर्ण गुण हैं वैधता, व्यापकता और मूल्यांकन


एक अच्छी परीक्षा के गुण

एक प्रभावी और विश्वसनीय परीक्षा में तीन मुख्य गुण होने चाहिए, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि परीक्षा अपने उद्देश्य को पूरा करती है।

  1. वैधता (Validity): एक परीक्षा तब वैध मानी जाती है जब वह वास्तव में वही मापती है जिसके लिए उसे बनाया गया है। उदाहरण के लिए, एक गणित की परीक्षा में केवल गणित के प्रश्न ही होने चाहिए, न कि विज्ञान के। यदि परीक्षा वैध नहीं है, तो उसके परिणाम विश्वसनीय नहीं होंगे।

  2. व्यापकता (Comprehensiveness): परीक्षा में पाठ्यक्रम के सभी महत्वपूर्ण भागों को शामिल किया जाना चाहिए। एक व्यापक परीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि छात्र ने पूरे विषय को समझा है, न कि केवल कुछ चुनिंदा हिस्सों को। इससे रटने की प्रवृत्ति कम होती है और समग्र शिक्षण को बढ़ावा मिलता है।

  3. मूल्यांकन (Evaluation): एक अच्छी परीक्षा न केवल ज्ञान का परीक्षण करती है, बल्कि छात्रों की समझ, तर्क और अनुप्रयोग क्षमताओं का भी मूल्यांकन करती है। यह केवल अंकों के आधार पर नहीं, बल्कि गुणात्मक रूप से भी छात्रों की प्रगति का आकलन करती है।

इसलिए, ये तीनों गुण एक अच्छी परीक्षा के लिए आवश्यक हैं।

 

प्रश्‍न – (8) परीक्षण शिक्षण के लिए है, शिक्षण परीक्षण के लिए नहीं। यह मूल्‍यांकन का लक्ष्‍य है।

1.      संकुचित
2.      व्‍यापक
3.      सीमित
4.      उपरोक्‍त सभी
उत्‍तर – 2

संकुचित दृष्टिकोण से देखें तो शिक्षण का उद्देश्य केवल परीक्षण पास करना है, जबकि एक व्यापक दृष्टिकोण यह मानता है कि परीक्षण शिक्षण को बेहतर बनाने का एक साधन मात्र है।


मूल्यांकन का व्यापक लक्ष्य

व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार, मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि शिक्षण प्रक्रिया कितनी प्रभावी रही है और इसमें कहाँ सुधार की आवश्यकता है। यह छात्रों को उनके सीखने के मार्ग में मार्गदर्शन करने में मदद करता है। इस दृष्टि से, परीक्षाएँ केवल एक उपकरण हैं जो शिक्षक को यह जानने में मदद करती हैं कि छात्र ने क्या सीखा है और कहाँ उसे और सहायता की आवश्यकता है।


संकुचित दृष्टिकोण

इसके विपरीत, एक संकुचित दृष्टिकोण में, शिक्षण का उद्देश्य केवल अच्छे अंक प्राप्त करना या परीक्षा पास करना बन जाता है। यहाँ परीक्षा को ही अंतिम लक्ष्य मान लिया जाता है।

इसलिए, जब यह कहा जाता है कि “परीक्षण शिक्षण के लिए है, शिक्षण परीक्षण के लिए नहीं”, तो यह मूल्यांकन के व्यापक लक्ष्य को दर्शाता है।

 

प्रश्‍न – (9) बालक की रूचि का परीक्षण मूल्‍यांकन की कौन सी विधि है।   

1.      सामूहिक परीक्षा
2.      सामर्थ्‍य परीक्षा
3.      वैयक्तिक परीक्षा
4.      प्रक्षेपण विधि
उत्‍तर – 3

बालक की रुचि का परीक्षण वैयक्तिक परीक्षा की विधि है।


वैयक्तिक परीक्षा (Individual Test) का महत्व

वैयक्तिक परीक्षा वह मूल्यांकन विधि है जिसमें एक शिक्षक या परीक्षक एक समय में केवल एक ही बच्चे का मूल्यांकन करता है। यह विधि बालक की व्यक्तिगत विशेषताओं, जैसे उसकी रुचियों, योग्यताओं और व्यक्तित्व का गहराई से अध्ययन करने में सहायक होती है।

रुचि का परीक्षण एक व्यक्तिपरक और गहन प्रक्रिया है। इसे एक बड़े समूह में सही ढंग से मापा नहीं जा सकता। एक-एक करके बात करने और विभिन्न गतिविधियों में बच्चे के व्यवहार को देखकर ही उसकी वास्तविक रुचि का पता लगाया जा सकता है।

अन्य विकल्प क्यों सही नहीं हैं:

  • सामूहिक परीक्षा (Group Test): यह एक ही समय में कई छात्रों का मूल्यांकन करने के लिए होती है, जहाँ व्यक्तिगत विशेषताओं पर ध्यान देना संभव नहीं होता।

  • सामर्थ्य परीक्षा (Ability Test): यह किसी विशेष कार्य को करने की क्षमता का माप है, न कि रुचि का।

  • प्रक्षेपण विधि (Projective Method): यह विधि अचेतन इच्छाओं और व्यक्तित्व लक्षणों को मापने के लिए होती है, लेकिन यह सीधे तौर पर बालक की रुचि का मूल्यांकन नहीं करती।

 

प्रश्‍न – (10) ब्‍लू – प्रिन्‍ट है।

1.      प्रश्‍न – पत्र की आधारशिला  
2.      शिक्षण की आधारशिला
3.      विद्यालय की आधारशिला
4.      इनमें से कोई नही
उत्‍तर – 1

ब्लू-प्रिंट है 1. प्रश्न-पत्र की आधारशिला


ब्लू-प्रिंट क्या है?

ब्लू-प्रिंट एक विस्तृत योजना या खाका होता है जिसका उपयोग प्रश्न-पत्र बनाने के लिए किया जाता है। यह प्रश्न-पत्र की संरचना, उद्देश्यों, और सामग्री का मार्गदर्शन करता है। इसमें यह स्पष्ट रूप से बताया जाता है कि प्रश्न-पत्र में कितने प्रश्न होंगे, वे किस प्रकार के होंगे (वस्तुनिष्ठ, लघु-उत्तरीय, दीर्घ-उत्तरीय), प्रत्येक प्रश्न के लिए कितने अंक होंगे, और कौन से अध्याय या विषय से कितने प्रश्न पूछे जाएंगे।

ब्लू-प्रिंट यह सुनिश्चित करता है कि प्रश्न-पत्र वैध (valid) और विश्वसनीय (reliable) हो, क्योंकि यह सभी आवश्यक पहलुओं को समान रूप से कवर करता है। इस तरह, यह सिर्फ एक प्रश्न-पत्र नहीं, बल्कि एक सुनियोजित और वैज्ञानिक मूल्यांकन उपकरण बनाने में मदद करता है।

 

प्रश्‍न – (11) कक्षा में प्रस्‍तावना प्रश्‍न पूछना शिक्षण के किस सूत्र पर आधारित है।  

1.      दृश्‍य से अदृश्‍य की ओर
2.      आसान से कठिन की ओर
3.      ज्ञात से अज्ञात की ओर
4.      मूर्त से अमूर्त की ओर
उत्‍तर – 3

कक्षा में प्रस्तावना प्रश्न पूछना ज्ञात से अज्ञात की ओर शिक्षण सूत्र पर आधारित है।


ज्ञात से अज्ञात की ओर

यह एक शिक्षण सूत्र है जिसमें शिक्षक पहले उन चीजों के बारे में प्रश्न पूछते हैं जो छात्रों को पहले से ही ज्ञात हैं। इन प्रश्नों के उत्तर के आधार पर, शिक्षक धीरे-धीरे उन्हें उस विषय वस्तु की ओर ले जाते हैं जो उनके लिए अज्ञात है।

इस प्रक्रिया का लाभ यह है कि:

  • यह छात्रों के पूर्व ज्ञान को नए ज्ञान से जोड़ती है।

  • इससे छात्रों में विषय के प्रति रुचि और आत्मविश्वास पैदा होता है।

  • यह सुनिश्चित करती है कि छात्र नई अवधारणाओं को आसानी से समझ सकें, क्योंकि वे परिचित जानकारी पर आधारित होती हैं।

इस प्रकार, प्रस्तावना प्रश्न पूछने का उद्देश्य छात्रों के ज्ञान के आधार पर नए पाठ की शुरुआत करना होता है।

 

