Psychology Mock Test – 05

Psychology Mock Test – 05

 

प्रश्‍न – (1) वैयक्तिक विभिन्‍नता की अवधारणा की खोज किसने की।

1.      थार्नडाइक ने
2.      टेलर ने   
3.      गाल्‍टन ने 
4.      टर्मन ने
उत्‍तर – 3

वैयक्तिक विभिन्नता (Individual Differences) की अवधारणा की खोज फ्रांसिस गाल्टन ने की थी।


फ्रांसिस गाल्टन और वैयक्तिक विभिन्नता

सर फ्रांसिस गाल्टन (Sir Francis Galton), एक ब्रिटिश पॉलीमैथ, ने 19वीं शताब्दी के अंत में वैयक्तिक विभिन्नताओं के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  • उन्होंने ही सबसे पहले यह विचार प्रस्तुत किया कि मानव विशेषताओं, जैसे कि बुद्धि, ऊंचाई और उंगलियों के निशान, में भिन्नता होती है और उन्हें वैज्ञानिक रूप से मापा जा सकता है।

  • उन्होंने आनुवंशिकी (heredity) और पर्यावरण (environment) के मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया।

गाल्टन के काम ने मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में नए दरवाज़े खोले, जिससे यह समझा जा सका कि प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय होता है और सीखने की उसकी अपनी गति और शैली होती है।

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प्रश्‍न – (2) एक कक्षा में वैयक्तिक विभिन्‍नताओं के क्षेत्र हो सकतें है।

1.      रूचियों के
2.      सीखने के
3.      चरित्र के
4.      उपरोक्‍त सभी
उत्‍तर – 4

एक कक्षा में वैयक्तिक विभिन्नताओं के क्षेत्र उपरोक्त सभी हो सकते हैं।


वैयक्तिक विभिन्नताओं के क्षेत्र

वैयक्तिक विभिन्नता (Individual differences) का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह कितना भी समान क्यों न हो, एक-दूसरे से भिन्न होता है। यह भिन्नता केवल शारीरिक गुणों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी मौजूद होती है। एक कक्षा में यह कई रूपों में देखी जा सकती है:

  • रुचियों के क्षेत्र में: छात्रों की रुचियां अलग-अलग हो सकती हैं। एक छात्र को गणित पसंद हो सकता है, जबकि दूसरे को कला या संगीत।

  • सीखने के क्षेत्र में: हर छात्र की सीखने की गति और शैली अलग होती है। कुछ छात्र जल्दी सीखते हैं, जबकि कुछ को अधिक समय लगता है।

  • चरित्र के क्षेत्र में: छात्रों के चरित्र गुण भी अलग-अलग होते हैं। कोई अधिक मेहनती हो सकता है, तो कोई कम।

इसलिए, एक शिक्षक के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक छात्र अद्वितीय है और उसे उसी के अनुसार पढ़ाने की आवश्यकता है।

 

प्रश्‍न – (3) अध्‍यापन के समय अध्‍यापक को निम्‍न में से किसका सर्वाधिक ध्‍यान रखना चाहिए।

1.      विषय वस्‍तु
2.      विद्यार्थियों की आयु
3.      वैयक्तिक भिन्‍नता
4.      विद्यार्थियों की पारिवारिक पृष्‍ठभूमि
उत्‍तर –  3

अध्यापन के समय अध्यापक को सबसे ज्यादा ध्यान वैयक्तिक भिन्नता (Individual Differences) का रखना चाहिए।


वैयक्तिक भिन्नता का महत्व

प्रत्येक विद्यार्थी अद्वितीय होता है। उनकी रुचियाँ, सीखने की गति, क्षमताएँ, और अनुभव एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। एक प्रभावी शिक्षक को इन भिन्नताओं को समझना और अपने शिक्षण को उनके अनुसार ढालना चाहिए। ऐसा करने से:

  • छात्रों को सीखने का समान अवसर मिलता है: धीमी गति से सीखने वाले छात्रों को अतिरिक्त सहायता मिलती है, जबकि प्रतिभाशाली छात्रों को चुनौतीपूर्ण सामग्री दी जा सकती है।

  • सीखना अधिक प्रभावी होता है: जब शिक्षण शैली छात्रों की आवश्यकताओं से मेल खाती है, तो वे अधिक रुचि और प्रेरणा के साथ सीखते हैं।

अन्य विकल्प (विषय वस्तु, आयु, और पारिवारिक पृष्ठभूमि) भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ये सभी वैयक्तिक भिन्नता के व्यापक दायरे में आते हैं। उदाहरण के लिए, आयु एक कारक है जो वैयक्तिक भिन्नता को प्रभावित करती है, लेकिन केवल आयु पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि एक ही आयु वर्ग के छात्रों में भी बहुत भिन्नता होती है।

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प्रश्‍न – (4) वै‍यक्तिक भिन्‍नता का प्रमुख कारण है।

1.      आर्थिक स्थिति
2.      वंशक्रम
3.      बौद्धिकता
4.      सामाजिक स्‍तर
उत्‍तर –  2

वैयक्तिक भिन्नता का प्रमुख कारण वंशक्रम (Heredity) है।


वैयक्तिक भिन्नता के कारण

हालाँकि वैयक्तिक भिन्नता के कई कारण होते हैं, जैसे आर्थिक स्थिति, बौद्धिकता और सामाजिक स्तर, लेकिन इनमें से सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक कारण वंशक्रम है। वंशक्रम का अर्थ है कि व्यक्ति को उसके माता-पिता से आनुवंशिक गुण प्राप्त होते हैं।

ये आनुवंशिक गुण व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक विशेषताओं को निर्धारित करते हैं। जबकि वातावरण (environment) इन गुणों के विकास को प्रभावित कर सकता है, वंशक्रम ही वह नींव है जिस पर वैयक्तिक भिन्नता का निर्माण होता है।

 

प्रश्‍न – (5) बालक की भिन्‍नताऍ उद्दीपनों का परिणाम है। यह किसने कहा।  

1.      थॉर्नडाइक
2.      गिलफोर्ड
3.      जरशील्‍ड
4.      गैरीसन
उत्‍तर –  4
‘बालक की भिन्नताएँ उद्दीपनों का परिणाम है।’ यह कथन गैरीसन (Garrison) का है।
यह कथन व्यक्तिगत भिन्नताओं के संदर्भ में दिया गया है। गैरीसन और अन्य मनोवैज्ञानिकों का मानना था कि बच्चों में पाए जाने वाले अंतर मुख्य रूप से अभिप्रेरणा, बुद्धि, परिपक्वता और पर्यावरणीय उद्दीपनों में भिन्नता के कारण होते हैं। 
 

प्रश्‍न – (6) व्‍यक्तिगत भिन्‍नता के कारक सदैव ही हाते है।

1.      वंशागत
2.      सामाजिक एवं आर्थिक
3.      संवेगात्‍मक एवं व्‍यक्तिगत
4.      पर्यावरणीय एवं वंशागत
उत्‍तर –  3

वैयक्तिक भिन्नता के कारक सदैव ही 4. पर्यावरणीय एवं वंशागत होते हैं।


वैयक्तिक भिन्नता के कारक

वैयक्तिक भिन्नताएँ (Individual differences) दो प्रमुख कारकों के कारण होती हैं:

  1. वंशक्रम (Heredity): यह वे आनुवंशिक गुण हैं जो व्यक्ति को उसके माता-पिता से मिलते हैं। ये गुण व्यक्ति की शारीरिक बनावट (ऊंचाई, रंग), बुद्धि, और कुछ हद तक उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।

  2. पर्यावरण (Environment): यह वे सभी बाहरी कारक हैं जो व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं। इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक और शैक्षिक वातावरण शामिल हैं। एक व्यक्ति के अनुभव, शिक्षा और सामाजिक परिवेश उसके व्यक्तित्व, रुचियों और क्षमताओं को आकार देते हैं।

इन दोनों कारकों को अक्सर प्रकृति (Nature) और पोषण (Nurture) के रूप में संदर्भित किया जाता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि व्यक्ति का विकास इन दोनों कारकों की जटिल अंतःक्रिया का परिणाम है।

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प्रश्‍न – (7) शिक्षार्थी वैयक्तिक भिन्‍नता प्रदर्शित करते है। अत: एक शिक्षक को

1.      अधिगम की एक समान गति पर बल देना चाहिए।
2.      सीखने के विविध अनुभवो को उपलब्‍ध कराना चाहिए। 
3.      कठोर अनुशासन सुनिश्चित करना चाहिए।
4.      परीक्षाओं की संख्‍या बढा देनी चाहिए। 
उत्‍तर –  2

शिक्षार्थी वैयक्तिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं, इसलिए एक शिक्षक को 2. सीखने के विविध अनुभवों को उपलब्ध कराना चाहिए


वैयक्तिक भिन्नता और शिक्षण

जब एक शिक्षक यह समझता है कि प्रत्येक छात्र अद्वितीय है और उसकी सीखने की गति, क्षमता, और रुचि अलग है, तो उसे अपनी शिक्षण विधि में भी विविधता लानी चाहिए।

  • विविध अनुभव: सीखने के विविध अनुभव प्रदान करने से शिक्षक यह सुनिश्चित कर सकता है कि हर छात्र अपनी क्षमता और शैली के अनुसार सीख सके। उदाहरण के लिए, कुछ छात्र सुनकर बेहतर सीखते हैं, जबकि कुछ देखकर या करके सीखते हैं। एक शिक्षक जो विभिन्न शिक्षण विधियों (जैसे व्याख्यान, समूह कार्य, दृश्य सामग्री, और व्यावहारिक गतिविधियाँ) का उपयोग करता है, वह सभी छात्रों के लिए सीखने को प्रभावी बना सकता है।

अन्य विकल्प क्यों अनुपयुक्त हैं

  • एक समान गति पर बल देना: यह वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धांत के विपरीत है, क्योंकि यह मानता है कि सभी छात्र एक ही गति से सीख सकते हैं, जो कि सच नहीं है।

  • कठोर अनुशासन: कठोर अनुशासन छात्रों में तनाव पैदा कर सकता है और सीखने की प्रक्रिया को बाधित कर सकता है।

  • परीक्षाओं की संख्या बढ़ाना: यह छात्रों पर अनावश्यक दबाव डालता है और उनकी सीखने की प्रक्रिया में सुधार नहीं करता।

 

प्रश्‍न – (8) व्‍यक्तिगत शिक्षार्थी एक – दूसरे से …….. मे भिन्‍न होते है।

1.      विकास की दर
2.      विकास – क्रम 
3.      विकास की सामान्‍य क्षमता 
4.      वृद्धि एवं विकास के सिद्धान्‍तों 
उत्‍तर –  1

व्यक्तिगत शिक्षार्थी एक-दूसरे से 1. विकास की दर (Rate of Development) में भिन्न होते हैं।


विकास की दर में भिन्नता

हर व्यक्ति का विकास एक ही क्रम में होता है, लेकिन उसकी गति या दर अलग-अलग हो सकती है। यह विकासात्मक मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसे वैयक्तिक भिन्नता (Individual Differences) कहते हैं।

  • विकास का क्रम (Sequence of Development): विकास का क्रम सभी बच्चों में लगभग समान होता है। उदाहरण के लिए, सभी बच्चे पहले बैठना, फिर खड़े होना और अंत में चलना सीखते हैं। यह क्रम कभी नहीं बदलता।

  • विकास की दर (Rate of Development): हालांकि, जिस गति से एक बच्चा बैठना, खड़ा होना या चलना सीखता है, वह दूसरे बच्चे से भिन्न हो सकती है। एक बच्चा 10 महीने की उम्र में चलना शुरू कर सकता है, जबकि दूसरा 15 महीने की उम्र में। यह विकास की दर में भिन्नता को दर्शाता है।

इसलिए, यद्यपि सभी शिक्षार्थियों का विकास समान क्रम में होता है, वे एक-दूसरे से उस विकास की गति में भिन्न होते हैं।

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प्रश्‍न – (9) जब एक व्‍यक्ति दूसरे से रूप, रंग, रूचि, अभिरूचि आदि मे भिन्‍न हो तो यह कहा जाता है।

1.      अधिगम अक्षमता
2.      वैयक्तिक विभिन्‍नता 
3.      विकृत व्‍यक्तित्‍व
4.      इनमे से कोई नहीं
उत्‍तर –  2

जब एक व्यक्ति दूसरे से रूप, रंग, रुचि, अभिरुचि आदि में भिन्न हो तो इसे वैयक्तिक विभिन्नता (Individual Differences) कहा जाता है।


वैयक्तिक विभिन्नता का अर्थ

वैयक्तिक विभिन्नता मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो बताता है कि कोई भी दो व्यक्ति, चाहे वे जुड़वाँ ही क्यों न हों, पूरी तरह से समान नहीं होते।

यह भिन्नता न केवल बाहरी गुणों जैसे रूप और रंग में होती है, बल्कि आंतरिक गुणों जैसे रुचि, अभिरुचि (aptitude), बुद्धि, व्यक्तित्व, और सीखने की क्षमता में भी होती है। यह अवधारणा शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षकों को यह समझने में मदद करती है कि प्रत्येक छात्र अद्वितीय है और उसे अलग तरीके से सीखने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है।

 

प्रश्‍न – (10) वैयक्तिक विभिन्‍नता को जानने के लिए कौन सी विधि नही है। 

1.      बुद्धि परीक्षण
2.      व्‍यक्ति इतिहास विधि 
3.      व्‍यक्तिगत परीक्षण 
4.      अन्‍तर्दर्शन विधि 
उत्‍तर – 4

वैयक्तिक भिन्नता को जानने के लिए अंतर्दर्शन विधि (Introspection method) उपयुक्त नहीं है।


वैयक्तिक भिन्नता और मूल्यांकन की विधियाँ

वैयक्तिक भिन्नता (Individual differences) का अर्थ है कि हर व्यक्ति दूसरे से अलग होता है, चाहे वह शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक स्तर पर हो। इस भिन्नता को समझने के लिए कई वस्तुनिष्ठ विधियों का उपयोग किया जाता है।

  • बुद्धि परीक्षण (Intelligence Test): यह एक मानकीकृत परीक्षण है जो व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताओं को मापता है।

  • व्यक्ति इतिहास विधि (Case History Method): इस विधि में, व्यक्ति के जीवन, पृष्ठभूमि और अनुभवों का गहन अध्ययन किया जाता है।

  • व्यक्तिगत परीक्षण (Personality Test): यह व्यक्ति के व्यक्तित्व गुणों, जैसे कि उसकी रुचियों, मूल्यों और दृष्टिकोणों को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।


अंतर्दर्शन विधि

अंतर्दर्शन विधि (Introspection method) एक व्यक्तिनिष्ठ (subjective) विधि है, जिसमें व्यक्ति स्वयं अपने मन की प्रक्रियाओं, भावनाओं और अनुभवों का अवलोकन करता है। यह विधि वस्तुनिष्ठ नहीं है, क्योंकि यह केवल व्यक्ति के स्वयं के अवलोकन पर निर्भर करती है और इसमें बाहरी सत्यापन (external verification) संभव नहीं है। इसलिए, इसका उपयोग किसी व्यक्ति की दूसरों से भिन्नता को वस्तुनिष्ठ रूप से जानने के लिए नहीं किया जा सकता।

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प्रश्‍न – (11) वैयक्तिक विभिन्‍नता पर आधारित शिक्षण विधि है।

1.      डाल्‍टन प्रणाली
2.      प्रोजेक्‍ट प्रणाली  
3.      मॉण्‍टेसरी प्रणाली 
4.      उपरोक्‍त सभी
उत्‍तर –  4

वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षण विधि 4. उपरोक्त सभी हैं।


वैयक्तिक विभिन्नता पर आधारित शिक्षण विधियाँ

ये सभी शिक्षण प्रणालियाँ छात्रों की व्यक्तिगत क्षमताओं, रुचियों और सीखने की गति को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं, जो पारंपरिक कक्षा-आधारित शिक्षण के विपरीत हैं।

  • डाल्टन प्रणाली (Dalton Plan): इस प्रणाली में, छात्रों को अपनी गति से सीखने की स्वतंत्रता होती है। शिक्षक केवल मार्गदर्शन करते हैं और छात्र अपने काम को स्वयं प्रबंधित करते हैं। यह व्यक्तिगत जवाबदेही और स्वतंत्रता को बढ़ावा देती है।

  • प्रोजेक्ट प्रणाली (Project Method): यह विधि छात्रों को उनकी रुचि के अनुसार प्रोजेक्ट चुनने और उसे पूरा करने की अनुमति देती है। यह छात्रों को सक्रिय रूप से सीखने और समस्या-समाधान कौशल विकसित करने का अवसर देती है।

  • मॉन्टेसरी प्रणाली (Montessori Method): इस विधि में, छात्र स्वयं अपनी पसंद की गतिविधियों का चयन करते हैं और अपने गति से सीखते हैं। यह बच्चों को आत्म-निर्देशित सीखने और अपनी क्षमताओं का विकास करने में मदद करती है।

ये सभी विधियाँ इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि प्रत्येक छात्र अद्वितीय है और उसे सीखने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

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प्रश्‍न – (12) किण्‍डरगार्टन प्रणाली के जन्‍मदाता है। 

1.      रूसो
2.      फ्रोबेल 
3.      पेस्‍टालॉजी 
4.      इनमें से कोई नही 
उत्‍तर –  2

किंडरगार्टन प्रणाली के जन्मदाता 2. फ्रोबेल हैं।


फ्रोबेल और किंडरगार्टन

फ्रेडरिक फ्रोबेल (Friedrich Fröbel) एक जर्मन शिक्षाशास्त्री थे, जिन्होंने 1837 में पहला किंडरगार्टन (Kindergarten) स्थापित किया। ‘किंडरगार्टन’ का अर्थ जर्मन में ‘बच्चों का बगीचा’ होता है। फ्रोबेल का मानना था कि बच्चे पौधों की तरह होते हैं, और शिक्षक माली की तरह। उनका यह विचार था कि बच्चों को खेलने, गाने और सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से स्वाभाविक और रचनात्मक रूप से सीखने का अवसर मिलना चाहिए।

यह प्रणाली पारंपरिक शिक्षा से बहुत अलग थी, और इसका उद्देश्य बच्चों के शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास को प्रोत्साहित करना था।

 

प्रश्‍न – (13) विनेटिका प्रणाली के जन्‍मदाता है। 

1.      कार्लटन वाशवर्न
2.      ओविड डेक्रोली 
3.      डब्‍ल्‍यू. ए. बर्ट 
4.      इनमें से कोई नहीं 
उत्‍तर –  1
 

विनेटिका प्रणाली (Winnetka Plan) के जन्मदाता 1. कार्लटन वॉशबर्न (Carleton Washburne) हैं।


विनेटिका प्रणाली क्या है?

विनेटिका प्रणाली एक शैक्षिक विधि है जिसे 1920 के दशक में कार्लटन वॉशबर्न ने विकसित किया था, जब वह अमेरिका के इलिनोइस राज्य में विनेटका शहर के स्कूलों के अधीक्षक थे।

यह प्रणाली व्यक्तिगत शिक्षण (individualized instruction) पर आधारित है और इसके दो मुख्य सिद्धांत हैं:

  1. कौशल-आधारित शिक्षा: प्रत्येक छात्र को अपनी गति से उन विषयों में दक्षता प्राप्त करनी होती है जिनमें कौशल की आवश्यकता होती है, जैसे गणित और पढ़ना।

  2. समूह-आधारित शिक्षा: कला, संगीत और सामाजिक अध्ययन जैसे रचनात्मक विषयों में छात्र समूह में काम करते हैं ताकि उनमें सहयोग की भावना विकसित हो।

इस प्रणाली का उद्देश्य छात्रों को उनके व्यक्तिगत स्तर और गति से सीखने की अनुमति देना था, जबकि उन्हें सामाजिक कौशल विकसित करने का भी अवसर मिलता था।

 

प्रश्‍न – (14) निम्‍न में से किस मनोवैज्ञानिक ने वैयक्तिक भिन्‍नताओं की उत्‍पत्ति मे आनुवांशिकता की भूमिका को सर्वाधिक महत्‍व दिया।

1.     वाटसन ने
2.     गाल्‍टन ने  
3.     बिने ने  
4.      वुण्‍ट ने
उत्‍तर –  2

किस मनोवैज्ञानिक ने वैयक्तिक भिन्नताओं की उत्पत्ति में आनुवंशिकता की भूमिका को सर्वाधिक महत्व दिया? इसका सही उत्तर है गाल्टन (Galton)


गाल्टन का योगदान

सर फ्रांसिस गाल्टन ने वैयक्तिक भिन्नता (Individual differences) के अध्ययन की शुरुआत की और यह दर्शाया कि व्यक्ति की विशेषताओं में भिन्नता होती है। उन्होंने अपनी पुस्तक “हेरिटरी जीनियस” (Hereditary Genius) में इस बात पर जोर दिया कि बौद्धिक और अन्य क्षमताएं आनुवंशिकता (heredity) के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती हैं।

गाल्टन का यह मानना था कि बुद्धि और प्रतिभा जैसी विशेषताएं वंशानुगत होती हैं, और उन्होंने इन गुणों को मापने के लिए सांख्यिकीय विधियों का भी विकास किया। हालांकि, बाद के अध्ययनों ने यह दिखाया कि आनुवंशिकता और पर्यावरण दोनों वैयक्तिक भिन्नताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन गाल्टन ने ही सबसे पहले आनुवंशिकता को सर्वाधिक महत्व दिया था।

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प्रश्‍न – (15) मनोविज्ञान ने छात्रों की क्षमताओं एवं भिन्‍नताओं का विश्‍लेषण करके शिक्षा के विकास में योगदान दिया है। यह किसका मत है।

1.     डेविस का
2.     वाटसन का  
3.     स्‍टाउर का  
4.     स्किनर का  
उत्‍तर –  1

मनोविज्ञान ने छात्रों की क्षमताओं एवं विभिन्नताओं का विश्लेषण करके शिक्षा के विकास में योगदान दिया है, यह कथन स्टाउट का है।


स्टाउट और मनोविज्ञान का योगदान

प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक जॉर्ज फ्रेडरिक स्टाउट (George Frederick Stout) का मानना था कि मनोविज्ञान शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है। उनके अनुसार, एक शिक्षक को छात्रों को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं, रुचियों और सीखने की शैलियों को समझना आवश्यक है। मनोविज्ञान ही वह विज्ञान है जो इन वैयक्तिक भिन्नताओं (individual differences) को समझने और उनका विश्लेषण करने में मदद करता है। इस समझ के बिना, शिक्षण प्रक्रिया प्रभावी नहीं हो सकती।

 

प्रश्‍न – (16) निम्न में से कौन सा एक वैयक्ति विभिन्‍नता का कारण नही है।

1.     जाति
2.     वातावरण  
3.     जनसंख्‍या  
4.     लैंगिक भेद  
उत्‍तर –  3

वैयक्तिक विभिन्नता का कारण 3. जनसंख्या (Population) नहीं है।


वैयक्तिक विभिन्नता के कारक

वैयक्तिक विभिन्नता (Individual Differences) के कई कारक होते हैं, जो किसी व्यक्ति को दूसरे से अलग बनाते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं:

  • जाति (Race): विभिन्न जातियों के लोगों में शारीरिक और कुछ मानसिक विशेषताओं में भिन्नता हो सकती है, जो आनुवंशिक कारणों से होती है।

  • वातावरण (Environment): एक व्यक्ति जिस वातावरण में पलता-बढ़ता है, जैसे कि उसका परिवार, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और शिक्षा, उसके व्यक्तित्व, रुचियों और क्षमताओं को आकार देता है।

  • लैंगिक भेद (Gender Differences): पुरुषों और महिलाओं में शारीरिक और कुछ मनोवैज्ञानिक विशेषताओं में भी भिन्नता होती है।

इसके विपरीत, जनसंख्या स्वयं में कोई कारक नहीं है जो वैयक्तिक भिन्नता का कारण बने। जनसंख्या केवल व्यक्तियों की संख्या को दर्शाती है, न कि उन गुणों को जो उन्हें एक दूसरे से भिन्न बनाते हैं।

 

प्रश्‍न – (17) मानसिक विभेद के अन्‍तर्गत नही आता है।

1.     स्‍वभावगत भेद
2.     रूचि सम्‍बन्‍धी भेंद  
3.     आन्‍तरिक भेद  
4.     शारीरिक संरचना सम्‍वन्‍धी भेद  
उत्‍तर –  4

मानसिक विभेद के अंतर्गत 4. शारीरिक संरचना संबंधी भेद नहीं आता है।


मानसिक विभेद क्या है?

मानसिक विभेद (Mental Differences) का अर्थ है कि व्यक्तियों के बीच उनकी मानसिक प्रक्रियाओं, क्षमताओं और मनोवैज्ञानिक गुणों में भिन्नता होती है। यह भिन्नता बाहरी दिखावे से संबंधित नहीं होती, बल्कि व्यक्ति के आंतरिक मन से संबंधित होती है।

  • स्वभावगत भेद: यह व्यक्ति के स्वभाव, जैसे शांत या गुस्सैल होना, से संबंधित है, जो मानसिक विभेद का एक हिस्सा है।

  • रुचि संबंधी भेद: हर व्यक्ति की रुचियाँ अलग होती हैं (जैसे किसी को पढ़ना पसंद है, तो किसी को खेलना), जो मानसिक विभेद को दर्शाता है।

  • आंतरिक भेद: यह एक व्यापक शब्द है जो मानसिक गुणों, जैसे बुद्धि, स्मृति, और चिंतन, में भिन्नता को दर्शाता है।

इसके विपरीत, शारीरिक संरचना संबंधी भेद शारीरिक विभेद (Physical Differences) का एक हिस्सा है, जैसे किसी की लंबाई, वजन या शरीर का रंग। यह मानसिक विभेद के अंतर्गत नहीं आता।

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प्रश्‍न – (18) मनो शारीरिक असमानताओं को कहा जाता है।

1.     व्‍यक्ति
2.     समायोजन  
3.     भग्‍नाशा  
4.     व्‍यक्तिगत विभिन्‍नतां  
उत्‍तर –  4

मनो-शारीरिक असमानताओं को वैयक्तिक विभिन्नता (Individual Differences) कहा जाता है।


मनो-शारीरिक असमानताएँ और वैयक्तिक विभिन्नता

मनो-शारीरिक असमानताएँ व्यक्तियों के बीच मौजूद शारीरिक और मानसिक गुणों में भिन्नताओं को दर्शाती हैं।

  • शारीरिक असमानताएँ: इसमें व्यक्ति के रूप, रंग, ऊंचाई, वजन, और अन्य शारीरिक विशेषताओं में अंतर शामिल है।

  • मानसिक असमानताएँ: इसमें बुद्धि, व्यक्तित्व, रुचि, अभिरुचि, सीखने की गति, और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं में अंतर शामिल है।

इन सभी भिन्नताओं को समग्र रूप से वैयक्तिक विभिन्नता की अवधारणा के अंतर्गत समझा जाता है। यह सिद्धांत बताता है कि कोई भी दो व्यक्ति, भले ही वे जुड़वाँ क्यों न हों, पूरी तरह से समान नहीं होते हैं। शिक्षा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में इस अवधारणा को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

 

प्रश्‍न – (19) बालक गणित और विज्ञान में आगे होते है, जबकि बालिकाऍ भाषा और सुन्‍दर हस्‍तलेख में। क्‍यों

1.     व्‍यक्तिगत विभिन्‍नता के कारण
2.     रूचि के कारण  
3.     संवेग के कारण  
4.     चिन्‍तन के कारण  
उत्‍तर – 1

बालक और बालिकाओं की गणित, विज्ञान, भाषा और हस्तलेखन में भिन्नता 1. व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण होती है।


व्यक्तिगत विभिन्नता का महत्व

व्यक्तिगत विभिन्नता (Individual differences) का सिद्धांत बताता है कि कोई भी दो व्यक्ति, चाहे वे किसी भी लिंग के हों, पूरी तरह से समान नहीं होते। यह भिन्नता केवल बाहरी गुणों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आंतरिक गुणों जैसे रुचि, क्षमता, और सीखने की शैली में भी होती है।

  • सांख्यिकीय भिन्नता (Statistical differences): हालांकि, कुछ अध्ययनों में यह देखा गया है कि एक समूह के रूप में बालक और बालिकाएँ कुछ क्षेत्रों में औसत रूप से भिन्न प्रदर्शन कर सकते हैं, जैसे कि बालक विज्ञान और गणित में, और बालिकाएँ भाषा और कला में।

  • रुचि और सामाजिक प्रभाव: यह भिन्नता अक्सर सामाजिक प्रभाव और रुचि के कारण होती है, न कि किसी जन्मजात जैविक कारण के। समाज अक्सर लड़कों को विज्ञान और लड़कियों को कला के क्षेत्रों में प्रोत्साहित करता है, जिससे उनकी रुचि और प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ता है।

  • रुचि, संवेग और चिंतन: विकल्प 2, 3 और 4 व्यक्तिगत विभिन्नता के ही हिस्से हैं। रुचि, संवेग और चिंतन में भिन्नताएँ ही समग्र व्यक्तिगत विभिन्नता का निर्माण करती हैं। इस प्रकार, सबसे व्यापक और सही उत्तर व्यक्तिगत विभिन्नता है।

 

प्रश्‍न – (20) विशिष्‍ट बालकों के अनुरूप शिक्षा की व्‍यवस्‍था करना वैयक्तिक विभिन्‍नताओं का कौन सा कारण है।

1.     जैविक कारण
2.     वैज्ञानिक कारण
3.     शैक्षिक कारण  
4.     सामाजिक महत्‍व  
उत्‍तर – 3

विशिष्ट बालकों के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करना, वैयक्तिक विभिन्नताओं का एक 3. शैक्षिक कारण है।


वैयक्तिक विभिन्नता और शिक्षा का संबंध

वैयक्तिक विभिन्नता (Individual differences) का सिद्धांत बताता है कि कोई भी दो छात्र एक जैसे नहीं होते। उनकी सीखने की गति, क्षमताएँ, रुचियाँ और ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं। इस सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, शिक्षा प्रणाली को हर छात्र की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार ढालना एक शैक्षिक आवश्यकता बन जाती है।

  • शैक्षिक कारण: विशिष्ट बालकों, जैसे कि प्रतिभाशाली, धीमी गति से सीखने वाले, या दिव्यांग बच्चों को पारंपरिक शिक्षण विधियों से लाभ नहीं होता। इसलिए, उनके लिए विशेष शिक्षण विधियाँ, पाठ्यक्रम और सहायक सामग्री की व्यवस्था करना शिक्षा का ही एक हिस्सा है। ऐसा करके शिक्षक सुनिश्चित करते हैं कि सभी छात्रों को सीखने का समान और प्रभावी अवसर मिले।

यह जैविक या वैज्ञानिक कारणों से अलग है, क्योंकि यह सीधे तौर पर शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया से जुड़ा है।

 

प्रश्‍न – (21) लैटिन भाषा के शव्‍द पर्सोना का अर्थ है।

1.     व्‍यक्ति
2.     व्‍यक्तिगत  
3.     मुखौटा  
4.     अपूर्व
उत्‍तर – 3

लैटिन भाषा के शब्द ‘पर्सोना’ का अर्थ है 3. मुखौटा (Mask)


‘पर्सोना’ का अर्थ

मनोविज्ञान में ‘व्यक्तित्व’ (Personality) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘पर्सोना’ से हुई है। प्राचीन रोमन थिएटर में, अभिनेता अपने चरित्र को दर्शाने के लिए एक मुखौटा पहनते थे। यह मुखौटा उनके चरित्र के बाहरी गुणों और सार्वजनिक भूमिका को दर्शाता था। इसी तरह, मनोविज्ञान में व्यक्तित्व को व्यक्ति के उन बाहरी गुणों के रूप में देखा जाता है जो वह समाज के सामने प्रस्तुत करता है, या उसकी सामाजिक भूमिका के रूप में।

 

प्रश्‍न – (22) आनुवांशिकता का वाहक होता है ।

1.     आर एन ए
2.     केन्‍द्रक
3.     जीन्‍स 
4.     शिरा 
उत्‍तर – 3

आनुवंशिकता का वाहक 3. जींस (Genes) होता है।


जींस क्या हैं?

जींस गुणसूत्रों (chromosomes) पर पाए जाने वाले छोटे खंड होते हैं, जो डीएनए (DNA) से बने होते हैं।

ये माता-पिता से उनकी संतानों में आनुवंशिक गुणों को स्थानांतरित करते हैं।

    • गुणों का निर्धारण: एक जीन ही यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति के बाल, आँखों और त्वचा का रंग कैसा होगा, उसकी लंबाई कितनी होगी, और उसे कौन से आनुवंशिक रोग हो सकते हैं।

इस प्रकार, जींस ही वह वाहक हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आनुवंशिकता को ले जाते हैं।

 

प्रश्‍न – (23) निम्‍नलिखित में से कौन सा परीक्षण व्‍यक्तित्‍व का मापन करता है ।

1.     भाटिया बैटरी परीक्षण
2.     टी एन ए    
3.     स्‍टेनफोर्ड बिने परीक्षण
4.     कूडर प्राथमिकता प्रपत्र
उत्‍तर –  2

निम्नलिखित में से कूडर प्राथमिकता प्रपत्र (Kuder Preference Record) व्यक्तित्व का मापन करता है।


कूडर प्राथमिकता प्रपत्र

कूडर प्राथमिकता प्रपत्र एक प्रकार का अभिरुचि परीक्षण (interest test) है जो किसी व्यक्ति की रुचियों और प्राथमिकताओं को मापता है। ये रुचियां व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, खासकर जब बात करियर या व्यावसायिक विकल्पों की हो। इसलिए, इसका उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं को समझने के लिए किया जाता है।

 

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण

    • 1. भाटिया बैटरी परीक्षण: यह बुद्धि का एक प्रदर्शन परीक्षण है, जिसका उपयोग 11 से 16 वर्ष की आयु के प्रतिभागियों की बुद्धि का आकलन करने के लिए किया जाता है.
    • 2. टी एन ए (TNA): यह प्रशिक्षण आवश्यकता विश्लेषण है, जो किसी संगठन में कर्मचारियों की प्रशिक्षण और विकास आवश्यकताओं की पहचान करने की प्रक्रिया है.
    • 3. स्टैनफोर्ड बिने परीक्षण: यह एक व्यक्तिगत रूप से प्रशासित बुद्धि परीक्षण है, जिसे व्यापक आयु वर्ग में संज्ञानात्मक क्षमताओं को मापने के लिए डिज़ाइन किया गया है. 
 

प्रश्‍न – (24) वह मानवीय योग्‍यता जिसके द्वारा व्‍यक्ति किसी नवीन रचना या विचार को प्रस्‍तुत करता है कहलाता है ।

1.     सृजनात्‍मकता
2.     प्रत्‍यक्षीकरण  
3.     प्रक्षेपण  
4.     उदात्‍तीकरण  
उत्‍तर –  1

वह मानवीय योग्यता जिसके द्वारा व्यक्ति किसी नवीन रचना या विचार को प्रस्तुत करता है, सृजनात्मकता (Creativity) कहलाती है।


सृजनात्मकता का अर्थ

सृजनात्मकता एक ऐसी मानसिक क्षमता है जिसके द्वारा व्यक्ति कुछ नया, मौलिक और उपयोगी उत्पन्न करता है। यह सिर्फ कला या संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समस्याओं को हल करने के नए तरीके खोजना, नए विचारों का आविष्कार करना और मौलिक अवधारणाओं को विकसित करना भी शामिल है। यह हर व्यक्ति में अलग-अलग स्तर पर मौजूद होती है।


अन्य विकल्प

  • प्रत्यक्षीकरण (Perception): यह इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त जानकारी को समझने और व्याख्या करने की प्रक्रिया है।

  • प्रक्षेपण (Projection): यह एक रक्षा तंत्र है जिसमें व्यक्ति अपनी अस्वीकार्य भावनाओं या विचारों को दूसरों पर आरोपित करता है।

  • उदात्तीकरण (Sublimation): यह एक रक्षा तंत्र है जिसमें व्यक्ति अपनी अस्वीकार्य इच्छाओं को सामाजिक रूप से स्वीकार्य व्यवहारों में बदल देता है।

 

प्रश्‍न – (25) कोहलर ने अपने सीखने के सिद्धांत का प्रतिपादन किसके उपर प्रयोग करते हुए किया था ?