प्रश्‍न – (12) निबन्‍धात्‍मक प्रश्‍न होते है।

1.      विश्‍वसनीय
2.      वैध
3.      वस्‍तुनिष्‍ठ
4.      व्‍यक्तिनिष्‍ठ
उत्‍तर – 4

निबंधात्मक प्रश्न व्यक्तिनिष्ठ होते हैं।


व्यक्तिनिष्ठता का अर्थ

व्यक्तिनिष्ठता (Subjectivity) का अर्थ है कि इन प्रश्नों के उत्तर व्यक्ति की अपनी राय, समझ और लिखने की शैली पर आधारित होते हैं।

  • उत्तर का स्वरूप: निबंधात्मक प्रश्नों का कोई एक निश्चित उत्तर नहीं होता। हर छात्र अपनी सोच, तर्क और ज्ञान के आधार पर अलग-अलग उत्तर लिखता है।

  • मूल्यांकन: इन प्रश्नों का मूल्यांकन भी व्यक्तिनिष्ठ होता है, क्योंकि परीक्षक की अपनी राय और मापदंड मूल्यांकन को प्रभावित कर सकते हैं। एक ही उत्तर को अलग-अलग परीक्षक अलग-अलग अंक दे सकते हैं।

अन्य विकल्प क्यों सही नहीं हैं:

  • विश्वसनीय (Reliable): विश्वसनीयता का अर्थ है कि एक ही परीक्षण को बार-बार करने पर भी परिणाम समान हो। निबंधात्मक प्रश्न आमतौर पर विश्वसनीय नहीं होते क्योंकि उनका मूल्यांकन व्यक्तिपरक होता है।

  • वैध (Valid): वैधता का अर्थ है कि परीक्षण वही मापता है जिसके लिए उसे बनाया गया है। निबंधात्मक प्रश्न वैध हो सकते हैं, लेकिन उनकी मुख्य विशेषता व्यक्तिनिष्ठता है।

  • वस्तुनिष्ठ (Objective): वस्तुनिष्ठ प्रश्न वे होते हैं जिनका केवल एक ही सही उत्तर होता है, जैसे बहुविकल्पीय प्रश्न। निबंधात्मक प्रश्न इसके ठीक विपरीत होते हैं।

 

प्रश्‍न – (13) मौखिक मूल्‍यांकन द्वारा किस उद्देश्‍य की जॉच करना सम्‍भव नही है।

1.      ज्ञान
2.      अवबोधन
3.      ज्ञानोपयोग
4.      कौशल
उत्‍तर – 4

मौखिक मूल्यांकन द्वारा कौशल की जाँच करना संभव नहीं है।


मौखिक मूल्यांकन और कौशल

मौखिक मूल्यांकन में, छात्र प्रश्नों का उत्तर बोलकर देते हैं। यह विधि मुख्य रूप से ज्ञान, अवबोधन, और ज्ञानोपयोग (जानकारी को लागू करने) की जाँच के लिए उपयोगी है।

लेकिन कौशल (skills) की जाँच के लिए, विशेष रूप से शारीरिक या व्यावहारिक कौशल, मौखिक मूल्यांकन अपर्याप्त होता है। उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर की सर्जरी करने की क्षमता या एक बढ़ई की लकड़ी का काम करने की क्षमता का मूल्यांकन केवल मौखिक रूप से नहीं किया जा सकता है। इसके लिए वास्तविक प्रदर्शन या व्यावहारिक परीक्षा की आवश्यकता होती है।

 

प्रश्‍न – (14) निम्‍न में कौन सा निबन्‍धात्‍मक प्रकार का पश्‍न नही है।  

1.      व्‍याख्‍यात्‍मक
2.      विवेचनात्‍मक
3.      आलोचनात्‍मक
4.      सरल प्रत्‍यास्‍मरण
उत्‍तर – 4

सही उत्तर है 4. सरल प्रत्यास्मरण

निबंधात्मक प्रश्न :

निबंधात्मक प्रश्न वे होते हैं जिनमें छात्र को किसी विषय पर अपने विचारों, विश्लेषण और समझ को विस्तार से व्यक्त करने की आवश्यकता होती है। इनमें व्याख्या, विवेचना और आलोचना शामिल होती है।

  • व्याख्यात्मक: किसी अवधारणा या प्रक्रिया को विस्तार से समझाना।

  • विवेचनात्मक: किसी विषय के विभिन्न पहलुओं पर विचार करके उसका मूल्यांकन करना।

  • आलोचनात्मक: किसी विषय के गुण-दोषों का विश्लेषण करना।


सरल प्रत्यास्मरण (Simple Recall)

सरल प्रत्यास्मरण का अर्थ है किसी तथ्य को सीधे याद करके बताना। यह एक वस्तुनिष्ठ या अति लघु-उत्तरात्मक प्रश्न का हिस्सा होता है, जहाँ छात्र को केवल एक शब्द, तारीख या नाम का उत्तर देना होता है। इसमें किसी भी तरह की व्याख्या या विश्लेषण की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए यह निबंधात्मक प्रश्न का प्रकार नहीं है।

 

प्रश्‍न – (15) प्रश्‍नों का वह स्‍वरूप, जिसमें स्‍वतंत्र अभिव्‍यक्ति को अवसर नहीं मिलता

1.      वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍न
2.      लघुत्‍तरात्‍मक प्रश्‍न
3.      निबन्‍धात्‍मक प्रश्‍न
4.      अति लघुत्‍तरात्‍मक प्रश्‍न
उत्‍तर – 1

प्रश्नों का वह स्वरूप जिसमें स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर नहीं मिलता, वह वस्तुनिष्ठ प्रश्न है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

वस्तुनिष्ठ प्रश्न वे होते हैं जिनका केवल एक ही सही उत्तर होता है और वे व्यक्ति की राय या भावना पर आधारित नहीं होते। इनमें स्वतंत्र अभिव्यक्ति का कोई अवसर नहीं होता क्योंकि उत्तर पहले से ही निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए:

  • बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

  • सत्य/असत्य (True/False)

  • रिक्त स्थान की पूर्ति (Fill in the blanks)

  • मिलान (Matching)

इन प्रश्नों का उद्देश्य केवल यह मापना होता है कि छात्र ने तथ्यों और अवधारणाओं को कितनी अच्छी तरह याद किया है, न कि उसकी विचार करने या लिखने की क्षमता का।

प्रश्‍न – (16) किसने सबसे पहले बुद्धि परीक्षण का  निर्णय लिया।

1.      डेविड वेश्‍लर
2.      एल्‍फेड बिने
3.      चार्ल्‍स एडवर्ड स्‍पीयरमैन
4.      रॉबर्ट स्‍टर्नवर्ग
उत्‍तर – 2

सबसे पहले बुद्धि परीक्षण का निर्माण एल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) ने किया था।


बिने और साइमन का बुद्धि परीक्षण

एल्फ्रेड बिने एक फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में मानसिक आयु (Mental Age) की अवधारणा विकसित की। 1905 में, उन्होंने अपने सहयोगी थियोडोर साइमन (Théodore Simon) के साथ मिलकर पहला व्यावहारिक बुद्धि परीक्षण बनाया, जिसे बिने-साइमन स्केल के नाम से जाना जाता है। इस परीक्षण का उद्देश्य उन बच्चों की पहचान करना था जिन्हें स्कूली शिक्षा में विशेष सहायता की आवश्यकता थी।

इस परीक्षण ने आधुनिक बुद्धि परीक्षणों की नींव रखी और यह बिने को बुद्धि परीक्षण के क्षेत्र का जनक बनाता है।

प्रश्‍न – (17) निम्‍न में से कौन सा कारक अधिगम को सकारात्‍मक प्रकार से परिभाषित करता है।

1.      अनुत्‍तीर्ण हो जाने का भय
2.      प्रतियोगिता
3.      अर्थपूर्ण संबंध
4.      माता पिता की ओर से दबाव
उत्‍तर – 3

इसका सही उत्तर है 3. अर्थपूर्ण संबंध (Meaningful Connection)


अर्थपूर्ण संबंध और सकारात्मक अधिगम

जब कोई छात्र किसी विषय को अपने जीवन या अन्य विषयों से अर्थपूर्ण ढंग से जोड़ पाता है, तो उसका अधिगम सकारात्मक और स्थायी होता है। यह सीखने की प्रक्रिया को रोचक बनाता है और छात्र को विषय को गहराई से समझने के लिए प्रेरित करता है, बजाय केवल तथ्यों को रटने के।


अन्य विकल्प क्यों नकारात्मक प्रभाव डालते हैं:

  • अनुत्तीर्ण हो जाने का भय: यह अधिगम के लिए एक नकारात्मक प्रेरणा है, जिससे तनाव और चिंता बढ़ती है।

  • प्रतियोगिता: अत्यधिक प्रतिस्पर्धा छात्रों में सहयोग की भावना को कम कर सकती है और केवल दूसरों को हराने पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।

  • माता-पिता की ओर से दबाव: यह भी एक बाहरी प्रेरणा है जो छात्रों में तनाव पैदा करती है और सीखने की प्रक्रिया से उनका आनंद छीन लेती है।

संक्षेप में, आंतरिक प्रेरणा और विषय से जुड़ाव ही सकारात्मक अधिगम का आधार हैं।

 

प्रश्‍न – (18) सामाजिक अधिगम का सिद्धांत निम्‍न मे से किस घटक पर बल देता है।  

1.      प्रकृति
2.      पोषण
3.      अनुकूलन
4.      पाठ संशोधन
उत्‍तर – 2

सामाजिक अधिगम का सिद्धांत पोषण (Nurture) घटक पर बल देता है।


सामाजिक अधिगम का सिद्धांत (Social Learning Theory)

यह सिद्धांत अल्बर्ट बंडूरा (Albert Bandura) द्वारा दिया गया था। यह इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति दूसरों को देखकर और उनका अनुकरण करके सीखता है। बंडूरा के अनुसार, अधिगम मुख्य रूप से सामाजिक वातावरण में होता है और इसमें अवलोकन, नकल और मॉडलिंग की भूमिका होती है।

  • पोषण (Nurture): पोषण का अर्थ है कि व्यक्ति का विकास उसके वातावरण और अनुभवों से होता है, न कि केवल आनुवंशिक कारकों से। सामाजिक अधिगम का सिद्धांत इसी विचार का समर्थन करता है, क्योंकि यह मानता है कि व्यक्ति अपने सामाजिक परिवेश से सीखता है और विकसित होता है।


प्रकृति (Nature) के साथ संबंध

इसके विपरीत, प्रकृति आनुवंशिक या जन्मजात कारकों को संदर्भित करती है। यद्यपि बंडूरा ने पूरी तरह से प्रकृति की उपेक्षा नहीं की, उनका सिद्धांत मुख्य रूप से इस बात पर केंद्रित है कि वातावरण (पोषण) किस तरह अधिगम को प्रभावित करता है।

 

प्रश्‍न – (19) क्षमता के विकास का दूसरा नाम है।

1.      अनुभव
2.      परिपक्‍वता
3.      शारीरिक विकास
4.      कौशल विकास
उत्‍तर – 4

क्षमता के विकास का दूसरा नाम कौशल विकास है।

कौशल विकास (Skill Development)

कौशल विकास का अर्थ है किसी कार्य को करने की योग्यता या दक्षता में सुधार करना। जब हम किसी क्षेत्र में अपनी क्षमता को बढ़ाते हैं, तो हम वास्तव में उस क्षेत्र से संबंधित कौशल को विकसित कर रहे होते हैं। यह विकास अभ्यास, प्रशिक्षण और अनुभव के माध्यम से होता है।


अन्य विकल्प

  • अनुभव (Experience): अनुभव कौशल विकास का एक साधन है, लेकिन यह स्वयं विकास का दूसरा नाम नहीं है।

  • परिपक्वता (Maturation): यह जैविक या आनुवंशिक विकास है, जो व्यक्ति की उम्र के साथ होता है। यह क्षमता विकास का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से उसका पर्यायवाची नहीं है।

  • शारीरिक विकास (Physical Development): यह शरीर के आकार, ऊँचाई और वजन में वृद्धि को संदर्भित करता है। यह क्षमता विकास से संबंधित है, लेकिन यह केवल एक पहलू है।

 

प्रश्‍न – (20) मनोविज्ञान ने शिक्षा को बना दिया है।

1.      पाठ्यचर्या केन्द्रित
2.      शिक्षक केन्द्रित
3.      बाल केन्द्रित
4.      विषय केन्द्रित
उत्‍तर – 3

मनोविज्ञान ने शिक्षा को बाल केंद्रित बना दिया है।


बाल केंद्रित शिक्षा क्या है?

बाल-केंद्रित शिक्षा (Child-centered education) एक शिक्षण दृष्टिकोण है जहाँ शिक्षा का केंद्र-बिंदु छात्र होता है। इसका उद्देश्य प्रत्येक बच्चे की व्यक्तिगत आवश्यकताओं, रुचियों और क्षमताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करना है। मनोविज्ञान के विकास से पहले, शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से शिक्षक-केंद्रित या विषय-केंद्रित थी, जिसमें छात्र की आवश्यकताओं पर कम ध्यान दिया जाता था।

मनोविज्ञान की भूमिका

मनोविज्ञान ने यह साबित किया कि हर बच्चा अलग होता है और उसके सीखने की अपनी गति और शैली होती है। इसलिए, शिक्षा प्रणाली को छात्र के मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाना चाहिए। इस तरह, मनोविज्ञान ने पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को बदल दिया और उसे बच्चे के अनुकूल बनाया।

 

प्रश्‍न – (21) निम्‍न में से कौन सा किशोरावस्‍था का लक्षण नही है।

1.      शारीरिक परिवर्तन
2.      व्‍यवहार में स्थिरता
3.      अस्थिरता का समस्‍या
4.      संवेगात्‍मक समस्‍याएं
उत्‍तर – 2

किशोरावस्था का लक्षण 2. व्यवहार में स्थिरता नहीं है।


किशोरावस्था के प्रमुख लक्षण

किशोरावस्था (लगभग 12 से 18 वर्ष की आयु) को जीवन का एक चुनौतीपूर्ण और परिवर्तनशील काल माना जाता है। इस दौरान, व्यक्ति के व्यवहार में अस्थिरता और कई प्रकार के शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक बदलाव आते हैं।

  • शारीरिक परिवर्तन: इस अवस्था में शरीर में तेजी से वृद्धि होती है, जिसमें हार्मोनल बदलाव, यौन परिपक्वता, और शारीरिक बनावट में परिवर्तन शामिल हैं।

  • अस्थिरता और समस्याएँ: किशोर अक्सर मूडी, विद्रोही और बेचैन होते हैं। वे अपनी पहचान को लेकर संघर्ष करते हैं और परिवार व समाज से अपनी स्वतंत्रता स्थापित करना चाहते हैं।

  • संवेगात्मक समस्याएँ: इस अवधि में भावनात्मक उथल-पुथल आम बात है। किशोर खुशी, उदासी, गुस्सा और भय जैसे तीव्र संवेगों का अनुभव करते हैं।

इसलिए, व्यवहार में स्थिरता किशोरावस्था का लक्षण नहीं है, बल्कि इसके विपरीत, अस्थिरता इस अवस्था की एक प्रमुख विशेषता है।

 

प्रश्‍न – (22) निम्‍न  में से कौन सा शिक्षा मनोविज्ञान कें अध्‍ययन की वस्‍तुनिष्‍ठ विधि नहीं है।

1.      प्रयोगात्‍मक विधि
2.      उपचारात्‍मक विधि
3.      आत्‍मनिरीक्षण विधि
4.      निरीक्षण विधि
उत्‍तर – 3

शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की वस्तुनिष्ठ विधि आत्मनिरीक्षण विधि (Introspection Method) नहीं है।


आत्मनिरीक्षण विधि

आत्मनिरीक्षण एक व्यक्तिनिष्ठ (subjective) विधि है। इसमें व्यक्ति अपने स्वयं के मन की प्रक्रियाओं, भावनाओं और विचारों का अवलोकन करता है और उनका वर्णन करता है। यह विधि वस्तुनिष्ठ नहीं है क्योंकि इसमें बाहरी पर्यवेक्षण संभव नहीं है और यह व्यक्ति के आत्म-ज्ञान और ईमानदारी पर निर्भर करती है।

वस्तुनिष्ठ विधियाँ

  • प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method): इसमें नियंत्रित परिस्थितियों में प्रयोग किए जाते हैं ताकि कारण और प्रभाव का पता लगाया जा सके। यह एक वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ विधि है।

  • उपचारात्मक विधि (Clinical/Therapeutic Method): इस विधि में किसी व्यक्ति की समस्या का गहन अध्ययन किया जाता है ताकि उसका निदान और उपचार किया जा सके।

  • निरीक्षण विधि (Observational Method): इसमें व्यक्ति के व्यवहार का बाहरी रूप से निरीक्षण किया जाता है। यह व्यक्तिनिष्ठ नहीं है क्योंकि इसमें बाहरी प्रेक्षक द्वारा व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।

 

प्रश्‍न – (23) संवेद जो सामान्‍यत: सुख देता है।  

1.      करूणा
2.      एकाकीपन
3.      भूख
4.      आत्‍माभिमान
उत्‍तर – 4

जब किसी संवेद (sensation) की बात आती है, जो सामान्यतः सुख देता है, तो सही उत्तर है 4. आत्माभिमान (Self-esteem)


आत्माभिमान और सुख का संबंध

  • आत्माभिमान एक सकारात्मक भावना है जो व्यक्ति को अपनी कीमत और योग्यता का एहसास कराती है। जब कोई व्यक्ति खुद पर गर्व महसूस करता है या उसे लगता है कि वह कुछ करने में सक्षम है, तो यह भावना उसे आंतरिक सुख और संतोष प्रदान करती है।

  • यह भावना मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

अन्य विकल्प क्यों सही नहीं हैं:

  • करुणा: यह दूसरों के प्रति सहानुभूति और दुख की भावना है। यह एक सकारात्मक भावना हो सकती है, लेकिन यह सीधे तौर पर सुखदायक नहीं है।

  • एकाकीपन: यह अकेला महसूस करने की एक नकारात्मक भावना है, जो आमतौर पर दुख का कारण बनती है।

  • भूख: यह एक शारीरिक आवश्यकता है, जो असुविधा और बेचैनी पैदा करती है, न कि सुख। हालाँकि भूख शांत होने पर सुख मिलता है, लेकिन भूख स्वयं सुख का कारण नहीं है।

 

प्रश्‍न – (24) निम्‍न में से कौन सा अमूर्त स्‍थाई भाव है।  

1.      आदर
2.      निवास स्‍थान
3.      पशु
4.      क्रोध
उत्‍तर – 1

आदर (Respect) एक अमूर्त स्थायी भाव है।


अमूर्त भाव और वस्तुएँ

अमूर्त (Abstract) का अर्थ है वह जिसे हम देख या छू नहीं सकते, जो केवल एक विचार, भावना या अवधारणा के रूप में मौजूद हो।

  • आदर: यह एक भावना है जिसे महसूस किया जाता है, लेकिन इसे देखा या छुआ नहीं जा सकता। यह व्यक्ति के मन में मौजूद एक स्थायी भाव है।


मूर्त वस्तुएँ

  • निवास स्थान: यह एक मूर्त (concrete) वस्तु है जिसे देखा और छुआ जा सकता है।

  • पशु: यह भी एक मूर्त वस्तु है।

  • क्रोध: यह एक संवेग (emotion) है, जो अमूर्त है, लेकिन यह आमतौर पर एक अस्थायी भाव होता है, जबकि आदर एक स्थायी या दीर्घकालिक भाव हो सकता है जो किसी व्यक्ति के प्रति होता है।

इस प्रकार, दिए गए विकल्पों में से, आदर ही सबसे उपयुक्त अमूर्त और स्थायी भाव है।

 

प्रश्‍न – (25) किसी दुखी व्‍यक्ति को सहानुभूति के दो शब्‍द कहना किसका उदाहरण है।

1.      सक्रिय सहानुभूति
2.      निष्क्रिय सहानुभूति
3.      व्‍यक्तिगत सहानुभूति
4.      उपरोक्‍त में से कोई नहीं
उत्‍तर – 2

किसी दुखी व्यक्ति को सहानुभूति के दो शब्द कहना निष्क्रिय सहानुभूति का उदाहरण है।


निष्क्रिय सहानुभूति (Passive Sympathy)

निष्क्रिय सहानुभूति वह होती है जिसमें व्यक्ति केवल मौखिक रूप से या भावनात्मक रूप से अपनी सहानुभूति व्यक्त करता है, लेकिन पीड़ित व्यक्ति की मदद के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाता। इसमें “मुझे आपके लिए दुख है” या “मैं समझ सकता हूँ कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं” जैसे कथन शामिल होते हैं।


सक्रिय सहानुभूति (Active Sympathy)

इसके विपरीत, सक्रिय सहानुभूति वह होती है जिसमें सहानुभूति के साथ-साथ कार्रवाई भी शामिल होती है। इसमें व्यक्ति पीड़ित की मदद के लिए कोई काम करता है, जैसे भोजन देना, चिकित्सा सहायता प्रदान करना, या किसी भी तरह से उसकी समस्या को हल करने में मदद करना।

 

प्रश्‍न – (26) निम्‍न में से कौनसी किशोरवस्‍था की विशेषता नहीं है।

1.      शारीरिक विकास
2.      मानसिक विकास
3.      समूह का महत्‍व
4.      तीव्र समायोजन
उत्‍तर – 4

इसका सही उत्तर है 4. तीव्र समायोजन


किशोरावस्था की विशेषताएँ

किशोरावस्था (लगभग 12 से 18 वर्ष की आयु) को जीवन का एक चुनौतीपूर्ण और परिवर्तनशील काल माना जाता है। इस दौरान, व्यक्ति के व्यवहार में अस्थिरता और कई प्रकार के शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक बदलाव आते हैं।

  • शारीरिक विकास: इस अवस्था में शरीर में तेजी से वृद्धि होती है, जिसमें हार्मोनल बदलाव, यौन परिपक्वता, और शारीरिक बनावट में परिवर्तन शामिल हैं।

  • मानसिक विकास: किशोरों की सोच अधिक तार्किक, अमूर्त और काल्पनिक हो जाती है। वे भविष्य के बारे में सोचना शुरू करते हैं।

  • समूह का महत्व: इस अवस्था में किशोरों के लिए उनके समूह (peer group) का महत्व बहुत बढ़ जाता है। वे अपने दोस्तों की राय को परिवार की राय से अधिक महत्व देते हैं।

इसके विपरीत, तीव्र समायोजन (Rapid Adjustment) किशोरावस्था का लक्षण नहीं है, बल्कि इस अवस्था में अस्थिरता और समायोजन की समस्याएँ अधिक होती हैं। किशोरों को अपने बदलते शरीर, भावनाओं और सामाजिक अपेक्षाओं के साथ तालमेल बिठाने में अक्सर कठिनाई होती है, जिसके कारण तनाव और संघर्ष की स्थिति बनती है।

 

प्रश्‍न – (27) सीखना विकास की प्रक्रिया है यह किसने कहा था।

1.      वुडवर्थ 
2.      थार्नडाइक
3.      मॉर्गन
4.      क्रॉनबैक
उत्‍तर – 1

सीखना विकास की प्रक्रिया है, यह कथन 1. वुडवर्थ (Woodworth) का है।


वुडवर्थ का कथन

मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट एस. वुडवर्थ ने अधिगम (सीखने) को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जो व्यक्ति के विकास में योगदान करती है। उनके अनुसार, सीखना केवल जानकारी इकट्ठा करना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व में प्रगतिशील परिवर्तन लाती है। यह परिवर्तन व्यक्ति को नई परिस्थितियों के अनुकूल ढलने और बेहतर ढंग से कार्य करने में मदद करता है, जो वास्तव में विकास का ही एक रूप है।

 

प्रश्‍न – (28) निम्‍न में से कौन सा अधिगम का एक मुख्‍य थार्नडाइक नियम है।

1.      उपयोग का नियम
2.      अभ्‍यास का नियम
3.      आत्‍मीकरण का नियम
4.      मनोवृति का नियम
उत्‍तर – 2

निम्न में से अधिगम का एक मुख्य थार्नडाइक नियम है 2. अभ्यास का नियम (Law of Exercise)


थार्नडाइक के सीखने के मुख्य नियम

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एडवर्ड एल. थार्नडाइक (Edward L. Thorndike) ने सीखने के तीन मुख्य नियम दिए हैं, जो इस प्रकार हैं:

  1. तत्परता का नियम (Law of Readiness): जब कोई व्यक्ति सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार होता है, तो वह अधिक प्रभावी ढंग से सीखता है।

  2. अभ्यास का नियम (Law of Exercise): यह नियम दो भागों में विभाजित है:

    • उपयोग का नियम (Law of Use): जब किसी प्रतिक्रिया (response) का बार-बार उपयोग किया जाता है, तो वह मजबूत होती है।

    • अनुपयोग का नियम (Law of Disuse): जब किसी प्रतिक्रिया का उपयोग लंबे समय तक नहीं किया जाता, तो वह कमजोर हो जाती है।

  3. प्रभाव का नियम (Law of Effect): जब किसी कार्य को करने से संतोषजनक परिणाम मिलता है, तो वह क्रिया दोहराई जाती है। इसके विपरीत, यदि परिणाम असंतोषजनक हो, तो वह क्रिया कमजोर हो जाती है।

दिए गए विकल्पों में से, अभ्यास का नियम थार्नडाइक के सीखने के तीन मुख्य नियमों में से एक है।

 

प्रश्‍न – (29) अनुदेशन का प्रणाली उपागम है।

1.      शिक्षक केन्द्रित
2.      बाल केन्द्रित
3.      कक्षाकक्ष केंन्द्रित
4.      समस्‍या केन्द्रित
उत्‍तर – 4

अनुदेशन का प्रणाली उपागम समस्या-केंद्रित है।


प्रणाली उपागम क्या है?