1.     बिल्‍ली
2.     कुत्‍ता
3.     वनमानुष  
4.     मनुष्‍य  
उत्‍तर –  3

कोहलर ने अपने सीखने के सिद्धांत का प्रतिपादन वनमानुष (Chimpanzee) पर प्रयोग करते हुए किया था।


कोहलर का अंतर्दृष्टि सिद्धांत

प्रसिद्ध गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक वोल्फगैंग कोहलर (Wolfgang Köhler) ने अंतर्दृष्टि (Insight) द्वारा सीखने का सिद्धांत दिया था।

  • प्रयोग: उन्होंने अपने प्रयोगों के लिए सुल्तान नामक एक वनमानुष का उपयोग किया। सुल्तान को एक पिंजरे में बंद किया गया था और उसकी पहुँच से दूर कुछ केले लटकाए गए थे। पिंजरे में कुछ बक्से और छड़ें रखी थीं।

  • अवलोकन: सुल्तान ने कई असफल प्रयास करने के बाद, अचानक एक अंतर्दृष्टि के माध्यम से यह समझा कि बक्सों को एक दूसरे पर रखकर केलों तक पहुँचा जा सकता है।

कोहलर ने इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला कि सीखना केवल प्रयास और त्रुटि का परिणाम नहीं है, बल्कि यह समस्या के तत्वों को अचानक समझने से भी हो सकता है, जिसे उन्होंने अंतर्दृष्टि कहा।

 

प्रश्‍न – (26)  अभ्‍यास और अनुभव के द्वारा व्‍यवहार में होने वाला परिवर्तन कहलाता है ।

1.      अवधान
2.      अधिगम
3.      प्रतिकार   
4.      प्रेरणा
उत्‍तर – 2

अभ्यास और अनुभव के द्वारा व्यवहार में होने वाला परिवर्तन अधिगम (Learning) कहलाता है।


अधिगम की परिभाषा

अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आता है। यह बदलाव अभ्यास, प्रशिक्षण या अनुभव के माध्यम से होता है।

  • अभ्यास: बार-बार किसी कार्य को करने से व्यक्ति उस कार्य में कुशल हो जाता है, जैसे साइकिल चलाना या संगीत वाद्य बजाना।

  • अनुभव: जीवन के अनुभवों से व्यक्ति नई बातें सीखता है, जैसे किसी समस्या को हल करने का तरीका।

यह परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी होता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यह कभी नहीं बदलेगा।

 

प्रश्‍न – (27) विभिन्‍न तथ्‍यों के बीच किसी एक ही तथ्‍य पर मन को एकाग्र किए रहना कहलाता है ।

1.      अभ्‍यसन
2.      ध्‍यान लगाना
3.      प्रत्‍यभिज्ञा   
4.      प्रस्‍मरण
उत्‍तर – 2

विभिन्न तथ्यों के बीच किसी एक ही तथ्य पर मन को एकाग्र किए रहना 2. ध्यान लगाना (Concentration) कहलाता है।


ध्यान लगाना क्या है?

ध्यान लगाना एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को किसी एक वस्तु, विचार, या क्रिया पर केंद्रित करता है। यह एक चयनात्मक प्रक्रिया है, जहाँ मस्तिष्क अनावश्यक जानकारियों को अनदेखा करता है और केवल महत्वपूर्ण जानकारी पर ध्यान केंद्रित करता है।

  • अध्ययन में महत्व: ध्यान लगाना सीखने और याददाश्त के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब आप किसी विषय पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप उसे बेहतर ढंग से समझ पाते हैं और उसे लंबे समय तक याद रख पाते हैं।


अन्य विकल्प

  • अभ्यसन (Practice): किसी कार्य को बार-बार दोहराने की क्रिया।

  • प्रत्यभिज्ञा (Recognition): किसी पहले से देखी हुई या अनुभव की हुई वस्तु को पहचानना।

  • प्रस्मरण (Recollection): किसी पुरानी जानकारी या अनुभव को याद करना।

Psychology Test – 07

प्रश्‍न – (28) किस विद्धवान ने सिखने के पांच चरण बताए है ।

1.      फ्रोबेल
2.      हर्बरट
3.      प्‍लेटो   
4.      कमीनियम
उत्‍तर  2

इस प्रश्न में एक विरोधाभास है। दिए गए विकल्पों में से किसी भी विद्वान ने सीखने (learning) के पाँच चरण नहीं बताए हैं।

हालाँकि, जोहान फ्रेडरिक हर्बर्ट ने शिक्षण (teaching) के पाँच चरणों का सिद्धांत दिया था, जिसे हर्बर्टीय विधि (Herbartian Method) के नाम से जाना जाता है।


हर्बर्टीय विधि के पाँच चरण

हर्बर्ट का सिद्धांत यह बताता है कि एक शिक्षक को अपने पाठ को कैसे व्यवस्थित करना चाहिए ताकि वह छात्रों के लिए प्रभावी हो। इन पाँच चरणों को बाद में उनके शिष्यों द्वारा और अधिक परिष्कृत किया गया।

  1. तैयारी (Preparation): छात्रों के पूर्व ज्ञान को नए विषय से जोड़ना।

  2. प्रस्तुतीकरण (Presentation): नए ज्ञान को स्पष्ट और तार्किक रूप से प्रस्तुत करना।

  3. तुलना और संबंध (Association and Comparison): नए और पुराने ज्ञान के बीच संबंध स्थापित करना।

  4. सामान्यीकरण (Generalization): सिद्धांतों और नियमों को बनाना।

  5. अनुप्रयोग (Application): सीखे गए ज्ञान का अभ्यास करना और उसे वास्तविक जीवन की स्थितियों में लागू करना।

 

प्रश्‍न – (29) किस विद्धवान ने यह कहा था कि शिशु का मस्‍त‍क कोरी स्‍लेट होता है ।

1.      रूसो
2.      प्‍लेटो
3.      एडलर  
4.      बटलर
उत्‍तर – 2

यह कथन 2. प्लेटो का है।


प्लेटो और “कोरी स्लेट” की अवधारणा

हालाँकि यह विचार अक्सर ब्रिटिश दार्शनिक जॉन लॉक से जोड़ा जाता है, लेकिन इसकी उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक दार्शनिक प्लेटो (Plato) के विचारों में मिलती है।

प्लेटो ने कहा था कि जब एक शिशु का जन्म होता है, तो उसका मन एक “कोरी स्लेट” (Tabula Rasa) की तरह होता है। इसका अर्थ यह है कि बच्चा बिना किसी जन्मजात ज्ञान या विचार के पैदा होता है। बाद में, उसके अनुभव और इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त जानकारी से उसका ज्ञान विकसित होता है।

इस विचार ने मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि इसने यह सुझाव दिया कि शिक्षा और अनुभव से व्यक्ति के चरित्र और ज्ञान को आकार दिया जा सकता है।

 

प्रश्‍न – (30) छात्रो के अनुशासन बनाये रखने के लिए एक शिक्षक की कौन सी भूमिका सराहनीयहै ।

1.      शिक्षक की अपनी योग्‍यता
2.      शिक्षक का विचार
3.      शिक्षक का व्यक्तित्‍व   
4.      शिक्षक की कक्षा प्रबन्‍ध की क्षमता
उत्‍तर –  4

छात्रों में अनुशासन बनाए रखने के लिए एक शिक्षक की सबसे सराहनीय भूमिका उसकी  कक्षा प्रबंधन की क्षमता है।


कक्षा प्रबंधन और अनुशासन

कक्षा प्रबंधन (Classroom Management) एक शिक्षक की वह क्षमता है जिसके द्वारा वह कक्षा के वातावरण को व्यवस्थित, उत्पादक और सकारात्मक बनाए रखता है। एक शिक्षक जिसकी कक्षा प्रबंधन की क्षमता अच्छी होती है, वह प्रभावी रूप से अनुशासन बनाए रख सकता है क्योंकि वह:

  • नियम और अपेक्षाएँ स्पष्ट करता है: छात्र जानते हैं कि उनसे क्या उम्मीद की जाती है।

  • सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करता है: शिक्षक अच्छे व्यवहार को पहचानता और पुरस्कृत करता है, जिससे छात्रों में प्रेरणा बढ़ती है।

  • समस्याओं को जल्दी सुलझाता है: शिक्षक छोटे-मोटे मुद्दों को बढ़ने से पहले ही हल कर देता है।


अन्य विकल्प

  • शिक्षक की योग्यता (Teacher’s ability): योग्यता महत्वपूर्ण है, लेकिन यदि शिक्षक अपनी योग्यता को कक्षा में प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाता, तो अनुशासन बनाए रखना मुश्किल होगा।

  • शिक्षक का विचार (Teacher’s thought): विचार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन विचारों को क्रिया में बदलना ही असली चुनौती है।

  • शिक्षक का व्यक्तित्व (Teacher’s personality): एक अच्छा व्यक्तित्व सहायक होता है, लेकिन यह अकेले अनुशासन बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। एक अच्छी कक्षा प्रबंधन की क्षमता के बिना, एक अच्छा व्यक्तित्व भी विफल हो सकता है।

 
 

प्रश्‍न – (31) शिक्षको के बीच संघर्ष का सबसे दूषित परिणाम होता है ।

 
1.      शिक्षक समय में कमी
2.      छात्रो का व्‍यवहार बिगड जाना   
3.      पाठ्य सहगामी क्रियायें प्रभावित होना
4.      प्रधानाध्‍यापक तथा अध्‍यापको के संबंध खराब हो जाना  
उत्‍तर – 2

शिक्षकों के बीच संघर्ष का सबसे दूषित परिणाम छात्रों का व्यवहार बिगड़ जाना होता है।


शिक्षकों के संघर्ष का प्रभाव

जब शिक्षक आपस में संघर्ष करते हैं या उनके संबंध खराब होते हैं, तो इसका सीधा और सबसे नकारात्मक प्रभाव छात्रों पर पड़ता है।

  • मॉडल का अभाव: शिक्षक छात्रों के लिए एक आदर्श होते हैं। जब वे आपस में सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं करते, तो छात्र यह सीखते हैं कि संघर्ष को हल करने का यही तरीका है, जिससे उनका अपना व्यवहार भी आक्रामक हो सकता है।

  • असुरक्षित वातावरण: संघर्षपूर्ण माहौल में छात्र असुरक्षित महसूस करते हैं, जिससे उनका ध्यान पढ़ाई से हट जाता है।

  • शैक्षिक प्रदर्शन पर प्रभाव: छात्रों का ध्यान भटकने और नकारात्मक माहौल के कारण उनका शैक्षिक प्रदर्शन भी प्रभावित होता है।

जबकि अन्य विकल्प (जैसे शिक्षण समय में कमी या प्रधानाध्यापक के साथ संबंध खराब होना) भी नकारात्मक परिणाम हैं, लेकिन छात्रों का व्यवहार बिगड़ना सबसे हानिकारक है क्योंकि यह सीधे तौर पर उनकी शिक्षा, सामाजिक विकास और भविष्य पर बुरा असर डालता है।

 

प्रश्‍न – (32) यदि कोई अभिभावक आपसे मिलने कभी नही आता है तो आप क्‍या करोगे ।

1.      बालक दण्‍ड देना प्रारंभ कर देगे
2.      बालक पर ध्‍यान नही देगे
3.      उनसे स्‍वयं मिलने जाएगे   
4.      अभिभावक को लिखेगे
उत्‍तर – 3

यदि कोई अभिभावक आपसे मिलने कभी नहीं आता है, तो आप  उनसे स्वयं मिलने जाएंगे


शिक्षक की भूमिका

एक शिक्षक के रूप में, आपकी जिम्मेदारी सिर्फ कक्षा तक सीमित नहीं है। छात्र के सर्वांगीण विकास के लिए यह जानना जरूरी है कि उसका पारिवारिक और सामाजिक परिवेश कैसा है।

  • पहल करना: यदि कोई अभिभावक स्कूल नहीं आ पाता, तो एक जिम्मेदार शिक्षक को उनसे संपर्क स्थापित करने की पहल करनी चाहिए।

  • समझ विकसित करना: घर जाकर मिलने से आप अभिभावक की व्यस्तता या अन्य समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। इससे आप छात्र के व्यवहार और शैक्षिक प्रदर्शन के कारणों को भी जान पाएंगे।

अन्य विकल्प क्यों अनुपयुक्त हैं:

  • दंड देना: बालक को दंड देना गलत है क्योंकि इसमें उसकी कोई गलती नहीं है।

  • ध्यान न देना: यह एक शिक्षक के पेशेवर और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है।

  • लिखना: यह एक अच्छा कदम हो सकता है, लेकिन इसमें संवाद की कमी होती है और यह समस्या का प्रभावी समाधान नहीं है। सीधे मिलकर बात करना अधिक प्रभावी होता है।

 

प्रश्‍न – (33) प्रौण शिक्षा किन व्‍यक्तियो के अधिकार मे होनी चाहिए

1.      सरकार के हाथ में
2.      शिक्षित व्‍यक्तियो के हाथ में
3.      गैर सरकारी समितियों के हाथ में
4.      उपरोक्‍त सभी के हाथ में  
उत्‍तर  4

प्रौढ़ शिक्षा  उपरोक्त सभी के हाथ में होनी चाहिए।


प्रौढ़ शिक्षा का महत्व

प्रौढ़ शिक्षा को केवल एक संस्था के बजाय एक सामूहिक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। यह एक जटिल और बहुआयामी कार्य है, जिसे विभिन्न समूहों के सहयोग से ही प्रभावी ढंग से चलाया जा सकता है।

  • सरकार के हाथ में: सरकार को प्रौढ़ शिक्षा के लिए नीतियां बनाने, धन आवंटित करने और बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चलाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यह सुनिश्चित करती है कि शिक्षा का अधिकार सभी तक पहुँचे।

  • शिक्षित व्यक्तियों के हाथ में: शिक्षित व्यक्ति स्वयंसेवक के रूप में ज्ञान बांटकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनका सीधा जुड़ाव और मार्गदर्शन प्रौढ़ शिक्षार्थियों के लिए बहुत मूल्यवान होता है।

  • गैर-सरकारी समितियों (एनजीओ) के हाथ में: गैर-सरकारी संगठन जमीनी स्तर पर काम करने में माहिर होते हैं। वे समुदाय-विशिष्ट जरूरतों को समझकर और लचीले कार्यक्रम बनाकर शिक्षा को अधिक सुलभ और प्रासंगिक बना सकते हैं।

इस प्रकार, इन सभी की साझेदारी प्रौढ़ शिक्षा को सफल बनाने के लिए आवश्यक है।

 

प्रश्‍न – (34) आपको मालूम हुआ है कि आपके प्रधानाचार्य संस्‍था में कुछ गलत कार्य कर रहे है तो आप ।

1.      उच्‍चाधिकारियों से शिकायत करेगें
2.      उन्‍हे समझाने का प्रयास करेगे
3.      उस तरफ से अनदेखी करेगें   
4.      साथियो से परामर्श करके ही कोई निर्णय लेगे
उत्‍तर – 2

यदि आपको मालूम होता है कि आपके प्रधानाचार्य संस्था में कुछ गलत कार्य कर रहे हैं, तो सबसे उपयुक्त कदम  उन्हें समझाने का प्रयास करेंगे


इस विकल्प का चुनाव क्यों?

एक शिक्षक और प्रधानाचार्य के बीच का संबंध पेशेवर और सम्मानजनक होता है। सीधे उच्च अधिकारियों से शिकायत करना या अनदेखी करना स्थिति को और खराब कर सकता है।

  • समझाने का प्रयास: सबसे पहले, उन्हें अकेले में और सम्मानपूर्वक इस मुद्दे पर बात करने का मौका देना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें अपनी गलती का एहसास हो सकता है और वे सुधार कर सकते हैं। यह आपसी समझ और सम्मान बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका है।

  • अंतिम उपाय: अगर समझाने के बाद भी कोई बदलाव नहीं आता, तो ही उच्चाधिकारियों से संपर्क करने जैसे अन्य कदम उठाए जा सकते हैं।

  • अन्य विकल्पों की कमियाँ:

    • शिकायत करना: यह तुरंत शत्रुता पैदा कर सकता है और स्थिति को गोपनीय ढंग से हल करने का मौका खत्म कर सकता है।

    • अनदेखी करना: यह गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार है और गलत काम को जारी रखने का एक तरह से समर्थन करना है।

    • साथियों से परामर्श: यह आवश्यक हो सकता है, लेकिन तुरंत कोई भी कदम उठाने से पहले सीधे प्रधानाचार्य से बात करना सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम होना चाहिए।

 

प्रश्‍न – (35) आपके अध्‍यापन करते समय यदि कोई छात्र आपकी त्रुटियो की ओर संकेत करती है ।

1.      छात्रा को कक्षा के बाद मिलने के लिए कहेगी
2.      छात्रा को चुप रहने के लिए कहेगी
3.      स्‍वीकार कर लेगी   
4.      दूसरे दिन अच्‍छी तैयारी करके जायेगी।
उत्‍तर – 3

यदि कोई छात्र अध्यापन के दौरान आपकी त्रुटियों की ओर संकेत करती है, तो आपको  स्वीकार कर लेना चाहिए


शिक्षक की जिम्मेदारी

एक शिक्षक को अपने छात्रों से सीखने के लिए हमेशा खुला रहना चाहिए। यदि कोई छात्र आपकी गलती की ओर इशारा करता है, तो यह आपकी कक्षा में एक सकारात्मक और सुरक्षित सीखने के माहौल का संकेत है।

  • तत्काल स्वीकार करें: अपनी गलती को तुरंत स्वीकार करना और छात्र को उसकी सतर्कता और ईमानदारी के लिए धन्यवाद देना एक अच्छा उदाहरण स्थापित करता है।

  • आत्म-सम्मान: ऐसा करने से आपका आत्म-सम्मान कम नहीं होता, बल्कि यह दर्शाता है कि आप एक विनम्र और सीखने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले व्यक्ति हैं।

दूसरे दिन अच्छी तैयारी करके जाना एक अच्छी बात है, लेकिन तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में अपनी गलती को स्वीकार करना सबसे महत्वपूर्ण है।