प्रणाली उपागम (System Approach) एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित विधि है जो शिक्षण प्रक्रिया की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए उपयोग की जाती है। यह उपागम किसी समस्या को हल करने पर केंद्रित होता है, जैसे कि छात्रों के सीखने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना।

इसमें निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:

  1. समस्या की पहचान: सबसे पहले, सीखने की समस्या या कमी का पता लगाया जाता है।

  2. उद्देश्यों का निर्धारण: समस्या को हल करने के लिए विशिष्ट लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है।

  3. योजना बनाना: लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे प्रभावी तरीके और संसाधन चुने जाते हैं।

  4. मूल्यांकन: शिक्षण के परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है और यदि आवश्यक हो तो सुधार किया जाता है।

यह उपागम न तो केवल शिक्षक पर, न छात्र पर, और न ही कक्षा पर केंद्रित होता है, बल्कि इसका मुख्य ध्यान समस्या को हल करने पर होता है।

 

प्रश्‍न – (30) समूह विधियो द्वारा सीखने का उदाहरण है।

1.      वाद विवाद विधि
2.      कार्यशाला विधि
3.      विचार गोष्ठि
4.      ये सभी
उत्‍तर – 4

समूह विधियों द्वारा सीखने का उदाहरण 4. ये सभी हैं।


समूह विधियों का महत्व

समूह विधियाँ वे शिक्षण तकनीकें हैं जहाँ छात्र छोटे या बड़े समूहों में एक साथ काम करके सीखते हैं। इन विधियों का मुख्य उद्देश्य सहयोग, पारस्परिक विचार-विमर्श, और सामूहिक समस्या-समाधान को बढ़ावा देना है।

  • वाद-विवाद विधि (Debate Method): इस विधि में, छात्र एक समूह में किसी विषय पर पक्ष और विपक्ष में तर्क-वितर्क करते हैं। यह उन्हें आलोचनात्मक सोच और प्रभावी संचार कौशल विकसित करने में मदद करता है।

  • कार्यशाला विधि (Workshop Method): यह एक ऐसी विधि है जहाँ छात्र एक समूह में किसी कार्य को करके सीखते हैं, जैसे किसी प्रोजेक्ट पर काम करना या एक कौशल का अभ्यास करना।

  • विचार-गोष्ठी (Seminar): इसमें छात्र किसी विशिष्ट विषय पर एक समूह में अपने विचार और निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं और चर्चा करते हैं। यह उन्हें अपने ज्ञान को साझा करने और दूसरों से सीखने का अवसर देता है।

ये सभी विधियाँ सीखने में समूह कार्य के महत्व को दर्शाती हैं, और इसलिए ये सभी समूह विधियों द्वारा सीखने के उदाहरण हैं।

 

प्रश्‍न – (31) अधिगम को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारको में से एक है।

1.      सामाजिक परिवेश
2.      थकावट
3.      मानसिक स्‍तर
4.      इनमें से कोई नहीं
उत्‍तर – 1

अधिगम (सीखने) को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों में से एक सामाजिक परिवेश है।


पर्यावरणीय कारक

पर्यावरणीय कारक वे कारक हैं जो व्यक्ति के बाहर से आते हैं और उसके सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, भौतिक और पारिवारिक वातावरण शामिल हैं।

  • सामाजिक परिवेश: यह अधिगम को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इसमें परिवार, मित्र, स्कूल, शिक्षक और सामाजिक मानदंड शामिल हैं। एक सकारात्मक और सहायक सामाजिक परिवेश सीखने को बढ़ावा देता है, जबकि एक नकारात्मक परिवेश इसे बाधित कर सकता है।


आंतरिक कारक

दिए गए अन्य विकल्प आंतरिक कारक हैं, जो व्यक्ति के भीतर से आते हैं।

  • थकावट: यह एक शारीरिक और मानसिक स्थिति है जो सीखने की क्षमता को कम करती है।

  • मानसिक स्तर: यह व्यक्ति की बुद्धि, स्मृति और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं को संदर्भित करता है।

इस प्रकार, सामाजिक परिवेश ही एकमात्र विकल्प है जो एक बाहरी या पर्यावरणीय कारक है।

 

प्रश्‍न – (32) निम्‍न में से कौन सा मानसिक रूप से स्‍वास्‍थ व्‍यक्ति का लक्षण है।

1.      सहनशीलता
2.      आत्‍मविश्‍वास
3.      संवेगात्‍मक परिपक्‍वता
4.      ये सभी
उत्‍तर – 4

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण ये सभी हैं।


मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण

एक मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति वह होता है जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने, सकारात्मक संबंध बनाने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होता है। ये सभी गुण एक मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में पाए जाते हैं:

  • सहनशीलता (Tolerance): वह व्यक्ति जो मानसिक रूप से स्वस्थ होता है, वह विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य रखता है और तनाव का सामना कर सकता है।

  • आत्मविश्वास (Self-confidence): ऐसे व्यक्ति को अपनी क्षमताओं पर विश्वास होता है, और वह अपने निर्णय खुद ले सकता है।

  • संवेगात्मक परिपक्वता (Emotional Maturity): इसका अर्थ है अपनी भावनाओं को समझना, उन्हें नियंत्रित करना और उचित तरीके से व्यक्त करना।

ये सभी लक्षण मिलकर एक संतुलित और परिपक्व व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य का प्रतीक है।

 

प्रश्‍न – (33) कक्षा में परस्‍पर‍ संवाद से क्‍या उभरकर आना चाहिए।  

1.      विवाद
2.      सूचना
3.      विचार
4.      तर्क वितर्क
उत्‍तर – 3

कक्षा में परस्पर संवाद से विचार उभरकर आना चाहिए।


संवाद का उद्देश्य

कक्षा में छात्रों और शिक्षक के बीच परस्पर संवाद (interaction) का मुख्य उद्देश्य विचारों का आदान-प्रदान करना होता है। यह संवाद छात्रों को अपनी सोच को स्पष्ट करने, नए दृष्टिकोण विकसित करने और एक-दूसरे के विचारों को समझने में मदद करता है। जब छात्र अपने विचार साझा करते हैं, तो यह न केवल उनके स्वयं के अधिगम (learning) को बढ़ाता है, बल्कि पूरी कक्षा के लिए एक समृद्ध शैक्षिक वातावरण भी बनाता है।

अन्य विकल्प क्यों सही नहीं हैं:

  • विवाद (Dispute): यह संवाद का एक नकारात्मक परिणाम है, जो सीखने की प्रक्रिया को बाधित करता है।

  • सूचना (Information): सूचना केवल तथ्यों का संग्रह है, जबकि विचार उन तथ्यों की समझ और व्याख्या को दर्शाता है।

  • तर्क-वितर्क (Argument): तर्क-वितर्क विचारों को व्यक्त करने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन यह स्वयं संवाद का अंतिम लक्ष्य नहीं है। विचार तर्क-वितर्क से अधिक व्यापक और रचनात्मक होते हैं।

 

प्रश्‍न – (34) किसी कार्य को करने की विशिष्‍ट योग्‍यता को कहते है।

1.      अभिरूचि
2.      प्रत्‍यक्षीकरण
3.      अभियोग्‍यता
4.      अभिवृति
उत्‍तर – 3

किसी कार्य को करने की विशिष्ट योग्यता को अभियोग्यता (Aptitude) कहते हैं।


अभियोग्यता क्या है?