 

प्रश्‍न – (36) शिक्षा के माध्‍यम से कल्‍याण होता है।

1.      समाज के सभी वर्गो का
2.      आदर्श परिवार का
3.      मनुष्‍य के व्‍यक्तित्‍व का
4.      छात्र व छात्राओं का
उत्‍तर  1

शिक्षा के माध्यम से  समाज के सभी वर्गों का कल्याण होता है।


शिक्षा का सामाजिक महत्व

शिक्षा को अक्सर समाज के विकास और प्रगति का सबसे शक्तिशाली साधन माना जाता है। यह सिर्फ व्यक्तिगत ज्ञान और कौशल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है।

  • समता को बढ़ावा देना: शिक्षा समाज के विभिन्न वर्गों के बीच की असमानता को कम करने में मदद करती है। यह सभी को समान अवसर प्रदान करती है, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।

  • सामाजिक चेतना: शिक्षा लोगों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करती है, जिससे वे एक बेहतर और अधिक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।

  • आर्थिक विकास: एक शिक्षित समाज में उत्पादकता और नवाचार अधिक होता है, जिससे देश और समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

इस प्रकार, शिक्षा का उद्देश्य केवल कुछ व्यक्तियों या समूहों का कल्याण नहीं, बल्कि पूरे समाज का सर्वांगीण कल्याण करना है।

 

प्रश्‍न – (37) एक अध्‍यापक के रूप में आप प्राथमिकता देगें।

1.      विज्ञान विषयों को
2.      वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं विचार
3.      उच्‍च विचारों को   
4.      आस्‍था को
उत्‍तर  2

एक अध्यापक के रूप में, आप  वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं विचार को प्राथमिकता देंगे।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण का महत्व

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं है, बल्कि छात्रों में सोचने-समझने की क्षमता और तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित करना है।

  • तर्क और प्रमाण: वैज्ञानिक दृष्टिकोण छात्रों को किसी भी बात को तर्क और प्रमाण के आधार पर स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है, न कि केवल अंधविश्वास या सुनी-सुनाई बातों पर।

  • समस्या समाधान: यह छात्रों को समस्याओं को व्यवस्थित तरीके से हल करने, विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करने और निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद करता है।

  • आधुनिकता: आज के तेजी से बदलते और तकनीकी दुनिया में, वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही छात्रों को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।

यह दृष्टिकोण विज्ञान विषयों से भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल विज्ञान में, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक है।

 

प्रश्‍न – (38) नैतिक शिक्षा का उत्‍तरदायित्‍व होना चाहिए।  

1.      स्‍कूल के ऊपर
2.      समाज के ऊपर
3.      अभिभावक के ऊपर
4.      उपरोक्त सभी पर
उत्‍तर  1

नैतिक शिक्षा का उत्तरदायित्व उपरोक्त सभी पर होना चाहिए।


नैतिक शिक्षा का संयुक्त उत्तरदायित्व

नैतिक शिक्षा किसी एक संस्था या व्यक्ति का काम नहीं है। यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें कई पक्ष शामिल होते हैं।

  • स्कूल: स्कूल में छात्रों को मूल्यों, नियमों और सही-गलत के बीच अंतर सिखाया जाता है। यह उन्हें समाज के जिम्मेदार सदस्य बनने के लिए तैयार करता है।

  • समाज: समाज अपनी संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक मानदंडों के माध्यम से नैतिक मूल्यों को प्रभावित करता है।

  • अभिभावक: परिवार बच्चे की पहली पाठशाला है। यहीं पर बच्चा प्रेम, सम्मान, और जिम्मेदारी जैसे मूल नैतिक मूल्यों को सीखता है।

  • धर्म गुरु: धर्मगुरु भी धार्मिक शिक्षा और नैतिक उपदेशों के माध्यम से लोगों के नैतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

इसलिए, नैतिक शिक्षा को प्रभावी बनाने के लिए इन सभी का सहयोग और समन्वय आवश्यक है।

 

प्रश्‍न – (39) जब आपके छात्र उन्‍नति करते है। तो आप महसूस करते है।

1.      आत्‍मसंतोष की भावना
2.      प्रसन्‍नता की भावना
3.      ईर्ष्‍या की भावना   
4.      आत्‍मग्‍लानि की भावना
उत्‍तर – 1

जब आपके छात्र उन्नति करते हैं, तो आप  आत्मसंतोष की भावना महसूस करते हैं।


आत्मसंतोष क्यों?

एक शिक्षक के लिए छात्रों की उन्नति ही उसकी सफलता का सबसे बड़ा माप है।

  • लक्ष्य की पूर्ति: जब छात्र सफल होते हैं, तो यह महसूस होता है कि आपने अपने शिक्षण के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। यह भावना गहरे आत्मसंतोष को जन्म देती है, क्योंकि यह आपके प्रयासों, धैर्य और समर्पण का परिणाम है।

  • सकारात्मक प्रभाव: यह इस बात का प्रमाण है कि आपके मार्गदर्शन ने किसी और के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है।

हालांकि प्रसन्नता की भावना भी होती है, लेकिन आत्मसंतोष अधिक गहरा और स्थायी अनुभव है जो यह बताता है कि आपका काम सार्थक रहा।

 

प्रश्‍न – (40) एक प्रभावी अध्‍यापक के लिए आवश्‍यक नहीं मानते है।

1.      केवल दण्‍ड देने वाला हो
2.      वह विषय को रोचक बनाता हो
3.      सृजनशील हो   
4.      वह उत्‍तम वक्‍त हो
उत्‍तर – 1

एक प्रभावी अध्यापक के लिए  केवल दंड देने वाला हो आवश्यक नहीं माना जाता है।


प्रभावी अध्यापक के गुण

एक प्रभावी अध्यापक वह होता है जो छात्रों को प्रेरित करता है और उनके सीखने के अनुभव को बेहतर बनाता है। यह दंड देने से नहीं, बल्कि अन्य गुणों से हासिल होता है।

  • विषय को रोचक बनाना: एक अच्छा शिक्षक अपने विषय को इस तरह से प्रस्तुत करता है कि छात्र उसमें रुचि लें। यह उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करता है।

  • सृजनशील होना: सृजनशीलता शिक्षक को नई शिक्षण विधियाँ विकसित करने, समस्याओं को हल करने और पाठ को अधिक आकर्षक बनाने में मदद करती है।

  • उत्तम वक्ता होना: एक उत्तम वक्ता अपनी बात को स्पष्ट और प्रभावी ढंग से समझा सकता है। यह छात्रों को जटिल अवधारणाओं को आसानी से समझने में मदद करता है।

इसके विपरीत, केवल दंड देने वाला होना एक नकारात्मक गुण है। दंड छात्रों में डर पैदा करता है, उनकी प्रेरणा को कम करता है, और सीखने के सकारात्मक माहौल को बाधित करता है।

 

प्रश्‍न – (41) शिशुओं के लिए शिशुशाला में आवश्‍यक है।

1.      खेल के अवसर प्रदान करना
2.      सामान्‍य ज्ञान देना
3.      भाषा पढाना   
4.      कहानियां सुनाना
उत्‍तर  1

शिशुओं के लिए शिशुशाला में सबसे आवश्यक  खेल के अवसर प्रदान करना है।


खेल का महत्व

शिशुशाला या किंडरगार्टन में शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान देना नहीं है, बल्कि बच्चों के समग्र विकास को बढ़ावा देना है।

  • शारीरिक और मानसिक विकास: खेल के माध्यम से बच्चे अपनी इंद्रियों का उपयोग करना सीखते हैं, उनकी मांसपेशियों का विकास होता है और वे दुनिया को समझने के लिए नए अनुभव प्राप्त करते हैं।

  • सामाजिक और भावनात्मक विकास: खेल बच्चों को दूसरों के साथ बातचीत करने, सहयोग करने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देता है। वे साझा करने, प्रतीक्षा करने और नियमों का पालन करने जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल सीखते हैं।

  • रचनात्मकता: खेल बच्चों की कल्पना और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करता है।

अन्य विकल्प, जैसे सामान्य ज्ञान देना या भाषा पढ़ाना, भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन शिशुओं के लिए सबसे प्राकृतिक और प्रभावी सीखने का तरीका खेल ही है।

 

प्रश्‍न – (42) वर्तमान समय में प्राइमरी शिक्षा की दुर्दशा का मुख्‍य कारण है।

1.      एकाकी परिवार
2.      छात्रों का दूरदर्शन में अधिक समय बर्वाद करना
3.      गाइड पुस्‍तकों पर भरोसा 
4.      शिक्षक – छात्र का विषम अनुपात
उत्‍तर – 4

वर्तमान समय में प्राइमरी शिक्षा की दुर्दशा का मुख्य कारण  शिक्षक-छात्र का विषम अनुपात (Disproportionate teacher-student ratio) है।


शिक्षक-छात्र अनुपात का महत्व

एक कक्षा में छात्रों की संख्या के अनुसार शिक्षकों की संख्या का न होना शिक्षा की गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करता है।

  • व्यक्तिगत ध्यान की कमी: जब एक शिक्षक को बहुत अधिक छात्रों को पढ़ाना पड़ता है, तो उसके लिए प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत ध्यान देना असंभव हो जाता है।

  • कमजोर शिक्षण: भीड़-भाड़ वाली कक्षा में शिक्षक प्रभावी ढंग से शिक्षण नहीं कर पाता, जिससे छात्रों का अधिगम (learning) बाधित होता है।

  • अनुशासन की समस्या: अधिक छात्रों के कारण अनुशासन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, जिससे सीखने का माहौल बिगड़ जाता है।

अन्य विकल्प, जैसे कि एकाकी परिवार या दूरदर्शन, भी कुछ हद तक प्रासंगिक हो सकते हैं, लेकिन शिक्षक-छात्र का विषम अनुपात सीधे तौर पर शिक्षा प्रणाली की नींव को प्रभावित करता है।

 

प्रश्‍न – (43) आज के वैज्ञानिक युग में छात्रों को आध्‍यात्मिकता ज्ञान देना –

1.      पिछडापन है
2.      आवश्‍यक है।
3.      अनावश्‍यक है।   
4.      असम्‍भव है।
उत्‍तर  2

आज के वैज्ञानिक युग में छात्रों को आध्यात्मिकता का ज्ञान देना  आवश्यक है


आध्यात्मिकता और आधुनिक युग

आध्यात्मिकता को अक्सर धर्म से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसका एक व्यापक अर्थ भी है। इसका संबंध आत्म-जागरूकता, जीवन के उद्देश्य, और आंतरिक शांति की खोज से है।

  • संतुलन: आज के वैज्ञानिक युग में, जहाँ छात्र तकनीकी ज्ञान में पारंगत हो रहे हैं, वहाँ आध्यात्मिकता उन्हें आंतरिक संतुलन प्रदान कर सकती है। यह उन्हें तनाव, चिंता और जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है।

  • मानवीय मूल्य: आध्यात्मिकता उन्हें सहानुभूति, करुणा, और दूसरों के प्रति सम्मान जैसे नैतिक और मानवीय मूल्यों को समझने में भी मदद करती है, जो एक बेहतर समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

इस प्रकार, वैज्ञानिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान का संयोजन छात्रों को न केवल एक सफल, बल्कि एक पूर्ण और सार्थक जीवन जीने में भी मदद करता है।

 

प्रश्‍न – (44) विद्यालय कें सभी कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए क्‍योंकि इससें

1.      सीखने का अवसर मिलता है
2.      व्‍यक्तित्‍व का विकास होता है
3.      आत्‍मविश्‍वास बढता है
4.      सभी
उत्‍तर  4

विद्यालय के सभी कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए, क्योंकि इससे उपरोक्त सभी  लाभ होते हैं।


विद्यालय के कार्यक्रमों में भाग लेने के लाभ

विद्यालय के कार्यक्रम सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं होते, बल्कि छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

  • सीखने का अवसर: कार्यक्रमों में भाग लेने से छात्र नई चीजें सीखते हैं, जैसे कि भाषण देना, नाटक करना या किसी खेल में भाग लेना। यह उन्हें कक्षा के बाहर भी ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का मौका देता है।

  • व्यक्तित्व का विकास: ये कार्यक्रम छात्रों को अपने सामाजिक कौशल को बेहतर बनाने, दूसरों के साथ सहयोग करने और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने में मदद करते हैं, जो उनके व्यक्तित्व को निखारता है।

  • आत्मविश्वास में वृद्धि: जब छात्र किसी कार्यक्रम में अच्छा प्रदर्शन करते हैं या उसमें सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। यह आत्मविश्वास उन्हें भविष्य में नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।

इस प्रकार, विद्यालय के कार्यक्रम छात्रों को शैक्षणिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर लाभ पहुंचाते हैं।

 

प्रश्‍न – (45) किसी भी विषय वस्‍तु कों छात्रों को सरलता से सिखाने के लिए अध्‍यापक का सर्वप्रथम गुण होना चाहिए।

1.      आत्‍मविश्‍वास
2.      विषय वस्‍तु का ज्ञान
3.      प्रभावी अभिव्‍यक्ति   
4.      ये सभी
उत्‍तर  4
किसी भी विषय-वस्तु को छात्रों को सरलता से सिखाने के लिए अध्यापक का सर्वप्रथम गुण ये सभी (आत्मविश्वास, विषय-वस्तु का ज्ञान और प्रभावी अभिव्यक्ति) होने चाहिए. ये सभी गुण एक-दूसरे के पूरक हैं और प्रभावी शिक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक हैं. 
 
इन गुणों का महत्व
  • आत्मविश्वास: एक आत्मविश्वासी शिक्षक कक्षा में प्रभावी ढंग से अपनी बात रख पाता है और छात्रों के सवालों का संतोषजनक जवाब दे पाता है. यह छात्रों में भी विश्वास पैदा करता है और सीखने के लिए अनुकूल माहौल बनाता है.
  • विषय-वस्तु का ज्ञान: यह सबसे मूलभूत आवश्यकता है. जब शिक्षक को अपने विषय का गहरा ज्ञान होता है, तो वह छात्रों के हर प्रकार के संदेह को दूर कर सकता है. ज्ञान के बिना प्रभावी शिक्षण संभव नहीं है.
  • प्रभावी अभिव्यक्ति: केवल ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है. शिक्षक को अपनी बात सरल और स्पष्ट तरीके से छात्रों तक पहुँचाने का कौशल भी आना चाहिए. प्रभावी संचार से छात्र जटिल अवधारणाओं को भी आसानी से समझ पाते हैं
 

प्रश्‍न – (46) वह अवस्‍था जब बच्‍चा तार्किक रूप से वस्‍तुओं व घटनाओं के विषय में चिंतन प्रारंभ करता है  वह अवस्‍था है।

1.      औपचारिक संक्रियात्‍मक अवस्‍था
2.      पूर्व संक्रियात्‍मक अवस्‍था
3.      संवेदी प्रेरक अवस्‍था   
4.      मूर्त संक्रियात्‍मक अवस्‍था
उत्‍तर  4

वह अवस्था जब बच्चा तार्किक रूप से वस्तुओं और घटनाओं के विषय में चिंतन प्रारंभ करता है, वह  मूर्त संक्रियात्मक अवस्था है।


मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage)

यह जीन पियाजे (Jean Piaget) के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की तीसरी अवस्था है, जो लगभग 7 से 11 वर्ष की आयु तक चलती है। इस अवस्था में, बच्चा ठोस (concrete) वस्तुओं और घटनाओं के बारे में तार्किक रूप से सोचना शुरू कर देता है।

  • मुख्य विशेषताएँ:

    • तर्कशक्ति का विकास: बच्चा वस्तुओं को उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत कर सकता है (जैसे आकार, रंग या संख्या)।

    • संरक्षण (Conservation) की समझ: बच्चा यह समझने लगता है कि किसी वस्तु का आयतन, वजन या मात्रा उसके आकार को बदलने से नहीं बदलती।

    • तार्किक चिंतन: बच्चा एक ही समय में एक से अधिक विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।

इस अवस्था में बच्चे का चिंतन मूर्त (जो चीजें मौजूद हैं) होता है, जबकि अमूर्त (जो चीजें मौजूद नहीं हैं) चिंतन का विकास अगली अवस्था में होता है।

 

प्रश्‍न – (47) वह कौन सा कथन है जहां बच्‍चें कें संज्ञानात्‍मक विकास को सबसे बेहतर तरीके से परिभाषित किया जा सकता है।  

1.      विद्यालय एवं कक्षा पर्यावरण
2.      खेल का मैदान
3.      सभागार   
4.      घर
उत्‍तर – 1

बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को सबसे बेहतर तरीके से विद्यालय एवं कक्षा पर्यावरण में परिभाषित किया जा सकता है।


विद्यालय और संज्ञानात्मक विकास का संबंध

संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) का अर्थ है बच्चे के सोचने, समझने, तर्क करने, याद रखने और समस्याओं को हल करने की क्षमता का विकास।

  • सुनियोजित वातावरण: विद्यालय और कक्षा का पर्यावरण बच्चे के संज्ञानात्मक विकास के लिए एक सुनियोजित और संरचित वातावरण प्रदान करता है।

  • सीखने के अवसर: यहाँ शिक्षक, पाठ्यक्रम, और सीखने की सामग्री उपलब्ध होती है जो बच्चों को विभिन्न कौशलों और अवधारणाओं को विकसित करने में मदद करती है।

  • सामाजिक अंतःक्रिया: बच्चे अपने साथियों और शिक्षकों के साथ बातचीत करके भी सीखते हैं, जिससे उनके सामाजिक-संज्ञानात्मक कौशल का विकास होता है।

जबकि अन्य स्थान (जैसे खेल का मैदान या घर) भी विकास में योगदान देते हैं, लेकिन विद्यालय ही वह जगह है जहाँ संज्ञानात्मक विकास को सबसे व्यवस्थित और परिभाषित तरीके से बढ़ावा दिया जाता है।

 

प्रश्‍न – (48) बच्‍चे दुनिया के बारे में अपनी समझ का सृजन करते है इसका श्रेय किसको जाता है।

1.      पैवलॉव
2.      पियाजे
3.      स्किनर 
4.      इनमें से कोई नहीं
उत्‍तर  2

बच्चे दुनिया के बारे में अपनी समझ का सृजन करते हैं, इसका श्रेय  पियाजे को जाता है।


पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

जीन पियाजे (Jean Piaget) एक स्विस मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास (cognitive development) पर महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके अनुसार, बच्चे निष्क्रिय श्रोता नहीं होते हैं, बल्कि वे सक्रिय रूप से अपने पर्यावरण के साथ अंतःक्रिया करके दुनिया के बारे में अपनी समझ का निर्माण करते हैं।

  • निर्माणवादी दृष्टिकोण (Constructivist View): पियाजे का यह सिद्धांत निर्माणवाद कहलाता है। यह मानता है कि बच्चे अपने अनुभवों और ज्ञान के आधार पर अपने मानसिक ढाँचे (schemas) बनाते हैं। जब उन्हें कोई नई जानकारी मिलती है, तो वे उसे या तो अपने मौजूदा ढाँचे में शामिल करते हैं (समावेशन – assimilation) या अपने ढाँचे को नई जानकारी के अनुरूप बदलते हैं (समायोजन – accommodation)।

इस तरह, बच्चे लगातार दुनिया के बारे में अपनी समझ का सृजन करते रहते हैं।

 
 

प्रश्‍न – (49) निम्‍न मे से किसने कहा है कि शिशु अपने एवं अपने संसार के बारे में अधिकांश बाते खेल के माध्‍यम से सीखता है।  

1.      क्रो एवं क्रो
2.      जॉन डेवी
3.      गेसल
4.      स्‍ट्रेंग
उत्‍तर – 4

किस विद्वान ने यह कहा था कि शिशु अपने और अपने संसार के बारे में अधिकांश बातें खेल के माध्यम से सीखता है? इसका सही उत्तर है 4. स्ट्रेंग


स्ट्रेंग का योगदान

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक रुथ स्ट्रेंग (Ruth Strang) ने बच्चों के विकास और शिक्षा पर महत्वपूर्ण शोध किया है। उनका मानना था कि खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह बच्चों के सीखने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

  • खेल और सीखना: स्ट्रेंग के अनुसार, खेल के माध्यम से बच्चे अपने पर्यावरण को समझते हैं, अपनी शारीरिक क्षमताओं का विकास करते हैं, और सामाजिक कौशल सीखते हैं। खेल उन्हें समस्याओं को हल करने, रचनात्मक बनने और अपने विचारों को व्यक्त करने का अवसर देता है।

यह कथन शिक्षा के क्षेत्र में खेल-आधारित शिक्षण (play-based learning) के महत्व पर प्रकाश डालता है।

 

प्रश्‍न – (50) विकास कभी न समाप्‍त होने वाली प्रक्रिया है यह विचार किससे संबंधित है।  

1.      निरंतरता का सिद्धांत
2.      अंत: संबंध का सिद्धांत
3.      अंत: क्रिया का सिद्धांत   
4.      एकीकरण का सिद्धांत
उत्‍तर  1

विकास कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया है, यह विचार  निरंतरता का सिद्धांत (Principle of Continuity) से संबंधित है।


निरंतरता का सिद्धांत

निरंतरता का सिद्धांत बताता है कि विकास एक सतत और धीमी प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। यह अचानक नहीं होता, बल्कि एक चरण से दूसरे चरण में धीरे-धीरे संक्रमण होता है। यह दर्शाता है कि व्यक्ति के जीवन में शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास लगातार चलता रहता है, और यह कभी रुकता नहीं है।

 

प्रश्‍न – (51) एक 8 वर्षीय बालक अपने छोटे भाई की तरह घुटनें चलता है यह उदाहरण है।

1.      प्रतिगमन
2.      युक्तिकरण
3.      दमन   
4.      क्षतिपूर्ति
उत्‍तर  1

एक 8 वर्षीय बालक का अपने छोटे भाई की तरह घुटनों पर चलना  प्रतिगमन (Regression) का एक उदाहरण है।


प्रतिगमन क्या है?

प्रतिगमन (Regression) एक मनोवैज्ञानिक रक्षा तंत्र है जिसमें एक व्यक्ति, तनाव या चिंता का सामना करने पर, अपने विकास के शुरुआती चरण के व्यवहार पर लौट आता है।

  • उदाहरण:

    • एक बड़ा बच्चा जो पहले से ही बोतल छोड़ चुका है, तनाव में फिर से बोतल से दूध पीना शुरू कर देता है।

    • स्कूल जाने वाला बच्चा जो अपने छोटे भाई की तरह घुटनों के बल चलता है, यह ध्यान आकर्षित करने या असुरक्षा महसूस करने के कारण हो सकता है।

अन्य विकल्प

  • युक्तिकरण (Rationalization): इसमें व्यक्ति अपने अनुचित व्यवहार को तार्किक कारणों से सही ठहराता है।

  • दमन (Repression): इसमें व्यक्ति अपनी दर्दनाक या अस्वीकार्य यादों को अचेतन मन में दबा देता है।

  • क्षतिपूर्ति (Compensation): इसमें व्यक्ति किसी एक क्षेत्र की कमी को दूसरे क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करके पूरा करता है।

 

 

प्रश्‍न – (52) थार्नडाइक के सीखने के नियम के अनुसार गौण नियमों में निम्‍न में से कौन सा सम्मिलित नहीं है।  

1.      बहुअनुक्रिया नियम
2.      प्रभाव का नियम
3.      मानसिक स्थिति का नियम   
4.      आंशिक क्रिया का नियम
उत्‍तर  2

थार्नडाइक के सीखने के नियमों में से  प्रभाव का नियम गौण नियमों में सम्मिलित नहीं है। यह उनके मुख्य नियमों (Primary Laws) में से एक है।


थार्नडाइक के सीखने के नियम

एडवर्ड एल. थार्नडाइक ने सीखने के दो प्रकार के नियम दिए हैं:

  1. मुख्य नियम (Primary Laws): ये तीन नियम सीखने की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

    • तत्परता का नियम (Law of Readiness): सीखने के लिए व्यक्ति का मानसिक रूप से तैयार होना आवश्यक है।

    • अभ्यास का नियम (Law of Exercise): किसी कार्य का बार-बार अभ्यास करने से सीखने की प्रक्रिया मजबूत होती है।

    • प्रभाव का नियम (Law of Effect): यदि किसी व्यवहार का परिणाम सुखद होता है तो वह व्यवहार मजबूत होता है, और यदि वह दुखद होता है तो वह कमजोर होता है।

  2. गौण नियम (Secondary Laws): ये पाँच नियम सीखने की प्रक्रिया में सहायक होते हैं।

    • बहु-अनुक्रिया का नियम (Law of Multiple Response)

    • मानसिक स्थिति का नियम (Law of Mental Set)

    • आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity)

    • सादृश्यता का नियम (Law of Analogy)

    • सहचर्यात्मक स्थानांतरण का नियम (Law of Associative Shifting)

इसलिए, प्रभाव का नियम गौण नियमों के बजाय मुख्य नियमों में आता है।

 

प्रश्‍न – (53) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अशाब्दिक सम्‍प्रेषण के तरीके है।  

1.      मुख के हाव भाव
2.      शारीरिक भाषा
3.      सांकेतिक भाषा   
4.      उपरोक्त सभी 
उत्‍तर  4

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में अशाब्दिक संप्रेषण के तरीके उपरोक्त सभी हैं।


अशाब्दिक संप्रेषण के प्रकार

अशाब्दिक संप्रेषण (Non-verbal communication) वह संप्रेषण है जिसमें शब्दों का उपयोग नहीं किया जाता है। यह शिक्षण प्रक्रिया में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • मुख के हाव-भाव (Facial Expressions): शिक्षक के चेहरे के हाव-भाव, जैसे मुस्कान या भौंहे सिकोड़ना, छात्रों को यह समझने में मदद करते हैं कि शिक्षक कैसा महसूस कर रहा है या वह किसी बात पर कैसे प्रतिक्रिया दे रहा है।

  • शारीरिक भाषा (Body Language): शिक्षक के खड़े होने, चलने, और इशारे करने का तरीका कक्षा में अनुशासन और ध्यान को प्रभावित करता है।

  • सांकेतिक भाषा (Sign Language): विशेष रूप से उन छात्रों के लिए जो सुनने में असमर्थ हैं, सांकेतिक भाषा एक महत्वपूर्ण माध्यम है। हालांकि, सामान्य शिक्षण में भी शिक्षक अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए हाथों के इशारों का प्रयोग करते हैं।

 

प्रश्‍न – (54) अधिगम की दृष्टि से सर्वोत्‍तम शिक्षण सामग्री है।  

1.      पाठ्यपुस्‍तक में दी हुई
2.      बाजार में उपलब्‍ध
3.      छात्र द्वारा निर्मित   
4.      अध्‍यापक निर्मित
उत्‍तर  3

अधिगम की दृष्टि से सर्वोत्तम शिक्षण सामग्री वह है जो  छात्र द्वारा निर्मित हो।


छात्र-निर्मित शिक्षण सामग्री क्यों है सर्वोत्तम?

  • सक्रिय अधिगम (Active Learning): जब छात्र स्वयं शिक्षण सामग्री बनाते हैं, तो वे निष्क्रिय श्रोता के बजाय सक्रिय रूप से सीखने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यह उन्हें विषय को गहराई से समझने में मदद करता है।

  • अर्थपूर्ण अनुभव: अपने हाथों से बनाई गई सामग्री छात्रों के लिए अधिक अर्थपूर्ण होती है। वे सीखते समय समस्या-समाधान, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच जैसे कौशल विकसित करते हैं।

  • आत्म-प्रेरणा: यह विधि छात्रों में सीखने की आंतरिक प्रेरणा को बढ़ाती है, क्योंकि वे अपने काम में स्वामित्व महसूस करते हैं।

अन्य विकल्प, जैसे कि पाठ्यपुस्तक में दी हुई या अध्यापक निर्मित सामग्री, भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे छात्रों को निष्क्रिय रूप से जानकारी प्राप्त करने तक ही सीमित रख सकते हैं। छात्र द्वारा निर्मित सामग्री करके सीखने (learning by doing) के सिद्धांत पर आधारित है, जो अधिगम के लिए सबसे प्रभावी तरीका माना जाता है।

 

प्रश्‍न – (55) कौन सा कारक प्रभावी कक्षा शिक्षण में विचाराधीन नहीं होता है।

1.      तकनीकी की कमी
2.      पृष्‍ठपोषण
3.      शिक्षण कार्यनीति व दक्षतायें   
4.      सम्‍प्रेषण व स्‍पष्‍टता का सिद्धांत
उत्‍तर  1

प्रभावी कक्षा शिक्षण में  तकनीकी की कमी विचाराधीन नहीं होती है।


प्रभावी कक्षा शिक्षण के कारक

प्रभावी कक्षा शिक्षण का सीधा संबंध शिक्षक की योग्यता और शिक्षण के तरीकों से होता है, न कि उपलब्ध तकनीकी संसाधनों से।

  • पृष्ठपोषण (Feedback): यह शिक्षण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शिक्षक छात्रों को उनकी प्रगति के बारे में प्रतिक्रिया देते हैं, और छात्र भी शिक्षक के शिक्षण तरीकों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। यह सीखने की प्रक्रिया को बेहतर बनाता है।

  • शिक्षण कार्यनीति व दक्षताएँ (Teaching Strategies and Skills): एक प्रभावी शिक्षक विभिन्न शिक्षण विधियों का उपयोग करता है जो छात्रों को विषय को समझने में मदद करती हैं। यह उसकी दक्षता पर निर्भर करता है।

  • संप्रेषण व स्पष्टता का सिद्धांत (Principle of Communication and Clarity): एक शिक्षक को अपनी बात स्पष्ट और प्रभावी ढंग से छात्रों तक पहुँचाना आना चाहिए। यह प्रभावी शिक्षण के लिए एक आवश्यक शर्त है।

तकनीकी की कमी भले ही शिक्षण को कुछ हद तक प्रभावित कर सकती है, लेकिन यह स्वयं में प्रभावी शिक्षण को निर्धारित करने वाला कारक नहीं है। एक प्रभावी शिक्षक कम तकनीकी संसाधनों के साथ भी उत्कृष्ट शिक्षण कर सकता है।

 

प्रश्‍न – (56) शिक्षण का सत्‍तावादी स्‍तर केन्द्रित है।  

1.      शिक्षक केन्द्रित
2.      शिशु केन्द्रित
3.      प्रधानाध्‍यापक केन्द्रित   
4.      अनुभव आधारित
उत्‍तर  1

शिक्षण का सत्तावादी स्तर शिक्षक केंद्रित होता है।


सत्तावादी शिक्षण का अर्थ

सत्तावादी या निरंकुश शिक्षण (Authoritarian teaching) वह शैली है जिसमें कक्षा का पूरा नियंत्रण शिक्षक के हाथ में होता है। इस प्रकार के शिक्षण में:

  • शिक्षक की भूमिका: शिक्षक ही एकमात्र सत्ता होता है। वह निर्धारित करता है कि क्या पढ़ाया जाएगा, कैसे पढ़ाया जाएगा और कब पढ़ाया जाएगा।

  • छात्रों की भूमिका: छात्र निष्क्रिय श्रोता होते हैं। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे निर्देशों का पालन करें, प्रश्न न करें और बिना किसी बहस के जानकारी को ग्रहण करें।

  • कम संवाद: इस विधि में शिक्षक और छात्र के बीच बहुत कम या कोई संवाद नहीं होता है।

यह पारंपरिक शिक्षण का एक रूप है, जो आधुनिक शिक्षण विधियों के विपरीत है जो छात्र केंद्रित और सहभागी होती हैं।

 

प्रश्‍न – (57) निम्‍न में से किसने सबसे पहले बुनियादी शिक्षा का विचार प्रतिपादित किया था।

1.      जाकिर हुसैन
2.      राजेन्‍द्र प्रसाद
3.      महात्‍मा गांधी   
4.      रवीन्‍द्रनाथ टैगोर
उत्‍तर  3

बुनियादी शिक्षा का विचार सबसे पहले  महात्मा गांधी ने प्रतिपादित किया था।


महात्मा गांधी और बुनियादी शिक्षा

महात्मा गांधी ने 1937 में वर्धा योजना के माध्यम से बुनियादी शिक्षा (Basic Education) का विचार प्रस्तुत किया। इसे नई तालीम (Nai Talim) भी कहा जाता है।

  • मुख्य सिद्धांत:

    • हस्तकला पर आधारित शिक्षा: गांधीजी का मानना था कि शिक्षा को किसी उपयोगी हस्तकला, जैसे कताई, बुनाई या बढ़ईगिरी, पर आधारित होना चाहिए।

    • आत्मनिर्भरता: इस प्रणाली का उद्देश्य छात्रों को न केवल शिक्षित करना था, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और उत्पादक नागरिक बनाना था।

    • मातृभाषा में शिक्षा: उन्होंने 7 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का समर्थन किया, जो उनकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए।

गांधीजी का मानना था कि यह प्रणाली बच्चों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित करने में मदद करेगी।

 

प्रश्‍न – (58) सर्व शिक्षा अभियान किस वर्ष शुरू किया गया।

1.      2009
2.      2001 
3.      2008   
4.      2004
उत्‍तर  2

सर्व शिक्षा अभियान  2001 में शुरू किया गया था।


सर्व शिक्षा अभियान (SSA)

सर्व शिक्षा अभियान भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसे 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में शुरू किया गया था। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करना और शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक और सामाजिक असमानताओं को दूर करना था। इस कार्यक्रम ने शिक्षा के सार्वभौमिकरण (universalization of education) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

प्रश्‍न – (59) निशुल्‍क शिक्षा और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियमअधिनियमित किया गया  

1.      लोक सभा द्वारा
2.      राज्‍य सभा द्वारा
3.      भारत की संसद द्वारा   
4.      कोई नहीं
उत्‍तर  3

निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम (Right to Education Act)  भारत की संसद द्वारा अधिनियमित किया गया।


शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act)

यह अधिनियम 4 अगस्त, 2009 को भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था। यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित करता है। यह कानून 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ।

इस अधिनियम को पारित करने में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन कोई भी कानून तब तक अधिनियमित नहीं होता जब तक कि वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित न हो जाए। इसलिए, सबसे सटीक उत्तर भारत की संसद है।

 
 

प्रश्‍न – (60) शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 में एक अध्‍यापक के लिए न्‍यूनतम कार्य घंटे प्रति सप्‍ताह निर्धारित किए गए है। 

1.      चालीस घंटे
2.      पैंतालीस घंटे
3.      पचास घंटे   
4.      पचपन घंटे
उत्‍तर – 2

शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 (Right to Education Act 2009) में एक अध्यापक के लिए न्यूनतम 45 घंटे प्रति सप्ताह कार्य के लिए निर्धारित किए गए हैं।


शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) 2009

यह अधिनियम प्राथमिक शिक्षा को हर बच्चे का मौलिक अधिकार बनाता है। इसमें शिक्षकों के लिए कई मानदंड और मानक निर्धारित किए गए हैं, ताकि शिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। इनमें से एक महत्वपूर्ण मानदंड है प्रति सप्ताह न्यूनतम कार्य घंटों का निर्धारण, जिसमें शिक्षण और तैयारी के घंटे दोनों शामिल हैं। यह सुनिश्चित करता है कि छात्रों को पर्याप्त समय और ध्यान मिले।

 

प्रश्‍न – (61) प्रशिक्षण एवं अभ्‍यास संबंधित है।

1.      संज्ञानात्‍मक वाद से
2.      व्‍यवहारवाद से
3.      निर्मितवाद से   
4.       इनमें से कोई नहीं
उत्‍तर  2

प्रशिक्षण और अभ्यास का संबंध  व्यवहारवाद (Behaviorism) से है।


व्यवहारवाद और अधिगम

व्यवहारवाद मनोविज्ञान की एक शाखा है जो सीखने को बाहरी व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के रूप में देखती है। इस सिद्धांत के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया मुख्य रूप से प्रशिक्षण (training), अभ्यास (practice), और अनुभव पर आधारित होती है।

  • प्रशिक्षण और अभ्यास का महत्व: व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों जैसे कि बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner) और एडवर्ड थार्नडाइक (Edward Thorndike) का मानना था कि किसी भी व्यवहार को बार-बार दोहराकर (अभ्यास) या किसी उद्दीपक और अनुक्रिया के बीच संबंध स्थापित करके (प्रशिक्षण) सीखा जा सकता है।

यह सिद्धांत निर्मितवाद (Constructivism) से भिन्न है, जो सीखने को ज्ञान के आंतरिक निर्माण के रूप में देखता है, और संज्ञानात्मकवाद (Cognitivism) से भी भिन्न है, जो मानसिक प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करता है।

 

प्रश्‍न – (62) पियाजे के अनुसार संज्ञानात्‍मक विकास की तीसरी अवस्‍था होती है।  

1.      औपचारिक संक्रियात्‍मक अवस्‍था
2.      पूर्व – संक्रियात्‍मक अवस्‍था
3.      इन्द्रिय गतिक अवस्‍था   
4.      मूर्त संक्रियात्‍मक अवस्‍था
उत्‍तर  4

पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की तीसरी अवस्था  मूर्त संक्रियात्मक अवस्था होती है।


पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के चरण

जीन पियाजे ने बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को चार मुख्य चरणों में विभाजित किया है:

  1. संवेदी-प्रेरक अवस्था (Sensorimotor Stage): जन्म से 2 वर्ष तक। इस अवस्था में बच्चा इंद्रियों और क्रियाओं के माध्यम से सीखता है।

  2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Preoperational Stage): 2 से 7 वर्ष तक। इस अवस्था में प्रतीकात्मक चिंतन और भाषा का विकास होता है, लेकिन तर्क अविकसित होता है।

  3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage): 7 से 11 वर्ष तक। इस अवस्था में बच्चा ठोस वस्तुओं और घटनाओं के बारे में तार्किक रूप से सोचना शुरू कर देता है।

  4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage): 11 वर्ष से ऊपर। इस अवस्था में बच्चा अमूर्त (abstract) और परिकल्पनात्मक (hypothetical) चिंतन करने में सक्षम हो जाता है।

 

प्रश्‍न – (63)  कक्षा – कक्ष शिक्षण होना चाहिए।

1.      तीव्र
2.      संवादमूलक
3.      सरल   
4.      एक – तरफा
उत्‍तर  2

कक्षा-कक्ष शिक्षण  संवादमूलक (Interactive) होना चाहिए।


संवादमूलक शिक्षण का महत्व

संवादमूलक शिक्षण वह प्रक्रिया है जहाँ शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय रूप से सीखने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यह एक-तरफा (एक-तरफा) शिक्षण के विपरीत है, जिसमें केवल शिक्षक ही बोलता है।

  • सक्रिय भागीदारी: संवादमूलक शिक्षण में, छात्र प्रश्न पूछ सकते हैं, अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं और चर्चा में भाग ले सकते हैं। इससे वे विषय को बेहतर ढंग से समझते हैं और उनमें सोचने की क्षमता विकसित होती है।

  • समझ और रुचि: जब छात्र बातचीत में शामिल होते हैं, तो उनका सीखने में अधिक मन लगता है। इससे वे विषय को रटने के बजाय गहराई से समझते हैं।

  • शिक्षण का अनुकूलन: शिक्षक छात्रों के प्रश्नों और प्रतिक्रियाओं के आधार पर अपने शिक्षण को अनुकूलित कर सकते हैं, जिससे यह उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप हो जाता है।

इसलिए, प्रभावी शिक्षण के लिए संवाद बहुत महत्वपूर्ण है।

 

प्रश्‍न – (64) डेनियल गोलमैन संबंधित है।

1.      सृजनात्‍मकता से
2.      सामाजिक वुद्धि से
3.      संवेगात्‍मक बुद्धि से   
4.      कोई नहीं
उत्‍तर  3

डेनियल गोलमैन का संबंध  संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence) से है।


डेनियल गोलमैन और संवेगात्मक बुद्धि

डेनियल गोलमैन एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक और लेखक हैं जिन्होंने संवेगात्मक बुद्धि की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने 1995 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Emotional Intelligence” में तर्क दिया कि पारंपरिक बुद्धि (IQ) के अलावा, जीवन में सफलता के लिए संवेगात्मक बुद्धि (EQ) भी उतनी ही, या उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है।

गोलमैन के अनुसार, संवेगात्मक बुद्धि में पाँच मुख्य घटक शामिल हैं:

  • आत्म-जागरूकता (Self-awareness): अपनी भावनाओं को पहचानना और समझना।

  • आत्म-नियमन (Self-regulation): अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना।

  • अभिप्रेरणा (Motivation): अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वयं को प्रेरित करना।

  • सहानुभूति (Empathy): दूसरों की भावनाओं को समझना।

  • सामाजिक कौशल (Social skills): दूसरों के साथ प्रभावी ढंग से बातचीत करना और संबंध बनाना।

 

प्रश्‍न – (65) क्रिया प्रसूत साहचर्य मुख्‍यत: किसकी भूमिका पर बल देता है।  

1.      अधिगम सामग्री
2.      शिक्षक
3.      वातावरण   
4.      पुनर्बलन
उत्‍तर  4

क्रिया प्रसूत साहचर्य (Operant Conditioning) मुख्य रूप से  पुनर्बलन (Reinforcement) की भूमिका पर बल देता है।


पुनर्बलन का महत्व

मनोवैज्ञानिक बी.एफ. स्किनर (B.F. Skinner) द्वारा प्रतिपादित क्रिया प्रसूत साहचर्य सिद्धांत यह बताता है कि व्यवहार को उसके परिणामों द्वारा सीखा या बदला जा सकता है।

  • पुनर्बलन क्या है? पुनर्बलन एक ऐसा परिणाम है जो किसी व्यवहार के होने की संभावना को बढ़ाता है।

    • सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforcement): किसी व्यवहार के बाद एक सुखद उद्दीपक (जैसे प्रशंसा या पुरस्कार) देना।

    • नकारात्मक पुनर्बलन (Negative Reinforcement): किसी व्यवहार के बाद एक अप्रिय उद्दीपक (जैसे दंड) को हटाना।

स्किनर के अनुसार, किसी व्यवहार को दोहराने या बंद करने का निर्णय इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यवहार के बाद उसे कैसा पुनर्बलन मिलता है। यही कारण है कि यह सिद्धांत पुनर्बलन की भूमिका पर सबसे अधिक बल देता है।

 

प्रश्‍न – (66) शिक्षा मनोविज्ञान नही है।

1.      अनुप्रयुक्‍त विज्ञान
2.      व्‍यावहारिक विज्ञान
3.      सामाजिक विज्ञान   
4.      आदर्शमूलक विज्ञान
उत्‍तर  4

शिक्षा मनोविज्ञान  आदर्शमूलक विज्ञान (Normative Science) नहीं है।


शिक्षा मनोविज्ञान क्या है?

शिक्षा मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो शिक्षा से संबंधित समस्याओं का अध्ययन करता है। यह एक अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science) है क्योंकि यह मनोविज्ञान के सिद्धांतों को शिक्षा के क्षेत्र में लागू करता है। यह एक व्यावहारिक विज्ञान (Practical Science) भी है, क्योंकि यह शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए सिद्धांतों का उपयोग करता है। इसे सामाजिक विज्ञान (Social Science) माना जाता है क्योंकि यह मानव व्यवहार और सामाजिक संदर्भ में सीखने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है।

इसके विपरीत, आदर्शमूलक विज्ञान वह है जो यह निर्धारित करता है कि क्या सही है या कैसा होना चाहिए। उदाहरण के लिए, नैतिकता या तर्कशास्त्र आदर्शमूलक विज्ञान हैं। शिक्षा मनोविज्ञान यह बताता है कि लोग कैसे सीखते हैं, न कि उन्हें कैसे सीखना चाहिए, इसलिए यह आदर्शमूलक विज्ञान नहीं है।

 

प्रश्‍न – (67) पियाजे द्वारा संज्ञानात्‍मक संरचना को उल्‍लेखित करने वाली शब्‍दावली है।  

1.      अनुप्रतीकात्‍मक
2.      प्रतीकात्‍मक
3.      स्‍कीमा   
4.      अहमकेन्द्रिक
उत्‍तर  3

पियाजे द्वारा संज्ञानात्मक संरचना को उल्लेखित करने वाली शब्दावली  स्कीमा (Schema) है।


स्कीमा का अर्थ

स्कीमा एक मानसिक संरचना है, जिसे जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में महत्वपूर्ण माना था। यह एक व्यक्ति की समझ, ज्ञान, और धारणाओं का एक संगठित पैटर्न है।

  • ज्ञान की इकाई: पियाजे के अनुसार, एक स्कीमा ज्ञान की एक बुनियादी इकाई है जो व्यक्ति को दुनिया को समझने में मदद करती है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनके स्कीमा विकसित होते हैं और अधिक जटिल हो जाते हैं।

  • उदाहरण: एक बच्चा जब पहली बार किसी कुत्ते को देखता है, तो वह उसके बारे में एक स्कीमा बनाता है (जैसे – चार पैर, फर, पूंछ)। बाद में, जब वह किसी और कुत्ते को देखता है, तो वह इस स्कीमा का उपयोग करके उसे पहचानता है।

पियाजे का सिद्धांत बताता है कि सीखना इसी तरह से होता है, जब हम नई जानकारी को अपने मौजूदा स्कीमा में शामिल करते हैं या जब हम अपनी समझ को नई जानकारी के अनुरूप समायोजित करते हैं।

 

प्रश्‍न – (68) कक्षा में परस्‍पर संवाद से क्‍या उभरकर आना चाहिए।

1.      विवाद
2.      सूचना
3.      विचार   
4.      तर्क वितर्क
उत्‍तर  3

कक्षा में परस्पर संवाद से  विचार उभरकर आना चाहिए।


संवाद और विचार का संबंध

कक्षा में होने वाला संवाद केवल जानकारी के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को अपनी सोच विकसित करने और नए विचारों का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

  • विभिन्न दृष्टिकोण: जब छात्र और शिक्षक आपस में संवाद करते हैं, तो वे एक-दूसरे के विचारों को सुनते हैं और समझते हैं। यह उन्हें किसी भी विषय के विभिन्न पहलुओं को देखने में मदद करता है।

  • आलोचनात्मक चिंतन: संवाद छात्रों को किसी भी विचार या अवधारणा पर सवाल उठाने और आलोचनात्मक रूप से सोचने के लिए प्रेरित करता है, जिससे उनके अपने विचार विकसित होते हैं।

जबकि सूचना, विवाद और तर्क-वितर्क भी संवाद का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन इन सबका अंतिम लक्ष्य नए और मौलिक विचारों का उभरना है।

 

प्रश्‍न – (69) सामाजिक अधिगम का सिद्धांत किसके द्वारा दिया गया।

1.      अल्‍बर्ट बण्‍डूरा
2.      वाटसन
3.      स्‍पीयरमैन   
4.      थार्नडाइक
उत्‍तर – 1

सामाजिक अधिगम का सिद्धांत  अल्बर्ट बंडूरा द्वारा दिया गया था।


सामाजिक अधिगम का सिद्धांत (Social Learning Theory)

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बंडूरा (Albert Bandura) ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि मनुष्य केवल प्रत्यक्ष अनुभव से ही नहीं, बल्कि दूसरों को देखकर और उनका अनुकरण करके भी सीखते हैं।

  • मुख्य विचार: यह सिद्धांत अवलोकन (observation), अनुकरण (imitation), और प्रतिरूपण (modeling) की भूमिका पर जोर देता है। बंडूरा के प्रसिद्ध ‘बॉबो डॉल’ (Bobo Doll) प्रयोग ने यह दिखाया कि बच्चे वयस्कों को आक्रामक व्यवहार करते हुए देखकर उसे सीखते और दोहराते हैं।

यह सिद्धांत व्यवहारवाद और संज्ञानात्मक मनोविज्ञान के बीच एक सेतु का काम करता है, क्योंकि यह मानता है कि सीखने में बाहरी व्यवहार के साथ-साथ आंतरिक मानसिक प्रक्रियाएं भी शामिल होती हैं।

 

प्रश्‍न – (70) निर्मितवादी अधिगम उपागम में शिक्षक की भूमिका है।

1.      निष्क्रिय अवलोकनकर्ता
2.      सरलीकरण कर्ता
3.      कक्षा कक्ष प्रशासक   
4.      अनुदेशक
उत्‍तर  2

निर्मितवादी अधिगम उपागम (Constructivist Learning Approach) में शिक्षक की भूमिका  सरलीकरण कर्ता (Facilitator) की होती है।


निर्मितवाद में शिक्षक की भूमिका

निर्मितवाद यह मानता है कि छात्र अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करते हैं। इस दृष्टिकोण में, शिक्षक का काम केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि छात्रों को सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से सहायता करना है।

  • मार्गदर्शन: एक सरलीकरण कर्ता के रूप में, शिक्षक छात्रों को सीखने के लिए आवश्यक संसाधन और अवसर प्रदान करता है।

  • प्रोत्साहन: शिक्षक छात्रों को सोचने, प्रश्न पूछने, और समस्याओं को हल करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे वे अपने अनुभव के आधार पर नए ज्ञान का निर्माण कर सकें।

इस तरह, शिक्षक एक मार्गदर्शक और सहायक की भूमिका निभाता है, न कि केवल एक जानकारी देने वाले या कक्षा के प्रशासक की।

 

प्रश्‍न – (71) निम्‍न में से कौन सा मानव विकास का सिद्धांत नहीं है।

1.      निरन्‍तरता
2.      विलोमियता
3.      क्रमिकता   
4.      सामान्‍य से विशिष्‍ट
उत्‍तर  2

मानव विकास का सिद्धांत  विलोमीयता (Reversibility) नहीं है।


मानव विकास के सिद्धांत

मानव विकास एक जटिल और सतत प्रक्रिया है जो कुछ निश्चित सिद्धांतों का पालन करती है।

  1. निरंतरता का सिद्धांत: विकास एक सतत प्रक्रिया है जो जन्म से मृत्यु तक चलती रहती है। यह कभी रुकती नहीं।

  2. क्रमिकता का सिद्धांत: विकास एक निश्चित क्रम और पैटर्न का पालन करता है। उदाहरण के लिए, एक बच्चा पहले बैठना, फिर घुटनों के बल चलना और अंत में खड़ा होना सीखता है।

  3. सामान्य से विशिष्ट की ओर का सिद्धांत: विकास सामान्य प्रतिक्रियाओं से शुरू होता है और धीरे-धीरे विशिष्ट प्रतिक्रियाओं की ओर बढ़ता है। उदाहरण के लिए, एक शिशु पहले पूरे हाथ से किसी वस्तु को पकड़ने का प्रयास करता है, और बाद में केवल अपनी उंगलियों का उपयोग करके उसे पकड़ना सीखता है।

विलोमीयता (Reversibility) का सिद्धांत मानव विकास से संबंधित नहीं है। यह जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत की एक अवधारणा है, जो यह बताती है कि कोई व्यक्ति किसी कार्य या मानसिक प्रक्रिया को विपरीत दिशा में सोच सकता है, जैसे कि 2+3=5 को 5-3=2 के रूप में समझना। यह एक व्यक्ति के विकास का सिद्धांत नहीं है।

 

प्रश्‍न – (72) संवेगात्‍मक बुद्धि में कौन सी योग्‍यता सम्मिलित नही है।

1.      संवेगों को समझना
2.      संवेगों को नियमित करना
3.      संवेगों की अभिव्‍यक्ति एवं मूल्‍यांकन   
4.      संवेगों को जागृत करना
उत्‍तर  4

संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence) में  संवेगों को जागृत करना योग्यता सम्मिलित नहीं है।


संवेगात्मक बुद्धि की योग्यताएं

संवेगात्मक बुद्धि वह क्षमता है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानता है, उनका मूल्यांकन करता है और उन्हें प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित योग्यताएं शामिल होती हैं:

  • संवेगों को समझना: अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानना और उनके कारणों को समझना।

  • संवेगों को नियमित करना: अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना और उन्हें उपयुक्त तरीके से व्यक्त करना।

  • संवेगों की अभिव्यक्ति एवं मूल्यांकन: अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त करना और दूसरों की भावनाओं का मूल्यांकन करना।

संवेगों को जागृत करना (arousing emotions) संवेगात्मक बुद्धि का हिस्सा नहीं है। यह किसी व्यक्ति की भावनाओं को जानबूझकर उत्तेजित करने की प्रक्रिया है, जो अक्सर भावनात्मक हेरफेर (emotional manipulation) से जुड़ी होती है।

 

प्रश्‍न – (73) निम्‍न में से कौन सा अधिगम की प्रक्रिया का परिणाम नहीं है।  

1.     ज्ञान
2.      संकल्‍पना
3.      अभिवृति   
4.      परिपक्‍वता
उत्‍तर  4

अधिगम (Learning) की प्रक्रिया का परिणाम  परिपक्वता (Maturation) नहीं है।


अधिगम और परिपक्वता में अंतर

अधिगम (Learning) एक ऐसी प्रक्रिया है जो अनुभव और अभ्यास के कारण व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन लाती है। यह जानबूझकर और प्रयास के माध्यम से होती है।

  • उदाहरण: साइकिल चलाना सीखना, एक नई भाषा बोलना, या गणित की समस्या हल करना।

परिपक्वता (Maturation) जैविक और प्राकृतिक रूप से होने वाला विकास है। यह आनुवंशिक कारकों पर निर्भर करती है और इसमें किसी भी प्रकार के अभ्यास या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती।

  • उदाहरण: एक बच्चे के दाँत निकलना, उसकी ऊँचाई बढ़ना, या घुटनों के बल चलने के बाद चलना सीखना। ये सभी परिपक्वता के कारण होते हैं।

इसलिए, ज्ञान, संकल्पना (concept) और अभिवृत्ति (attitude) सीखने की प्रक्रिया के परिणाम हैं, जबकि परिपक्वता एक प्राकृतिक विकास प्रक्रिया है।

 

प्रश्‍न – (74) जे. पी. गिलफोर्ड के अनुसार अधिगम है।

1.      सोच में परिवर्तन
2.      ज्ञान का सर्जन
3.      अनुभव प्राप्‍त करना   
4.      व्‍यवहार में परिवर्तन
उत्‍तर  4