अभियोग्यता एक व्यक्ति में मौजूद वह स्वाभाविक या जन्मजात क्षमता है जो उसे किसी विशिष्ट कार्य या क्षेत्र में सफल होने की संभावना दर्शाती है। यह ज्ञान या कौशल नहीं है जो सीखा गया है, बल्कि यह एक ऐसी संभावित क्षमता है जो सही प्रशिक्षण और अनुभव से विकसित की जा सकती है।

उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति में संगीत की अभियोग्यता हो सकती है, जिसका अर्थ है कि वह संगीत को आसानी से सीख सकता है और उसमें कुशल हो सकता है।

अन्य विकल्प क्यों सही नहीं हैं:

  • अभिरुचि (Interest): यह किसी चीज के प्रति व्यक्ति का झुकाव या पसंद है, लेकिन यह उस कार्य को करने की क्षमता नहीं है।

  • प्रत्यक्षीकरण (Perception): यह इंद्रियों के माध्यम से जानकारी को समझने की प्रक्रिया है।

  • अभिवृत्ति (Attitude): यह किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के प्रति व्यक्ति का दृष्टिकोण है।

 

प्रश्‍न – (35) कम्‍प्‍यूटर की विशिष्‍ट विशेषता है।

1.      गति
2.      संभरण
3.      परिशुद्धता
4.      ये सभी
उत्‍तर – 4

कम्प्यूटर की विशिष्ट विशेषताएँ ये सभी हैं।


कंप्यूटर की मुख्य विशेषताएँ

  • गति (Speed): कंप्यूटर बहुत तेजी से गणनाएँ और कार्य कर सकता है। यह एक सेकंड में लाखों निर्देशों को संसाधित (process) कर सकता है, जो मानव के लिए असंभव है।

  • संभरण (Storage): कंप्यूटर डेटा और जानकारी को बड़ी मात्रा में संग्रहीत कर सकता है। इसकी मेमोरी क्षमता बहुत अधिक होती है, जिससे यह बड़ी फाइलों और प्रोग्रामों को आसानी से संभाल सकता है।

  • परिशुद्धता (Accuracy): कंप्यूटर बिना किसी त्रुटि के कार्य करता है। यह हमेशा सटीक और विश्वसनीय परिणाम देता है, बशर्ते इनपुट डेटा और निर्देश सही हों।

ये तीनों विशेषताएँ मिलकर कंप्यूटर को एक शक्तिशाली और बहुमुखी उपकरण बनाती हैं।

 

प्रश्‍न – (36) प्रशिक्षण एवं अभ्‍यास संबंधित है।

1.      संज्ञानात्‍मक वाद से
2.      व्‍यवहारवाद से
3.      निर्मितवाद से
4.      कोई नहीं
उत्‍तर – 2

प्रशिक्षण और अभ्यास का संबंध 2. व्यवहारवाद (Behaviorism) से है।


व्यवहारवाद और अधिगम

व्यवहारवाद मनोविज्ञान का एक ऐसा सिद्धांत है जो इस बात पर जोर देता है कि अधिगम (सीखना) बाहरी उद्दीपनों (stimuli) और प्रतिक्रियाओं (responses) के बीच संबंध स्थापित करने से होता है। व्यवहारवादी मानते हैं कि व्यक्ति का व्यवहार पर्यावरण के साथ उसकी अंतःक्रिया का परिणाम है।

  • प्रशिक्षण (Training): व्यवहारवाद में, प्रशिक्षण का उपयोग वांछित व्यवहार को विकसित करने के लिए किया जाता है। यह बार-बार दिए जाने वाले निर्देशों और प्रतिक्रियाओं पर आधारित होता है।

  • अभ्यास (Practice): अभ्यास एक दोहराव वाली प्रक्रिया है, जिसे व्यवहारवाद में सीखने के लिए आवश्यक माना जाता है। थार्नडाइक का ‘अभ्यास का नियम’ इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जिसमें कहा गया है कि किसी कार्य को बार-बार करने से सीखने की प्रक्रिया मजबूत होती है।

इसलिए, प्रशिक्षण और अभ्यास जैसी अवधारणाएँ व्यवहारवाद के मूल सिद्धांतों का हिस्सा हैं, जहाँ सीखने को अवलोकन योग्य और मापने योग्य व्यवहार के रूप में देखा जाता है।

 

प्रश्‍न – (37) मस्तिष्‍काधोमुखी सिद्धांत के अनुसार विकास होता है।

1.      दांयी से बांयी ओर
2.      पैर से सिर की ओर
3.      बांयी से दांयी ओर
4.      सिर से पैर की ओर
उत्‍तर – 4

मस्तिष्‍काधोमुखी सिद्धांत (Cephalocaudal Principle) के अनुसार, विकास 4. सिर से पैर की ओर होता है।


मस्तिष्काधोमुखी सिद्धांत क्या है?

मस्तिष्काधोमुखी सिद्धांत मानव विकास का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो बताता है कि शारीरिक विकास सिर से शुरू होकर नीचे की ओर, यानी पैरों की दिशा में होता है।

  • शिशु का विकास: इस सिद्धांत का सबसे अच्छा उदाहरण एक नवजात शिशु में देखा जा सकता है। शिशु सबसे पहले अपने सिर और गर्दन को नियंत्रित करना सीखता है, फिर अपने धड़ को, और अंत में पैरों को। वह पहले बैठना सीखता है, फिर घुटनों के बल चलना और अंत में खड़ा होना और चलना।

यह सिद्धांत यह भी बताता है कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का विकास भी सिर से पैरों की दिशा में होता है, जो शरीर के अंगों को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

 

प्रश्‍न – (38) निम्‍न में से समस्‍या समाधान को क्‍या बाधित नहीं करता ।

1.      अन्‍तर्दृष्टि
2.      मानसिक प्रारूपता
3.      मोर्चाबंदी
4.      निर्धारण
उत्‍तर – 3

समस्या समाधान को 1. अंतर्दृष्टि (Insight) बाधित नहीं करती।


अंतर्दृष्टि और समस्या समाधान

अंतर्दृष्टि का अर्थ है किसी समस्या का अचानक और सहज समाधान प्राप्त होना। यह अक्सर तब होता है जब व्यक्ति किसी समस्या के विभिन्न हिस्सों के बीच अचानक संबंध स्थापित करता है। यह सीखने की एक प्रक्रिया है जो समस्या-समाधान को सुगम बनाती है, उसे बाधित नहीं करती।


अन्य कारक जो समस्या समाधान को बाधित करते हैं

  • मानसिक प्रारूपता (Mental Set): यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति किसी समस्या को हल करने के लिए केवल उन्हीं तरीकों का उपयोग करता है जो उसने पहले सफल माने हैं, भले ही वे वर्तमान समस्या के लिए उपयुक्त न हों। यह नई और रचनात्मक सोच को रोकता है।

  • मोर्चाबंदी (Frontierism): यह शब्द मनोविज्ञान में अक्सर नहीं प्रयोग होता, लेकिन इसका अर्थ एक तरह की रुकावट या बाधा हो सकता है।

  • निर्धारण (Fixation): यह मानसिक प्रारूपता से संबंधित है, जिसमें व्यक्ति किसी समस्या के एक विशेष समाधान पर अटक जाता है और अन्य संभावित समाधानों पर विचार नहीं कर पाता।

इसलिए, अंतर्दृष्टि एकमात्र ऐसा कारक है जो समस्या समाधान में सहायक होता है।

 

प्रश्‍न – (39) निम्‍न में से किस अवस्‍था में बालक अपने समकक्षी वर्ग के सक्रिय सदस्‍य बनते है।

1.      वयस्‍कावस्‍था
2.      बाल्‍यावस्‍था
3.      किशोरावस्‍था
4.      पूर्व बाल्‍यावस्‍था
उत्‍तर – 2

जिस अवस्था में बालक अपने समकक्ष वर्ग के सक्रिय सदस्य बनते हैं, वह है 3. किशोरावस्था (Adolescence)


किशोरावस्था (Adolescence) और समकक्ष समूह

किशोरावस्था (लगभग 12 से 18 वर्ष की आयु) एक ऐसा समय होता है जब व्यक्ति की पहचान और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं। इस दौरान, किशोर अपने माता-पिता और परिवार से अलग होकर अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं।

इसी कारण, उनके लिए उनके समकक्ष समूह (peer group) का महत्व बहुत बढ़ जाता है।

  • वे अपने समूह के सदस्यों की राय को अत्यधिक महत्व देते हैं।

  • वे अपने दोस्तों के साथ अधिक समय बिताते हैं।

  • वे अपने समूह के मानदंडों और मूल्यों को अपनाते हैं।

इस तरह, किशोर इस अवस्था में अपने समकक्ष समूह के सक्रिय सदस्य बन जाते हैं, जो उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।

 

प्रश्‍न – (40) निम्‍न में से कोहलबर्ग कें नैतिक विकास सिद्धांत की अवस्‍था नहीं है।

1.      प्राक् रूढिगत
2.      रूढिगत
3.      संवेदी प्रेरक
4.      पश्‍चात रूढिगत
उत्‍तर – 3

कोहलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत की अवस्था संवेदी प्रेरक (Sensorimotor) नहीं है।


कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत (Kohlberg’s Theory of Moral Development)

लॉरेंस कोहलबर्ग ने नैतिक तर्क और निर्णय के विकास के तीन मुख्य स्तरों का वर्णन किया है, जिनमें से प्रत्येक में दो अवस्थाएँ होती हैं:

  1. प्राक्-रूढ़िगत स्तर (Preconventional Level):

    • अवस्था 1: दंड और आज्ञाकारिता उन्मुखीकरण (Obedience and Punishment Orientation): बच्चा नियमों का पालन दंड से बचने के लिए करता है।

    • अवस्था 2: वैयक्तिक स्वार्थ उन्मुखीकरण (Individualism and Exchange): बच्चा अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नियमों का पालन करता है।

  2. रूढ़िगत स्तर (Conventional Level):

    • अवस्था 3: अच्छा लड़का/अच्छी लड़की उन्मुखीकरण (Good Interpersonal Relationships): बच्चा सामाजिक स्वीकृति पाने के लिए अच्छा बनने की कोशिश करता है।

    • अवस्था 4: सामाजिक व्यवस्था उन्मुखीकरण (Maintaining the Social Order): व्यक्ति कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नियमों का पालन करता है।

  3. पश्च-रूढ़िगत स्तर (Postconventional Level):

    • अवस्था 5: सामाजिक अनुबंध उन्मुखीकरण (Social Contract and Individual Rights): व्यक्ति यह मानता है कि कानून सामाजिक अनुबंधों का हिस्सा हैं और उनमें बदलाव किया जा सकता है।

    • अवस्था 6: सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत उन्मुखीकरण (Universal Ethical Principles): व्यक्ति अपने स्वयं के नैतिक सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेता है।


संवेदी-प्रेरक अवस्था

संवेदी-प्रेरक अवस्था (Sensorimotor stage) जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का हिस्सा है, न कि कोहलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत का। यह अवस्था जन्म से लगभग दो वर्ष की आयु तक होती है और इसमें बच्चे अपनी इंद्रियों और गतिविधियों के माध्यम से दुनिया को समझते हैं।

 

प्रश्‍न – (41) बालक का मानसिक स्‍वास्‍थ निर्भर करता है। 

1.      विद्यालय पर
2.      परिवार पर
3.      समुदाय पर
4.      सभी
उत्‍तर – 4

बालक का मानसिक स्वास्थ्य इन सभी पर निर्भर करता है।


मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक

बालक का मानसिक स्वास्थ्य एक जटिल अवधारणा है, जो कई कारकों से प्रभावित होती है। इन सभी कारकों का एक-दूसरे के साथ गहरा संबंध होता है।

  • विद्यालय (School): एक सकारात्मक और सहायक विद्यालय का वातावरण बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव डालता है। यहाँ उसे सीखने, सामाजिक संबंध बनाने और अपनी क्षमताओं को विकसित करने का अवसर मिलता है।

  • परिवार (Family): परिवार बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य का सबसे महत्वपूर्ण कारक है। एक सुरक्षित, प्रेमपूर्ण और सहायक पारिवारिक वातावरण बच्चे में आत्मविश्वास और भावनात्मक सुरक्षा की भावना विकसित करता है।

  • समुदाय (Community): समुदाय में मौजूद संसाधन, जैसे पार्क, खेल के मैदान और सामाजिक गतिविधियाँ, बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। एक सहायक समुदाय बच्चे को सामाजिक कौशल विकसित करने और बाहरी दुनिया से जुड़ने का अवसर देता है।

इसलिए, ये सभी कारक मिलकर बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

 

प्रश्‍न – (42) निम्‍न में से कौन सा तत्‍व संप्रेशण का तत्‍व नहीं है।

1.      संप्रेषण का माध्‍यम
2.      संप्रेषण की श्रृंखला
3.      संप्रेषण का उद्देश्‍य
4.      संप्रेषण का नियोजन
उत्‍तर – 4

संप्रेषण (संचार) का तत्व 4. संप्रेषण का नियोजन नहीं है।


संप्रेषण के मूल तत्व

संप्रेषण एक प्रक्रिया है जिसमें संदेश भेजने वाला (प्रेषक), एक माध्यम, और संदेश प्राप्त करने वाला (प्राप्तकर्ता) शामिल होते हैं। इसके मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं:

  • संप्रेषण का माध्यम (Medium of Communication): यह वह चैनल है जिसके माध्यम से संदेश भेजा जाता है (जैसे मौखिक, लिखित, या दृश्य)।

  • संप्रेषण की श्रृंखला (Chain of Communication): यह संदेश के प्रवाह को संदर्भित करता है, यानी संदेश कैसे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचता है।

  • संप्रेषण का उद्देश्य (Objective of Communication): यह वह कारण है जिसके लिए संदेश भेजा जाता है (जैसे जानकारी देना, प्रेरित करना या राजी करना)।

संप्रेषण का नियोजन (Planning of Communication) संप्रेषण से पहले की जाने वाली तैयारी है, न कि स्वयं संप्रेषण का एक मूल तत्व। यह एक क्रिया है जो सफल संप्रेषण के लिए आवश्यक है, लेकिन यह संप्रेषण प्रक्रिया का आंतरिक हिस्सा नहीं है।

 

प्रश्‍न – (43) किस अवस्‍था में बालक में परामर्श शिक्षण अत्‍यंत सक्रिय होता है।

1.      बाल्‍यावस्‍था
2.      किशोरावस्‍था
3.      उत्‍तर बाल्‍यावस्‍था
4.      पूर्व बाल्‍यावस्‍था
उत्‍तर – 2

किसी भी बालक के विकास में परामर्श शिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण और सक्रिय समय 2. किशोरावस्था (Adolescence) होता है।

किशोरावस्था और परामर्श

किशोरावस्था (लगभग 12 से 18 वर्ष की आयु) एक ऐसा संक्रमण काल है जब व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास में तेजी से बदलाव का अनुभव करता है। इस दौरान किशोरों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे:

  • पहचान का संकट: वे यह समझने की कोशिश करते हैं कि वे कौन हैं और उनका उद्देश्य क्या है।

  • सामाजिक दबाव: उन्हें अपने समकक्ष समूह (peer group) से अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ता है।

  • भविष्य की चिंता: उन्हें करियर और भविष्य के बारे में निर्णय लेने होते हैं।

इन चुनौतियों के कारण, परामर्श (counselling) इस अवस्था में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। एक परामर्शदाता उन्हें इन समस्याओं को समझने, उनसे निपटने और सही निर्णय लेने में मदद कर सकता है। यही कारण है कि इस अवस्था में परामर्श शिक्षण सबसे अधिक सक्रिय होता है।

 

प्रश्‍न – (44) अभिक्रमित अधिगम मॉडल के जनक है।  

1.      आसुबेल
2.      पियाजे
3.      हल
4.      स्किनर
उत्‍तर – 4

अभिक्रमित अधिगम मॉडल के जनक 4. स्किनर हैं।


बी.एफ. स्किनर और अभिक्रमित अधिगम

बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे जिन्हें व्यवहारवाद (Behaviorism) के क्षेत्र में उनके काम के लिए जाना जाता है। उन्होंने क्रिया प्रसूत अनुबंधन (Operant Conditioning) का सिद्धांत दिया, जिसके आधार पर अभिक्रमित अधिगम मॉडल (Programmed Learning Model) विकसित हुआ।

  • अभिक्रमित अधिगम एक शिक्षण पद्धति है जिसमें पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे, तार्किक चरणों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक चरण के बाद, छात्र को एक प्रश्न का उत्तर देना होता है। यदि उत्तर सही होता है, तो उसे तुरंत सकारात्मक प्रतिपुष्टि (reinforcement) मिलती है और वह अगले चरण पर चला जाता है। यदि उत्तर गलत होता है, तो उसे सही उत्तर तक पहुँचने के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है।

यह मॉडल सीखने की प्रक्रिया को व्यक्ति-केंद्रित और स्व-गतिशील बनाता है, और यह स्किनर के सीखने के सिद्धांतों पर आधारित है।

 

प्रश्‍न – (45) निम्‍न में से कौन सी शिक्षण सिद्धांत की एक विशेषता नहीं है।

1.      सीखने की उत्‍सुकता
2.      ज्ञान की संरचना
3.      क्रमशीलता का अभाव
4.      पुष्टिकरण
उत्‍तर – 3