जे.पी. गिलफोर्ड के अनुसार, अधिगम (learning)  व्यवहार में परिवर्तन है।


अधिगम और व्यवहार

गिलफोर्ड ने अधिगम को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है जो व्यवहार में बदलाव लाती है। उनके अनुसार, यह परिवर्तन अनुभव या अभ्यास के परिणामस्वरूप होता है, और यह अपेक्षाकृत स्थायी होता है। यह व्यवहार में होने वाला बदलाव ज्ञान, कौशल या दृष्टिकोण के रूप में हो सकता है। यह परिभाषा व्यवहारवाद के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो सीखने को बाहरी और मापने योग्य व्यवहार में होने वाले परिवर्तन के रूप में देखते हैं।

 

प्रश्‍न – (75) शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया।

1.      ऐलेक्‍जेंडर
2.      जे एस रॉस
3.      ब्राइमर   
4.      के मैककिनौन
उत्‍तर  3

शैक्षिक तकनीकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम  ब्राइमर (Brynmor) जोंस ने 1967 में किया था।


शैक्षिक तकनीकी

शैक्षिक तकनीकी (Educational Technology) का अर्थ शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक ज्ञान और तकनीकी साधनों का उपयोग करना है। इसका उद्देश्य शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाना है। इसमें मशीनों, कंप्यूटरों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग शामिल हो सकता है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान शिक्षण के सिद्धांतों और विधियों पर होता है।

 

प्रश्‍न – (76) बच्‍चे के प्रशिक्षण के लिए शिक्षक को अवश्‍य जांच करनी चाहिए।

1.      शारीरिक परिपक्‍वता
2.      मानसिक परिपक्‍वता
3.      उपरोक्‍त दोनों   
4.      कोई नहीं
उत्‍तर  3

बच्चे के प्रशिक्षण के लिए शिक्षक को  उपर्युक्त दोनों की अवश्य जाँच करनी चाहिए।


परिपक्वता का महत्व

प्रशिक्षण का अर्थ है किसी कार्य को करने के लिए आवश्यक कौशल विकसित करना। एक शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चा उस प्रशिक्षण के लिए तैयार है, और यह तैयारी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की होती है।

  • शारीरिक परिपक्वता (Physical Maturity): यदि बच्चे में किसी काम को करने के लिए आवश्यक शारीरिक क्षमता नहीं है, तो उसे उस काम का प्रशिक्षण देना व्यर्थ है। उदाहरण के लिए, एक बहुत छोटे बच्चे को क्रिकेट खेलने के लिए प्रशिक्षित करना, जिसके हाथ-पैरों की मांसपेशियां अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुई हैं, कठिन होगा।

  • मानसिक परिपक्वता (Mental Maturity): बच्चे में मानसिक परिपक्वता का अर्थ है कि वह उस काम को समझने और उससे संबंधित निर्देशों का पालन करने में सक्षम है। यदि बच्चा किसी अवधारणा को समझने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है, तो उसे सिखाना मुश्किल होगा।

इसलिए, एक प्रभावी शिक्षक बच्चे की शारीरिक और मानसिक दोनों परिपक्वता का आकलन करके ही उसे उचित प्रशिक्षण देता है।

 

प्रश्‍न – (77) किसी व्‍यक्ति का अधिगम होता है।

1.      बचपन तक
2.      किशोरावस्‍था तक
3.      प्रौढावस्‍था तक   
4.      जीवन पर्यन्‍त
उत्‍तर  4

किसी व्यक्ति का अधिगम (learning)  जीवन-पर्यन्त होता है।


अधिगम एक सतत प्रक्रिया

अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक चलती रहती है। यह किसी विशेष आयु या अवस्था तक सीमित नहीं है। लोग अपने पूरे जीवन में नए कौशल, ज्ञान और अनुभव प्राप्त करते रहते हैं, चाहे वह औपचारिक शिक्षा के माध्यम से हो या अनौपचारिक रूप से। यह प्रक्रिया जीवन के हर चरण में होती रहती है।

 

प्रश्‍न – (78) बालक में शारीरिक परिवर्तन जिसे बहुत अधिक प्रभावित करता है।  

1.      रूचियां
2.      कार्य
3.      व्‍यवहार   
4.      सभी को
उत्‍तर  4

बालक में होने वाले शारीरिक परिवर्तन  सभी को प्रभावित करते हैं, जिनमें उसकी रुचियाँ, कार्य और व्यवहार शामिल हैं।


शारीरिक परिवर्तन का प्रभाव

विकास के दौरान, विशेषकर किशोरावस्था में, बालक के शरीर में तेजी से बदलाव होते हैं। ये बदलाव केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि उसके मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करते हैं।

  • रुचियाँ (Interests): शारीरिक विकास के साथ ही, बालक की रुचियां भी बदल सकती हैं। एक छोटा बच्चा जहाँ केवल खेल-कूद में रुचि रखता है, वहीं एक किशोर अपने शरीर में हो रहे बदलावों के कारण कुछ नई गतिविधियों या विपरीत लिंग के प्रति रुचि विकसित कर सकता है।

  • कार्य (Work/Activities): शारीरिक परिवर्तन बालक को नए कार्य करने के लिए सक्षम बनाते हैं। उदाहरण के लिए, मजबूत मांसपेशियों वाला किशोर अधिक शारीरिक श्रम वाले खेलों में भाग ले सकता है, जबकि एक पतला और कमजोर बच्चा ऐसा नहीं कर पाएगा।

  • व्यवहार (Behavior): शारीरिक परिवर्तन बालक के व्यवहार में भी बदलाव लाते हैं। कुछ बालक इन बदलावों को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं, जबकि कुछ में असुरक्षा या शर्म की भावना पैदा हो सकती है, जिससे उनका व्यवहार प्रभावित होता है।

इस प्रकार, बालक का शारीरिक विकास उसके जीवन के हर पहलू को गहराई से प्रभावित करता है।

 

प्रश्‍न – (79) निम्‍न में से कौन सा नकारात्‍मक संवेग है।

1.      आनंद
2.      चिंता
3.      आशा   
4.      उपलब्धि
उत्‍तर  2

निम्नलिखित में से  चिंता एक नकारात्मक संवेग (negative emotion) है।


नकारात्मक संवेग क्या हैं?

नकारात्मक संवेग वे भावनाएँ हैं जो व्यक्ति के लिए अप्रिय या कष्टदायक होती हैं। वे अक्सर तनाव, निराशा, या बेचैनी का कारण बनती हैं।

  • चिंता (Anxiety): यह एक असहज और बेचैन करने वाली भावना है जो भविष्य की किसी अनिश्चित घटना के डर या आशंका से जुड़ी होती है। यह व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

अन्य विकल्प

  • आनंद (Joy): यह एक सकारात्मक संवेग है।

  • आशा (Hope): यह एक सकारात्मक भावना है।

  • उपलब्धि (Achievement): यह एक सकारात्मक भावना है जो किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद महसूस होती है।

 

प्रश्‍न – (80) वह कारक जो व्‍यवहार में स्‍थाई औ अस्‍थाई के बीच परिवर्तन लाता है।  

1.      मानसिक थकावट
2.      बीमारी
3.      परिपक्‍वन   
4.      प्रशिक्षण
उत्‍तर  4

व्यवहार में स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के परिवर्तन लाने वाला कारक  प्रशिक्षण है।


प्रशिक्षण और व्यवहार में परिवर्तन

प्रशिक्षण (Training) एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव लाती है। यह बदलाव स्थायी या अस्थायी दोनों हो सकता है, जो प्रशिक्षण के प्रकार और अवधि पर निर्भर करता है।

  • स्थायी परिवर्तन: जब कोई व्यक्ति किसी नए कौशल को सीखता है (जैसे कि कार चलाना), तो यह उसके व्यवहार में एक स्थायी परिवर्तन लाता है। वह इस कौशल को लंबे समय तक याद रखता है।

  • अस्थायी परिवर्तन: कई बार प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त किए गए व्यवहार या कौशल अस्थायी होते हैं। उदाहरण के लिए, एक विशिष्ट स्थिति के लिए दिया गया प्रशिक्षण, जो उस स्थिति के समाप्त होने पर अपना प्रभाव खो देता है।

इसके विपरीत, मानसिक थकावट, बीमारी, या परिपक्वता से होने वाले परिवर्तन अक्सर स्थायी नहीं होते हैं।

 

प्रश्‍न – (81) शैक्षिक तकनीकि में अदा (इनपुट) सामान्‍यत: देता है।

1.      शिक्षक
2.      विद्यार्थी
3.      कम्‍प्‍यूटर   
4.      टेलीविजन
उत्‍तर  1

शैक्षिक तकनीकी में अदा (इनपुट) सामान्यतः  शिक्षक देता है।


शैक्षिक तकनीकी और इनपुट

शैक्षिक तकनीकी (Educational Technology) में, “अदा” या इनपुट उस सामग्री या जानकारी को संदर्भित करता है जो सीखने की प्रक्रिया में डाली जाती है। यह जानकारी आमतौर पर शिक्षक द्वारा प्रदान की जाती है।

  • शिक्षक की भूमिका: शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो शिक्षण सामग्री (जैसे पाठ योजना, व्याख्यान, और गतिविधियाँ) तैयार करता है और छात्रों तक पहुँचाता है। भले ही तकनीक का उपयोग किया जाता है, लेकिन सामग्री और निर्देशों का प्राथमिक स्रोत शिक्षक ही होता है।

  • अन्य विकल्पों का महत्व:

    • विद्यार्थी: विद्यार्थी इनपुट नहीं देते, बल्कि वे सीखने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं और आउटपुट (सीखा हुआ ज्ञान) देते हैं।

    • कम्प्यूटर और टेलीविजन: ये केवल माध्यम हैं जिनके माध्यम से इनपुट दिया जाता है, ये स्वयं इनपुट नहीं देते।

 

प्रश्‍न – (82) निम्‍न में से कौन सा बाल अपराध का एक मनोवैज्ञानिक कारक नहीं है।  

1.      मानसिक संघर्ष
2.      प्रबल कामना
3.      राजनीति   
4.      मंदबुद्धिता
उत्‍तर  3

बाल अपराध का एक मनोवैज्ञानिक कारक राजनीति नहीं है।


बाल अपराध के मनोवैज्ञानिक कारक

मनोवैज्ञानिक कारक वे हैं जो किसी व्यक्ति के मन या मानसिक स्थिति से संबंधित होते हैं और उसके व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

  • मानसिक संघर्ष (Mental Conflict): जब कोई बच्चा या किशोर अपनी इच्छाओं, जरूरतों और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच संघर्ष महसूस करता है, तो यह तनाव और निराशा का कारण बन सकता है, जिससे वह अपराध की ओर प्रवृत्त हो सकता है।

  • प्रबल कामना (Strong Desire): किसी चीज को पाने की अत्यधिक इच्छा, जैसे पैसा या सामाजिक प्रतिष्ठा, जब नैतिक या कानूनी तरीकों से पूरी नहीं हो पाती, तो वह बच्चे को अपराध करने के लिए प्रेरित कर सकती है।

  • मंदबुद्धिता (Mental Retardation): बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों में अक्सर सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता कम होती है, और वे सामाजिक मानदंडों को समझने में असमर्थ हो सकते हैं, जिससे वे आसानी से अपराध का शिकार बन जाते हैं।

राजनीति एक सामाजिक कारक है, न कि मनोवैज्ञानिक। यह सीधे तौर पर किसी व्यक्ति के मन या मानसिक स्थिति को प्रभावित नहीं करता है, बल्कि यह समाज की संरचना, नियमों और शक्ति से संबंधित है।

 

प्रश्‍न – (83) निम्‍न में से कौन सा प्राकृतिक अभिप्रेरणा का उदाहरण नहीं है।

1.      प्‍यास
2.      प्रतिष्‍ठा
3.      सुरक्षा   
4.      भूख
उत्‍तर  2

दिए गए विकल्पों में से,  प्रतिष्ठा एक प्राकृतिक अभिप्रेरणा का उदाहरण नहीं है।


प्राकृतिक और अर्जित अभिप्रेरणा

प्राकृतिक अभिप्रेरणाएँ (Natural Motivations) वे होती हैं जो जन्मजात और जैविक होती हैं, जो जीवित रहने के लिए आवश्यक होती हैं। ये आंतरिक होती हैं और व्यक्ति को स्वयं को जीवित रखने और अपनी प्रजाति को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती हैं।

  • प्यास: पानी की आवश्यकता एक प्राकृतिक अभिप्रेरणा है।

  • सुरक्षा: अपने आप को खतरों से बचाने की इच्छा एक प्राकृतिक प्रवृत्ति है।

  • भूख: भोजन की आवश्यकता एक प्राकृतिक अभिप्रेरणा है।

इसके विपरीत, प्रतिष्ठा (Prestige) एक अर्जित अभिप्रेरणा (Acquired Motivation) है, जिसे व्यक्ति समाज में रहते हुए सीखता है। यह सामाजिक अपेक्षाओं और मानदंडों से जुड़ी होती है।

 

प्रश्‍न – (84) निम्‍न मे से कौन सा शैक्षिक मनोविज्ञान का क्षेत्र नहीं है।  

1.      व्‍यक्तिगत समानताएं
2.      मूल्‍यांकन
3.      पाठ्यक्रम का निर्माण   
4.      अधिगम
उत्‍तर  1

शैक्षिक मनोविज्ञान का क्षेत्र  व्यक्तिगत समानताएं नहीं है।


शैक्षिक मनोविज्ञान का क्षेत्र

शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational Psychology) एक ऐसा क्षेत्र है जो सीखने और शिक्षण से संबंधित है। यह इस बात का अध्ययन करता है कि लोग कैसे सीखते हैं और शिक्षा की प्रक्रिया को कैसे सुधारा जा सकता है।

  • मूल्यांकन (Evaluation): यह शैक्षिक मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह छात्रों के सीखने की प्रक्रिया और उनके ज्ञान का मूल्यांकन करने के तरीकों से संबंधित है।

  • पाठ्यक्रम का निर्माण (Curriculum Construction): शैक्षिक मनोविज्ञान इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि छात्रों के संज्ञानात्मक और विकासात्मक स्तर के अनुसार पाठ्यक्रम को कैसे प्रभावी ढंग से बनाया जाए।

  • अधिगम (Learning): यह शैक्षिक मनोविज्ञान का सबसे केंद्रीय विषय है। इसमें सीखने की प्रक्रिया, सीखने के सिद्धांत और छात्रों के सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है।

व्यक्तिगत समानताएं शैक्षिक मनोविज्ञान का क्षेत्र नहीं हैं। इसके विपरीत, यह व्यक्तिगत भिन्नताओं (Individual Differences) पर ध्यान केंद्रित करता है, जो यह बताता है कि छात्र सीखने के तरीकों और गति में एक-दूसरे से कैसे भिन्न होते हैं।

 

प्रश्‍न – (85) फिल्‍म दिखाने के बाद आवश्‍यक सोपान है।

1.      उसका विवेचन
2.      उसकी पुनरावृति
3.      उसकी गुणवत्‍ता की चर्चा   
4.      उसकी उपादेयता
उत्‍तर  1

फिल्म दिखाने के बाद सबसे आवश्यक सोपान  उसका विवेचन है।


विवेचन (Discussion) का महत्व

शैक्षणिक प्रक्रिया में, किसी भी दृश्य-श्रव्य सामग्री जैसे फिल्म या वीडियो का उपयोग करने के बाद, उस पर चर्चा करना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

  • गहरी समझ: विवेचन छात्रों को फिल्म में दिखाए गए विचारों, अवधारणाओं और संदेशों को गहराई से समझने में मदद करता है।

  • आलोचनात्मक चिंतन: यह छात्रों को फिल्म की सामग्री पर प्रश्न उठाने, अपनी राय बनाने और अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे उनमें आलोचनात्मक चिंतन का विकास होता है।

  • ज्ञान का एकीकरण: चर्चा के माध्यम से छात्र फिल्म से प्राप्त जानकारी को अपने मौजूदा ज्ञान के साथ जोड़ पाते हैं।

जबकि पुनरावृत्ति (repetition), गुणवत्ता की चर्चा, या उपादेयता (utility) भी महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन विवेचन ही वह प्रक्रिया है जो सीखने को एक सार्थक और स्थायी अनुभव बनाती है।

 

प्रश्‍न – (86) ग्रामों फोन निम्‍न में किस तरह का उपकरण है।

1.      दृश्‍य उपकरण
2.      श्रव्‍य उपकरण
3.      मापन उपकरण   
4.      इनमे से कोई नहीं
उत्‍तर  2

ग्रामोफ़ोन एक  श्रव्य उपकरण है।


ग्रामोफ़ोन

ग्रामोफ़ोन एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग ध्वनि को रिकॉर्ड करने और उसे सुनने के लिए किया जाता था। यह एक ऐतिहासिक उपकरण है जो रिकॉर्ड की गई ध्वनि को फिर से बजाता है। चूँकि इसका मुख्य कार्य ध्वनि से संबंधित है, यह एक श्रव्य उपकरण कहलाता है।

 

प्रश्‍न – (87) निम्‍न में से दृश्‍य – श्रव्‍य सामग्री का उदाहरण है।

1.      रेडियो
2.      टेप रिकार्डर
3.      टेलीविजन   
4.      श्‍यामपटृ
उत्‍तर  3

दिए गए विकल्पों में से, टेलीविजन दृश्य-श्रव्य सामग्री का एक उदाहरण है।


दृश्य-श्रव्य सामग्री क्या है?