जिस शिक्षण सिद्धांत की विशेषता नहीं है, वह है 3. क्रमशीलता का अभाव


शिक्षण सिद्धांत की विशेषताएँ

एक प्रभावी शिक्षण सिद्धांत में निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल होती हैं:

  • सीखने की उत्सुकता (Eagerness to learn): यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि सीखने वाला उत्सुक और सक्रिय होना चाहिए।

  • ज्ञान की संरचना (Structuring of knowledge): यह सिद्धांत बताता है कि जानकारी को तार्किक और संरचित तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि छात्र उसे आसानी से समझ सकें और अपने पूर्व ज्ञान से जोड़ सकें।

  • पुष्टिकरण (Reinforcement): यह सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया में सकारात्मक प्रतिपुष्टि (positive feedback) के महत्व को रेखांकित करता है, जिससे छात्र को प्रोत्साहन मिलता है।

इसके विपरीत, क्रमशीलता का अभाव किसी भी प्रभावी शिक्षण सिद्धांत की विशेषता नहीं हो सकती। सीखना हमेशा एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित प्रक्रिया होती है, जिसमें एक अवधारणा को दूसरी अवधारणा से जोड़कर सीखा जाता है। क्रमशीलता के अभाव से शिक्षण प्रक्रिया बाधित होती है और सीखने में कठिनाई आती है।

 

प्रश्‍न – (46) पियाजे के अनुसार किशोरावस्‍था में संज्ञानात्‍मक विकास की कौन सी अवस्‍था प्रारम्‍भ होती है।

1.      पूर्व कार्यात्मक अवस्‍था
2.      औपचारिक कार्यात्मक अवस्‍था
3.      संवेदीगामक अवस्‍था
4.      स्‍थूल कार्यात्मक अवस्‍था
उत्‍तर – 2

पियाजे के अनुसार किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास की औपचारिक कार्यात्मक अवस्था (Formal Operational Stage) प्रारंभ होती है।


पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के चरण

जीन पियाजे (Jean Piaget) के सिद्धांत के अनुसार, बच्चों का संज्ञानात्मक विकास चार मुख्य अवस्थाओं से होकर गुजरता है:

  1. संवेदीगामक अवस्था (Sensorimotor Stage): जन्म से 2 वर्ष तक। इस अवस्था में शिशु अपनी इंद्रियों और गतिविधियों के माध्यम से दुनिया को समझते हैं।

  2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Preoperational Stage): 2 से 7 वर्ष तक। इस अवस्था में बच्चे प्रतीकों और शब्दों का उपयोग करना सीखते हैं, लेकिन उनकी सोच अभी भी तर्कपूर्ण नहीं होती।

  3. मूर्त-संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage): 7 से 11 वर्ष तक। इस अवस्था में बच्चे तार्किक रूप से सोचने लगते हैं, लेकिन केवल मूर्त वस्तुओं और घटनाओं के बारे में।

  4. औपचारिक-संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage): लगभग 11 वर्ष से वयस्कता तक। यह किशोरावस्था से शुरू होती है। इस अवस्था में किशोर अमूर्त सोच (abstract thinking), तार्किक तर्क (logical reasoning), और परिकल्पनात्मक-निगमनात्मक तर्क (hypothetical-deductive reasoning) विकसित करते हैं। वे भविष्य के बारे में सोच सकते हैं, जटिल समस्याओं को हल कर सकते हैं और सिद्धांतों को समझ सकते हैं।

 

प्रश्‍न – (47) किशोरावस्‍था वह अवस्‍था है जिसमें बालक परिपक्‍वता की ओर अग्रसर होता है। यह कथन किसका है।

1.      स्‍टेनली
2.      जेरसील्‍ड
3.      हरलॉक
4.      कोई नहीं
उत्‍तर – 2

यह कथन 2. जेरसील्ड (Jersild) का है।


जेरसील्ड की परिभाषा

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक आर्थर टी. जेरसील्ड ने किशोरावस्था (adolescence) को एक ऐसी अवस्था के रूप में परिभाषित किया है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे परिपक्वता (maturity) की ओर बढ़ता है। इस परिभाषा में, जेरसील्ड ने किशोरावस्था को केवल एक उम्र का काल न मानकर, एक विकासात्मक प्रक्रिया के रूप में देखा है जिसमें व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक रूप से परिपक्व होता है।

 

प्रश्‍न – (48) संवेगात्‍मक बुद्धि को लो‍कप्रिय बनाने का श्रेय किसको जाता है।

1.      डेनियल गोलमैन
2.      जॉन डी मेयर
3.      पीटर
4.      सेलावे
उत्‍तर – 1

संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence) को लोकप्रिय बनाने का श्रेय 1. डेनियल गोलमैन को जाता है।


डेनियल गोलमैन की भूमिका

डेनियल गोलमैन (Daniel Goleman) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और पत्रकार हैं, जिन्होंने 1995 में अपनी पुस्तक “Emotional Intelligence: Why It Can Matter More Than IQ” लिखी। इस पुस्तक ने संवेगात्मक बुद्धि की अवधारणा को आम जनता के बीच व्यापक रूप से फैलाया।

गोलमैन ने तर्क दिया कि सफलता के लिए केवल उच्च IQ (बुद्धिलब्धि) पर्याप्त नहीं है, बल्कि EQ (संवेगात्मक बुद्धिलब्धि) का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। उन्होंने संवेगात्मक बुद्धि को पाँच मुख्य घटकों में विभाजित किया:

  1. आत्म-जागरूकता (Self-awareness)

  2. आत्म-नियंत्रण (Self-regulation)

  3. सामाजिक कौशल (Social skills)

  4. सहानुभूति (Empathy)

  5. प्रेरणा (Motivation)

जबकि जॉन डी. मेयर (John D. Mayer) और पीटर सेलोवे (Peter Salovey) ने संवेगात्मक बुद्धि की अवधारणा को वैज्ञानिक रूप से विकसित किया, यह गोलमैन की पुस्तक थी जिसने इसे विश्वभर में लोकप्रिय बनाया।

 

प्रश्‍न – (49) किशोरावस्‍था के आकस्मिक विकास का सिद्धांत कब किसने किया।

1.      1904 में हालिंग वर्थ ने
2.      1902 में हॉल ने
3.      1904 में स्‍टेनले हॉल ने
4.      1904 में थार्नडाइक ने
उत्‍तर – 3

किशोरावस्था के आकस्मिक विकास का सिद्धांत 1904 में स्टेनली हॉल ने दिया था।


आकस्मिक विकास का सिद्धांत (Theory of Sudden Development)

जी. स्टेनली हॉल (G. Stanley Hall) ने अपनी पुस्तक “Adolescence” (1904) में यह सिद्धांत प्रस्तुत किया था।

  • सिद्धांत का सार: इस सिद्धांत के अनुसार, किशोरावस्था कोई क्रमिक विकास की अवस्था नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी अवधि है जिसमें बालक के शारीरिक और मानसिक विकास में अचानक और तीव्र परिवर्तन आते हैं। हॉल ने इस अवस्था को “तनाव और तूफान की अवस्था” (period of ‘storm and stress’) कहा, जिसका अर्थ है कि किशोरों को इस दौरान तीव्र भावनात्मक उथल-पुथल और संघर्ष का अनुभव होता है।

यह सिद्धांत बताता है कि किशोरावस्था एक सहज और अचानक होने वाली प्रक्रिया है, जिसमें एक बच्चे से वयस्क बनने के दौरान कई बड़े बदलाव आते हैं।

 

प्रश्‍न – (50) सामाजिक एवं संवेगात्‍मक विकास साथ साथ चलते है कथन है।

1.      हॉल का
2.      स्किनर का
3.      क्रो व क्रो का
4.      स्‍ट्रैंग का
उत्‍तर – 3

सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास साथ-साथ चलते हैं, यह कथन  क्रो और क्रो (Crow & Crow) का है।


क्रो और क्रो की परिभाषा

मनोवैज्ञानिक लॉरेन्स डी. क्रो और एलिजाबेथ एफ. क्रो ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्ति का सामाजिक विकास उसके संवेगात्मक विकास से गहराई से जुड़ा हुआ है। उनके अनुसार, जैसे-जैसे व्यक्ति सामाजिक रूप से परिपक्व होता है, वह अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से समझना और नियंत्रित करना भी सीखता है। ये दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं और एक साथ चलती हैं।

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