दृश्य-श्रव्य सामग्री (Audio-visual aids) वह होती है जो सीखने की प्रक्रिया में देखने और सुनने दोनों इंद्रियों का उपयोग करती है।

  • टेलीविजन: यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है क्योंकि यह ध्वनि (श्रव्य) और चित्र (दृश्य) दोनों को एक साथ प्रस्तुत करता है।

  • अन्य विकल्प:

    • रेडियो और टेप रिकॉर्डर केवल श्रव्य सामग्री हैं।

    • श्यामपट्ट (blackboard) केवल दृश्य सामग्री है।

टेलीविजन जैसे उपकरणों का उपयोग शिक्षण को अधिक प्रभावी और रोचक बनाने में मदद करता है।

 

प्रश्‍न – (88) स्‍मृति मे सबसे अधिक समय तक रहती है।

1.      सुनी हुई
2.      देखी हुई
3.      देखी व सुनी हुई   
4.      पढी हुई
उत्‍तर  3

स्मृति में सबसे अधिक समय तक  देखी व सुनी हुई जानकारी रहती है।


स्मृति और इंद्रियाँ 

मनोवैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि जब हम एक ही समय में कई इंद्रियों का उपयोग करके कुछ सीखते हैं, तो वह जानकारी हमारी स्मृति में अधिक समय तक रहती है।

  • संयुक्त अनुभव: जब हम किसी चीज को देखते और सुनते हैं (जैसे वीडियो, फिल्म या व्याख्यान), तो हमारा मस्तिष्क उस जानकारी को दो अलग-अलग चैनलों के माध्यम से संसाधित करता है। यह दोहरा अनुभव याददाश्त को मजबूत बनाता है और जानकारी को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद करता है।

  • उदाहरण: किसी ऐतिहासिक घटना के बारे में केवल पढ़ने की तुलना में, उस पर आधारित एक वृत्तचित्र (documentary) देखना और सुनना अधिक प्रभावी होता है।

देखी हुई जानकारी सुनी हुई जानकारी की तुलना में अधिक समय तक रहती है, लेकिन जब दोनों को मिला दिया जाता है, तो सीखने की प्रक्रिया और भी प्रभावी हो जाती है।

 

प्रश्‍न – (89) भाषा शिक्षण में उच्‍चारण शुद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।

1.      ओ.एच.पी.
2.      लिंग्‍वाफोन
3.      ग्रामोफोन   
4.      डिक्‍टोफोन
उत्‍तर 

भाषा शिक्षण में उच्चारण की शुद्धता के लिए  लिंग्वाफोन का प्रयोग किया जाता है।


लिंग्वाफोन क्या है?

लिंग्वाफोन एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग विदेशी भाषाओं को सीखने के लिए किया जाता है। इसमें रिकॉर्ड की गई सामग्री होती है जिसमें मूल वक्ता (native speaker) द्वारा शब्दों और वाक्यों का सही उच्चारण किया जाता है। छात्र इन ध्वनियों को सुनकर और उनका अनुकरण करके अपने उच्चारण को सुधारते हैं।

अन्य विकल्प:

  • ओ.एच.पी. (Overhead Projector): इसका उपयोग चित्रों या पाठ को बड़े पर्दे पर प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

  • ग्रामोफोन: यह ध्वनि रिकॉर्डिंग को चलाने का एक पुराना उपकरण है।

  • डिक्टाफोन (Dictaphone): यह आवाज रिकॉर्ड करने के लिए एक छोटा पोर्टेबल उपकरण है, जिसका उपयोग अक्सर पेशेवर संदर्भों में किया जाता है।

 

प्रश्‍न – (90) निम्‍न में से भाषा प्रयोगशाला का अनुभाग नहीं है।

1.      श्रवण कोष्‍ठ
2.      परामर्शदाता का कोष्‍ठ
3.      नियन्‍त्रण कोष्‍ठ   
4.      दूरदर्शन प्रकोष्‍ठ
उत्‍तर  4

भाषा प्रयोगशाला का अनुभाग  दूरदर्शन प्रकोष्ठ नहीं है।


भाषा प्रयोगशाला के अनुभाग

भाषा प्रयोगशाला एक विशेष प्रकार की कक्षा होती है जिसका उपयोग विदेशी भाषा या दूसरी भाषा सीखने और अभ्यास करने के लिए किया जाता है। इसके मुख्य अनुभाग इस प्रकार हैं:

  • नियंत्रण प्रकोष्ठ (Control Booth): यह वह स्थान होता है जहाँ शिक्षक बैठता है। यहाँ से शिक्षक छात्रों के अभ्यास को नियंत्रित और मॉनिटर करता है।

  • परामर्शदाता का प्रकोष्ठ (Consul’s Booth): यह भी शिक्षक के स्थान को संदर्भित करता है, जहाँ से वह छात्रों को व्यक्तिगत परामर्श और मार्गदर्शन देता है।

  • श्रवण प्रकोष्ठ (Listening Booth): यह वह जगह है जहाँ छात्र अलग-अलग बूथों में बैठकर ऑडियो सामग्री सुनते हैं और अभ्यास करते हैं।

दूरदर्शन प्रकोष्ठ भाषा प्रयोगशाला का हिस्सा नहीं होता है, क्योंकि दूरदर्शन (टेलीविजन) का उपयोग आमतौर पर सामूहिक शिक्षण के लिए किया जाता है, जबकि भाषा प्रयोगशाला व्यक्तिगत अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करती है।

 

प्रश्‍न – (91) किस मनोवैज्ञानिक के अनुसार विकास एक सतत् और धीमी – धीमी प्रक्रिया है।  

1.      कोलसैनिक
2.      पियाजे
3.      स्किनर   
4.      हरलॉक
उत्‍तर  4

विकास एक सतत और धीमी प्रक्रिया है, यह विचार  हरलॉक ने दिया था।


हरलॉक और विकास का सिद्धांत

मनोवैज्ञानिक एलिजाबेथ बी. हरलॉक (Elizabeth B. Hurlock) ने विकास के बारे में अपनी व्यापक समझ प्रस्तुत की थी। उन्होंने कहा था कि विकास अचानक नहीं होता, बल्कि यह एक सतत (continuous) प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। साथ ही, यह धीमी-धीमी (gradual) प्रक्रिया है, जिसमें एक चरण से दूसरे चरण में धीरे-धीरे संक्रमण होता है।

यह विचार निरंतरता के सिद्धांत (Principle of Continuity) के साथ मेल खाता है, जो यह बताता है कि विकास एक अविच्छिन्न प्रक्रिया है और इसमें कोई अचानक बदलाव नहीं होता।

 

प्रश्‍न – (92) मैक्‍डूगल के अनुसारमूल प्रवृति जिज्ञासा का संबंध संवेग कोन सा है।  

1.      भय
2.      घृणा
3.      आश्‍चर्य   
4.      भूख
उत्‍तर  3

मैकडूगल के अनुसार, मूल प्रवृत्ति जिज्ञासा का संबंध संवेग  आश्चर्य (Wonder) से है।


मैकडूगल का सिद्धांत

विलियम मैकडूगल (William McDougall) ने यह सिद्धांत दिया था कि सभी व्यवहार मूल प्रवृत्तियों (instincts) से उत्पन्न होते हैं, और प्रत्येक मूल प्रवृत्ति एक विशिष्ट संवेग (emotion) से जुड़ी होती है।

  • जिज्ञासा (Curiosity) → आश्चर्य (Wonder): जब कोई व्यक्ति कुछ नया या असामान्य देखता है, तो उसमें जिज्ञासा की मूल प्रवृत्ति जागृत होती है, जिसके साथ आश्चर्य का संवेग उत्पन्न होता है। यह जिज्ञासा व्यक्ति को उस वस्तु या घटना के बारे में अधिक जानने के लिए प्रेरित करती है।

इस प्रकार, मैकडूगल ने जिज्ञासा और आश्चर्य को सीधे तौर पर संबंधित बताया था।

 

प्रश्‍न – (93) विकास शुरू होता है।

1.      उत्‍तर बाल्‍यावस्‍था से
2.      प्रसव पूर्व अवस्‍था से
3.      शेशवावस्‍था से   
4.      पूर्व बाल्‍यावस्‍था से
उत्‍तर  2

विकास  प्रसव पूर्व अवस्था (Prenatal Stage) से शुरू होता है।


विकास का प्रारंभिक चरण 

विकास एक सतत और जीवन-पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह जन्म से पहले ही शुरू हो जाती है।

  • प्रसव पूर्व अवस्था: यह वह चरण है जो गर्भधारण से लेकर जन्म तक चलता है। इस दौरान, एक एकल कोशिका से एक पूर्ण विकसित शिशु का निर्माण होता है। यह शारीरिक और तंत्रिका संबंधी विकास का सबसे तेज और महत्वपूर्ण चरण होता है।

  • शैशवावस्था (Infancy): यह जन्म के बाद का चरण है। इस चरण में भी विकास तेजी से होता है, लेकिन यह प्रसव पूर्व अवस्था में शुरू हो चुका होता है।

  • बाल्यावस्था (Childhood): यह शैशवावस्था के बाद का चरण है, जिसमें विकास धीरे-धीरे होता है।

इसलिए, किसी भी व्यक्ति का विकास उसकी माँ के गर्भ में ही शुरू हो जाता है।

 

प्रश्‍न – (94) लारेंस कोहलबर्ग विकास के क्षेत्र में शोध के लिए जाने जाते है।  

1.      संज्ञानात्‍मक
2.      शारीरिक
3.      नैतिक   
4.      गामक
उत्‍तर  3

लारेंस कोहलबर्ग (Lawrence Kohlberg) विकास के क्षेत्र में  नैतिक शोध के लिए जाने जाते हैं।


कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत 

कोहलबर्ग ने बच्चों और किशोरों में नैतिक तर्क (moral reasoning) के विकास का अध्ययन किया। उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य नैतिक विकास के सिद्धांत (Theory of Moral Development) पर है। उन्होंने बताया कि मनुष्य नैतिक निर्णय लेने के दौरान तीन मुख्य स्तरों और छह चरणों से गुजरता है।

  1. पूर्व-परंपरागत स्तर (Pre-conventional Level): इसमें बच्चे नियमों का पालन सजा से बचने या पुरस्कार पाने के लिए करते हैं।

  2. परंपरागत स्तर (Conventional Level): इसमें व्यक्ति सामाजिक नियमों और कानूनों का पालन करता है ताकि वह अच्छा नागरिक बन सके।

  3. उत्तर-परंपरागत स्तर (Post-conventional Level): इस स्तर पर, व्यक्ति अपने स्वयं के नैतिक सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेता है, जो सामाजिक नियमों से भी ऊपर हो सकते हैं।

इस प्रकार, कोहलबर्ग का पूरा शोध नैतिकता और नैतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया पर केंद्रित था।

 

प्रश्‍न – (95) सबसे अधिक गहन और जटिल समाजीकरण होता है।

1.      व्‍यक्ति के पूरे जीवन मे
2.      किशोरावस्‍था मे
3.      पूर्व वाल्‍यावस्‍था मे   
4.      प्रौढावस्‍था में
उत्‍तर – 2

सबसे अधिक गहन और जटिल समाजीकरण  किशोरावस्था में होता है।


किशोरावस्था में समाजीकरण

किशोरावस्था (Adolescence) वह अवस्था है जो लगभग 12 से 19 वर्ष की आयु के बीच होती है। इस दौरान, एक व्यक्ति को कई शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिवर्तनों से गुजरना पड़ता है, जिससे समाजीकरण की प्रक्रिया सबसे अधिक गहन हो जाती है।

  • पहचान का संकट: किशोर अपनी पहचान, मूल्यों और भूमिकाओं को समझने का प्रयास करते हैं। वे अक्सर यह सवाल करते हैं कि वे कौन हैं और समाज में उनकी जगह क्या है।

  • समूह का प्रभाव: इस अवस्था में, परिवार की तुलना में समूह (Peer Group) का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है। किशोर अपने साथियों के साथ बातचीत करके सामाजिक मानदंडों, फैशन और व्यवहार को सीखते हैं।

  • जटिलता: इस अवधि में, उन्हें कई नए सामाजिक संबंधों (जैसे रोमांटिक संबंध) और जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है, जिससे समाजीकरण की प्रक्रिया जटिल हो जाती है।

जबकि समाजीकरण व्यक्ति के पूरे जीवन में होता है, लेकिन किशोरावस्था में होने वाले तीव्र परिवर्तन और नए अनुभवों के कारण यह सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण और जटिल होता है।

 

प्रश्‍न – (96) विकास कभी न समाप्‍त होने वाली प्रक्रिया है यह विचार किससे संबंधित है।

1.      एकीकरण सिद्धांत
2.      अंत: क्रिया का सिद्धांत
3.      अंत: संबंध का सिद्धांत   
4.      निरंतरता का सिद्धांत
उत्‍तर  4

विकास कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया है, यह विचार  निरंतरता का सिद्धांत से संबंधित है।


निरंतरता का सिद्धांत 

यह सिद्धांत बताता है कि विकास एक सतत (continuous) और धीमी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। यह किसी भी अवस्था में अचानक नहीं रुकती।

  • सतत प्रक्रिया: विकास के सभी पहलू—शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक—लगातार और धीरे-धीरे विकसित होते रहते हैं।

  • अविच्छिन्नता: यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति के जीवन में विकास के विभिन्न चरणों के बीच कोई रुकावट नहीं होती, बल्कि एक चरण से दूसरे चरण में सहज संक्रमण होता है।

 

प्रश्‍न – (97) परिपक्‍वता का संबंध है।

1.      विकास
2.      बुद्धि
3.      सृजनात्‍मक   
4.      रूचि
उत्‍तर  1

परिपक्वता का संबंध  विकास से है।


परिपक्वता और विकास का संबंध

परिपक्वता (Maturation) विकास की एक प्रक्रिया है जो आनुवंशिकता और जैविक कारकों पर आधारित होती है। यह एक प्राकृतिक और आंतरिक प्रक्रिया है, जो किसी भी प्रकार के अभ्यास या प्रशिक्षण के बिना होती है।

  • परिपक्वता: यह व्यक्ति के जीवन में होने वाले उन परिवर्तनों को संदर्भित करती है जो जैविक रूप से पूर्वनिर्धारित होते हैं। उदाहरण के लिए, एक बच्चे का घुटनों के बल चलना और फिर खड़ा होना सीखना, या उसके दाँतों का निकलना। ये सभी परिवर्तन परिपक्वता के कारण होते हैं।

  • विकास (Development): विकास एक व्यापक शब्द है जिसमें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह के परिवर्तन शामिल होते हैं। परिपक्वता विकास का ही एक अभिन्न अंग है। विकास सीखने, परिपक्वता, और पर्यावरण के साथ अंतःक्रिया का परिणाम है।

जबकि बुद्धि, सृजनात्मकता और रुचि भी विकास के पहलू हैं, लेकिन परिपक्वता सीधे तौर पर जैविक विकास से जुड़ी है।

 

प्रश्‍न – (98) शारीरिक विकास का क्षेत्र है।  

1.      स्‍नायुमण्‍डल
2.      स्‍मृति
3.      अभिप्रेरणा   
4.      समायोजन
उत्‍तर  1

शारीरिक विकास का क्षेत्र  स्नायुमंडल (Nervous System) है।


शारीरिक विकास

शारीरिक विकास का संबंध शरीर के विभिन्न अंगों के विकास से है। इसमें शरीर के आकार और बनावट में होने वाले बदलाव, मांसपेशियों का विकास और विभिन्न आंतरिक प्रणालियों का विकास शामिल है।

  • स्नायुमंडल: यह शारीरिक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्नायुमंडल (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी सहित) का विकास शारीरिक और मानसिक दोनों गतिविधियों के लिए आवश्यक है। यह व्यक्ति के सीखने, सोचने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

अन्य विकल्प:

  • स्मृति (Memory), अभिप्रेरणा (Motivation) और समायोजन (Adjustment) मानसिक या मनोवैज्ञानिक विकास के क्षेत्र हैं, न कि शारीरिक विकास के।

 

प्रश्‍न – (99) मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक है।

1.      वंशानुक्रम
2.      परिवार का वातावरण
3.      परिवार की सामाजिक स्थिति   
4.      सभी
उत्‍तर  4

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक उपरोक्त सभी  हैं।


मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

मानसिक विकास एक जटिल प्रक्रिया है जो कई कारकों से प्रभावित होती है। ये सभी कारक मिलकर एक व्यक्ति की सोच, तर्क, स्मृति और समस्या-समाधान की क्षमताओं को निर्धारित करते हैं।

  • वंशानुक्रम (Heredity): व्यक्ति की आनुवंशिक बनावट उसके मानसिक विकास की नींव रखती है। कुछ बौद्धिक क्षमताएँ और सीखने की प्रवृत्तियाँ वंशानुगत हो सकती हैं।

  • परिवार का वातावरण (Family Environment): बच्चे के शुरुआती वर्षों में परिवार का वातावरण उसके मानसिक विकास को बहुत प्रभावित करता है। यदि परिवार में सीखने, चर्चा और नई चीजों को खोजने का माहौल होता है, तो बच्चे का मानसिक विकास बेहतर होता है।

  • परिवार की सामाजिक स्थिति (Socioeconomic Status of the Family): परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी मानसिक विकास पर प्रभाव डालती है। उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले परिवारों में बच्चों को बेहतर पोषण, शिक्षा के अवसर और संसाधन मिलने की संभावना अधिक होती है, जो उनके मानसिक विकास को बढ़ावा देते हैं।

 

प्रश्‍न – (100) विधायकता की मूल प्रवृति किस अवस्‍था में विकसित होती है।

1.      शैशवावस्‍था में
2.      किशोरावस्‍था में
3.      युवावस्‍था में   
4.      बाल्‍यावस्‍था में
उत्‍तर  4

विधायिका की मूल प्रवृत्ति  बाल्यावस्था में विकसित होती है।


विधायिका की मूल प्रवृत्ति (Constructive Instinct) 

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, विधायिका (constructive) या रचनात्मकता की मूल प्रवृत्ति बच्चों में चीजों को बनाने और बिगाड़ने की इच्छा के रूप में देखी जाती है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से बाल्यावस्था (Childhood) में विकसित होती है।

  • बाल्यावस्था (6-12 वर्ष): इस अवस्था में बच्चे मिट्टी, रेत, लकड़ी, या खिलौनों के ब्लॉकों से कुछ नया बनाने में रुचि लेते हैं। यह प्रवृत्ति उन्हें रचनात्मकता, समस्या-समाधान और तार्किक सोच विकसित करने में मदद करती है।

  • अन्य अवस्थाएं:

    • शैशवावस्था: इस अवस्था में बच्चे केवल अपनी इंद्रियों के माध्यम से सीखते हैं।

    • किशोरावस्था: इस अवस्था में सामाजिक और भावनात्मक विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

    • युवावस्था: इस अवस्था में व्यक्ति करियर और संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है।

इसलिए, खिलौनों से खेलना, चित्र बनाना, या कोई नई चीज बनाना इस प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो बाल्यावस्था में सबसे अधिक सक्रिय होती है।

 
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